( लैगी, प्लाज़ो और टॉज़र पहनना कैसा है? )

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 ( लैगी, प्लाज़ो और टॉज़र पहनना कैसा है? )


अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू 
किया फरमाते हैं उलमाए किराम व मुफ्तियाने इज़ाम इस मसअला में कि किया प्लाज़ो, लैगी और टॉज़र पहन कर नमाज़ पढ़ने से अदा हो जाएगी? जवाब इनायत फरमाएं बहुत मेहरबानी होगी 
साइल:- समीफी 

व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू 
बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम
अल'जवाब :- इन कपड़ों के मामलात में जहां तक फ़क़िर को मालूम है कि प्लाज़ो और टॉज़र ढीला ढाला होता है अगर वाक़ई ढीला होता है तो पहनना भी जाइज़ है और पहन कर नमाज़ पढ़ना भी जाइज़ है।
रहा लैगी का मामला तो मेरी मालूमात के मुताबिक़ लैगी बहुत ही चुस्त लिबास (कपड़ा) होता है जिससे बदन के आअज़ा (पार्ट) दिखाई देते हैं अगर वाक़ई ऐसा ही है तो लैगी का पहनना ही जाइज़ नहीं। सरकार आला हज़रत अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि बारिक (पतला) कपड़े पहने जिनसे बदन या बाल चमकते हों, या बालों या गले या कलाई या पिंडली का कोई हिस्सा ज़ाहिर हो या कपड़े इतने चुस्त हों कि बदन की हैअत (बनावट, ढांचा) बताते हों और वह यूँ एलानियां मर्दों के मजमा में आती है और शौहर जाइज़ रखे- समझे तो वह दय्यूष फ़ासिक़े मोअलिन है।
(फतवा रज़विया पार्ट 26 पेज़ 588 दावते इस्लामी) 
देखो यहां सरकार आला हज़रत अलैहिर्रहमा ने फरमाया कि अगर शौहर जाइज़ रखे तो दय्यूष है मतलब चुस्त लिबास पहनना गुनाह है, वरना शौहर को दय्यूष फ़सीक़े मोअलिन न लिखते।
एक दूसरे मक़ाम पर फरमाते हैं कि तंग पाइचे (चुस्त पाजामा) भी न चूड़ीदार हों न टुखनों से नीचे न खूब चुस्त बदन से सिले कि यह सब वज़ए फुस्साक़ (गुनाहगारों का तरीक़ा) है, और सत्र औरत (बदन का वह हिस्सा जिसे छुपाना जरूरी है) का ऐसा चुस्त होना कि अज़्व (बदन का हिस्सा) का पूरा अंदाज़ बताए, यह भी एक तरह की बे सतरी है। हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलाम ने जो पेशगोई (कोई बात पहले ही बता देना) फरमाई है कि औरतों में बुराई और नंगापन होगी, कपड़े पहने हुए भी नंगी लगेंगी, इस की वजूहे तफसीर से एक वजह यह भी है कि कपड़े ऐसे तंग चुस्त होंगे कि बदन की गोलाई फरबही (मोटाई) अंदाज़ ऊपर से बताएंगे जैसे कुछ लखनऊ वालियों की तंग शलावारें चुस्त कुर्तियां।
(किताब रद्दुल मुहतार में है)
فی الذخیرۃ وغیرھا ان کان علی المرا،ۃ ثیاب فلا باس ان یتامل جسدھا اذا لم تکن ثیابھا ملتزقۃ بھا بحیث نصف ماتحتہا وفی التتبیین قالوا ولا باس بالتأمل فی جسدھا وعلیہا ثیاب مالم یکن ثوب یبین حجمھا فلا ینظر الیہ حنیئذ لقولہ علیہ الصلٰوۃ واسلام من تامل خلف امرأۃ ورأی ثیابھا حتی تبین لہ حجم عظامھا لم یرح رائحۃ الجنۃ ولانہ متی کان یصف یکون ناظرا الی اعضائھا  اھ ملخصا
ज़ख़ीरा वगैरा में है कि अगर औरत ने लिबास पहन रखा हो तो उसके जिस्म को देखने में कोई हर्ज नहीं बशर्ते कि लिबास इस तरह तंग और चुस्त न हों कि सब कुछ ज़ाहिर होने लगे। अत्तबईन में है कि अइम्माए किराम ने फरमाया जब औरत लिबास पहने हो तो उसकी तरफ देखने में कुछ हर्ज नहीं बशर्ते कि लिबास ऐसा तंग और चुस्त न हों जो उसके हजम (मोटाई,ढांचा) को ज़ाहिर करने लगे।
हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलाम के इस इरशाद गिरामी की वजह से कि आपने फरमाया कि जिस किसी ने औरत को पीछे से देखा और उसके लिबास पर नज़र पड़ी यहां तक कि उसकी हड्डियों का हजम वाज़ेह और ज़ाहिर हो गया तो ऐसा शख्स ( जो गैर महरम को बगौर देख कर लुत्फ अंदोज़ होने वाला,मज़ा लेने वाला है) जन्नत की खुशबू तक न पाएगा, और इसलिए कि लिबास से अंदाज़ क़द व क़ामत (लम्बाई,मोटाई) ज़ाहिर हो तो उस लिबास को देखना मख़फ़ी आअज़ा (छुपे हुए पार्ट) को देखने के बराबर है।
(फ़तावा रज़विया पार्ट 22 पेज़ 163 दावते इस्लामी)
खुलासए कलाम यह है कि जो लिबास ढीला हो कि बदन के पार्ट ज़ाहिर न हों तो उसका पहनना जाइज़ है और उसे पहन कर नमाज़ पढ़ना भी जाइज़ है और जो लिबास चुस्त हों जिससे बदन का हिस्सा ज़ाहिर हों दिखे तो यह फुस्साक़ का लिबास है इसका पहनना ही जाइज़ नहीं है।
वल्लाहु तआला आलमु बिस्सवाब 
लेखक
मौलाना ताज मोहम्मद क़ादरी वाहिदी 
हिन्दी अनुवादक
मुजस्सम हुसैन (गोड्डा झारखण्ड)
मुक़ीम:- गाज़ीपुर उत्तर प्रदेश 
 
मिंजनिब :- मसाइले शरइया ग्रुप
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