( मुक़तदी से वाजिब छूट जाए तो क्या हुक्म है?)

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अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू 

किया फरमाते हैं उलमाए किराम व मुफ्तियाने इज़ाम इस मसअलह के बारे में अगर इमाम के पीछे किसी मुक्तदी से कोई वाजिब सहवन या क़सदन (जाने/अनजाने) छूट जाए तो इस सूरत में उसकी नमाज़ का किया हुक्म होगा ? 
बहवाला जवाब इनायत फरमा कर दारैन के मुस्तहिक़ हों।
साइल :- ग़ुलाम यज़दानी बलरामपुर, यू .पी 
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू 
बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम 
अल'जवाब:
मुक्तदी से अगर अनजाने में वाजिब छूट गया तो उस पर सजदा सहव वाजिब नहीं है, और अगर जान कर वाजिब छोड़ा (चाहे मुक्तदी हो या अकेले हो) तो उस नमाज़ का दोहराना वाजिब है।
इमाम सिराजुद्दीन उमर बिन इबराहीम बिन नजीम अलहंफ़ी वफात 1005 हिजरी अलैहिर्रहमा ने लिखा है 
لا يجب على المقتدی بسهوہ لأنه إن سجد وحده أي: قبل السلام فقد خالف الإمام فلو تابعه انعكس الموضوع ولو أخره إلى ما بعد سلام الإمام فات محله
तर्जमा: मुक्तादि पर उसके भूल की वजह से सजदए सहव वाजिब नहीं है, इसलिये कि अगर उसने अकेला इमाम के सलाम फेरने से पहले सजदए सहव किया तो उसने इमाम की मुखालिफत की और अगर इमाम मुक्तदी की पैरवी करे, तो पूरी हैअत तब्दील हो जाएगी ( यानी इस सूरत में इमाम, मुक्तादि बन जाएगा) और अगर मुक्तदि सजदए सहव को इमाम के सलाम फेरने के बाद तक मुअख्खर (देर) तो सजदए सहव का महल फौत हो जाएगा।
( अल नहरूल फ़ाईक, किताबूस सलात पार्ट 1 पेज नo 326 दारुल कुतुब अल्मिया बैरूत)
हुज़ूर सदरुश शरिया मुफ्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा ने लिखा है कि " अगर मुक्तदि से बहालते इक़्तिदा सहव वाक़े हुआ तो सजदए सहव वाजिब नहीं "
(बहारे शरीयत पार्ट 1 पेज़ नo 715 मतबुआ मकतबुल मदीना)
और इसी तरह के एक सवाल के जवाब में सैय्यदी आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि " नमाज़ हो गई अगरचे बगैर ज़रूरत ऐसी ताख़ीर से गुनहगार हुआ और बावज़हे तर्के वाजिब एआदा नमाज़ का हुक्म दिया जाएगा तहक़ीक़ मक़ाम यह है कि.. (मुक्तदी ने) अगर बगैर ज़रूरत फ़स्ल (अलग) किया तो क़लील फ़स्ल में जिसके सबब इमाम से जा मिलना फौत न हो तर्के सुन्नत और कसीर में जिस तरह सुरते सवाल है कि फेअले इमाम खत्म होने के बाद उसने किया तर्क वाजिब जिसका हुक्म उस नमाज़ को पूरा करके एआदा करना 
( फ़तावा रज़विया पार्ट 7 पेज़ 275/276, मतबुआ रज़ा फाउंडेशन, लाहौर)
हुज़ूर सदरुश शरिया मुफ्ती अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा ने लिखा है कि " वजीबाते नमाज़ से हर वाजिब के छूट जाने का यही हुक्म है कि अगर सहवन हो तो सजदा सहव वाजिब, और अगर सजदा सहव न किया या क़सदन वाजिब को तर्क किया तो नमाज़ का दोहराना वाजिब है 
(फ़तावा अमजदिया पार्ट 1 पेज़ नo 276, मतबूआ मकतबा रज़विया, कराची)
वल्लाहु तआला आलम व रसूलहु आलम
लेखक
अब्दुल वकील सिद्दीक़ी नक़्शबंदी (फलोदी राजस्थान)
हिन्दी अनुवादक
मुजस्सम हुसैन मिस्बाही 
 (गोड्डा झारखण्ड)
01 जनवरी 2025
मिंजानिब:- मसाइले शरइया ग्रुप



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