(क्या ला इलाहा इल्लल्लाह (لاالہ الا اللہ) से मुराद पूरा कलमा है ?)

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(क्या ला इलाहा इल्लल्लाह (لاالہ الا اللہ) से मुराद पूरा कलमा है ?)


अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि बरकातूह
सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए दीन व मुफ्तियाने शरअ मतीन इस मसअले के तेहत एक रिवायत में है कि जो सत्तर हज़ार (70,000) मर्तबा कलमा ए तैबा पढ़ ले उस की मगफिरत कर दी जाती है यहां कलमा ए तैयबा से आया पूरा कलमा मुराद है या सिर्फ ला इलाहा इल्लल्लाह मुराद है या  इस तरह भी पढ़ सकते हैं ला इलाहा इल्लल्लाह हरसु के बाद मुहम्मदुर रसूलुल्लाह कहे ?
साइल : कनीज़ फातिमा  मुंबई महाराष्ट्रा

व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि बरकातूह
जवाब : हदीस मुबारक में हुज़ूर ﷺ ने जो यह इरशाद फरमाया(" افضل الذکر لَا اِلٰهَ اِلَّا اللَّهُ ")यानी सब से अफज़ल ज़िक्र "ला इलाहा इल्लल्लाह" है तो इस से पूरा कलमा ए तैयबा "ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदूर रसूलुल्लाह" ﷺ मुराद है लिहाज़ा जब कोई इसका विर्द करे तो पूरा कलमा ए तैयबा पढ़े क्यों कि इस में तौहीद व रिसालत का बयान है और यह कलमा कुफ्र से ईमान की तरफ लाता है।जैसा कि मुफस्सिरे शहीर हज़रत अल्लामा मुफ्ती अहमद यार खान नईमी अशरफी अलैहिर्रहमा मिरअातुल मनाजीह में फरमाते हैं "ला इलाहा इल्लल्लाह" से मुराद पूरा कलमा शरीफ है यानी मअ "मुहम्मदूर रसूलुल्लाह" ﷺ के वरना सिर्फ "ला इलाहा इल्लल्लाह" तो बहुत से मुवह्हिद कुफ्फार बल्कि इब्लिस भी पढ़ता है, वह मुशरिक नहीं मुवह्हिद है, जिस चीज़ से मोमिन बनते हैं वह है "मुहम्मदूर रसूलुल्लाह" ﷺ क्योंकि कलमा शरीफ से कुफ्र की गंदगी दूर होती है, इसे पढ़ कर काफिर मोमिन होता है, इस से दिल की ज़ंग दूर होती है, इस से गफलत जाती है, दिल में बेदारी आती है, यह हम्दे इलाही व नाते मुस्तफा ﷺ का मजमुआ है, इस लिए यह अफज़लुज़्ज़िक्र हुवा।सुफिया ए किराम फरमाते हैं कि सफाई दिल के लिए कलमा ए तैयबा इकसीर है।(मिरातुल मनाजीह, जिल्द 3 सफा 342)

अलबत्ता अगर कोई ताक़ अदद में पहले "ला इलाहा इल्लल्लाह" का ज़िक्र करें और फिर आखिर में "मुहम्मदूर रसूलुल्लाह" ﷺ शामिल कर ले तो यह भी दुरुस्त है।जैसा की बानी ए सिलसिला ए नूरिया अमीर किशवरे मअरफत हज़रत सूफी सैयद शाह नूर आलम नूरानी बादशाह सरकार सहरवरदी अल क़ादरी ज़ैयद मुजिदा इरशाद फरमाते हैं कि सुफिया ए किराम के मअमूल के मुताबिक़ एक ही मजलिस में मुतअद्दिद बार नफी इसबात यानी "ला इलाहा इल्लल्लाह" का ज़िक्र करने के बाद आखिर में एक बार "मुहम्मदूर रसूलुल्लाह" कह लेना काफी है और यह दुरुस्त है और यह भी इरशाद फरमाते हैं कि जब कोई शख्स तस्बीह पढ़े तो पहले 99 बार "ला इलाहा इल्लल्लाह" और फिर आखिर दाने पर पुरा कलमा "ला इलाहा इल्लल्लाहु मुहम्मदूर रसूलुल्लाह" एक साथ पढ़ सकता है।वल्लाहु तआला व रसूलुहुल आला आलमु बिस्सवाब अज़्ज़ व जल व सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम

अज़ क़लम 
 सैय्यद मुहम्मद नज़ीरुल हाशमी सहरवरदी
22 जमादिल अव्वल 1446 हिजरी मुताबिक़ 24 नवम्बर 2024 ब रोज़ इतवार
हिंदी अनुवादक
मुहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी दुदही कुशीनगर
मुक़ीम : पुणे महाराष्ट्र
3 जमादिल आखिर 1446 हिजरी मुताबिक़ 6 दिसंबर 2024 ब रोज़ जुमआ
मीन जानिब : मसाइले शरइय्या ग्रुप
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