(सुल्हे हुदैबिया क्यूंकर हुई 01)
हुदैबिया में सब से पहला शख्स जो हुजुर ﷺ की ख़िदमत में हाज़िर हुवा वोह बदील बिन वरकाअ खज़ाई था। उन का क़बीला अगर्चे अभी तक मुसलमान नहीं हुवा था मगर येह लोग हुजुर ﷺ के हलीफ़ और इनतिहाई मुख़्लिस व खैर ख़्वाह थे। बदील बिन वरकाअ ने आप को खबर दी कि कुफ़्फ़ारे कुरैश ने कषीर तादाद में फ़ौज जम्अ कर ली है और फ़ौज के साथ राशन के लिये दूध वाली ऊंटनियां भी हैं। येह लोग आप से जंग करेंगे और आप को ख़ानए काबा तक नहीं पहुंचने देंगे।
हुज़ूर ﷺ ने फ़रमाया कि तुम कुरैश को मेरा येह पैग़ाम पहुंचा दो कि हम जंग के इरादे से नहीं आए हैं और न हम जंग चाहते हैं। हम यहां सिर्फ उमरह अदा करने की गरज से आए हैं। मुसल्सल लड़ाइयों से कुरैश को बहुत काफ़ी जानी व माली नुक्सान पहुंच चुका है। लिहाजा उन के हक़ में भी येही बेहतर है कि वोह जंग न करें बल्कि मुझ से एक मुद्दते मुअय्यना तक के लिये सुल्ह का मुआहदा कर लें और मुझ को अहले अरब के हाथ में छोड़ दें। अगर कुरैश मेरी बात मान लें तो बेहतर होगा और अगर उन्हों ने मुझ से जंग की तो मुझे उस जात की क़सम है जिस के क़ब्ज़ए कुदरत में मेरी जान है कि मैं उन से उस वक्त तक लडूंगा कि मेरी गरदन मेरे बदन से अलग हो जाए।
बदील बिन वरकाअ आप का येह पैग़ाम ले कर कुफ्फ़ारे कुरैश के पास गया और कहा कि मैं मुहम्मद ﷺ का एक पैग़ाम ले कर आया हूं। अगर तुम लोगों की मरज़ी हो तो मैं उन का पैग़ाम तुम लोगों को सुनाऊं। कुफ्फ़ारे कुरैश के शरारत पसन्द लौंडे जिन का जोश उन के होश पर गालिब था शोर मचाने लगे कि नहीं ! हरगिज़ नहीं ! हमें उन का पैगाम सुनने की कोई जरूरत नहीं। लेकिन कुफ्फारे कुरैश के सन्जीदा और समझदार लोगों ने पैगाम सुनाने की इजाजत दे दी और बदील बिन वरकाअ ने हुज़ूर ﷺ की दावते सुल्ह को उन लोगों के सामने पेश कर दिया। ( सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 350)
बदील बिन वरकाअ ने हुज़ूर ﷺ की दावते सुल्ह को उन लोगों के सामने पेश कर दिया। येह सुन कर क़बीलए कुरैश का एक बहुत ही मुअम्मर और मुअज्जज सरदार उर्वह बिन मसऊद सक़फ़ी खड़ा हो गया और उस ने कहा कि ऐ कुरैश ! क्या मैं तुम्हारा बाप नहीं ? सब ने कहा कि क्यूं नहीं। फिर उस ने कहा कि क्या तुम लोग मेरे बच्चे नहीं ? सब ने कहा कि क्यूं नहीं। फिर उस ने कहा कि मेरे बारे में तुम लोगों को कोई बद गुमानी तो नहीं ? सब ने कहा कि नहीं ! हरगिज़ नहीं। इस के बाद उर्वह बिन मसऊद ने कहा कि मुहम्मद (ﷺ) ने बहुत ही समझदारी और भलाई की बात पेश कर दी। लिहाज़ा तुम लोग मुझे इजाजत दो कि मैं उन से मिल कर मुआमलात तै करूं। सब ने इजाज़त दे दी कि बहुत अच्छा ! आप जाइये। उर्वह बिन मसऊद वहां से चल कर हुदैबिया के मैदान में पहुंचा और हुजूर ﷺ को मुखातब कर के येह कहा कि बदील बिन वरकाअ की ज़बानी आप का पैग़ाम हमें मिला। ऐ मुहम्मद (ﷺ) मुझे आप से येह कहना है कि अगर आप ने लड़ कर कुरैश को बरबाद कर के दुन्या से नेस्तो नाबूद कर दिया तो मुझे बताइये कि क्या आप से पहले कभी किसी अरब ने अपनी ही क़ौम को बरबाद किया है ? और अगर लड़ाई में कुरैश का पल्ला भारी पड़ा तो आप के साथ जो येह लश्कर है मैं इन में ऐसे चेहरों को देख रहा हूं कि येह सब आप को तन्हा छोड़ कर भाग जाएंगे। उर्वह बिन मसऊद का येह जुम्ला सुन कर हज़रते अबू बक्र सिद्दीक رضي الله عنه को सब्रो ज़ब्त की ताब न रही। उन्हों ने तड़प कर कहा कि ऐ उर्वह ! चुप हो जा ! अपनी देवी "लात" की शर्मगाह चूस, क्या हम भला अल्लाह के रसूल को छोड़ कर भाग जाएंगे।
उर्वह बिन मसऊद ने तअज्जुब से पूछा कि येह कौन शख़्स है ? लोगों ने कहा कि “येह अबू बक्र हैं।" उर्वह बिन मसऊद ने कहा कि मुझे उस जात की क़सम जिस के कब्जे में मेरी जान है, ऐ अबू बक्र ! अगर तेरा एक एहसान मुझ पर न होता जिस का बदला मैं अब तक तुझ को नहीं दे सका हूं तो मैं तेरी इस तल्ख़ गुफ्तगू का जवाब देता। उर्वह बिन मसऊद अपने को सब से बड़ा आदमी समझता था। इस लिये जब भी वोह हुज़ूर ﷺ से कोई बात कहता तो हाथ बढ़ा कर आप की रीश मुबारक पकड़ लेता था और बार बार आप की मुक़द्दस दाढ़ी पर हाथ डालता था। हज़रते मुगीरा बिन शअबा जो नंगी तलवार ले कर हुज़ूर ﷺ के पीछे खड़े थे। वोह उर्वह बिन मसऊद की इस जुरअत और हरकत को बरदाश्त न कर सके। उर्वह मसऊद जब रीश मुबारक की तरफ़ हाथ बढ़ाता तो वोह तलवार का क़ब्ज़ा उस के हाथ पर मार कर उस से कहते कि रीश मुबारक से अपना हाथ हटा ले। उर्वह बिन मसऊद ने अपना सर उठाया और पूछा की ये कौन आदमी है ? लोगों ने बताया कि येह मुग़ीरा बिन शअबा हैं। तो उर्वह बिन मसऊद ने डांट कर कहा कि ऐ दगाबाज़ ! क्या मैं तेरी अहद शिकनी को संभालने की कोशिश नहीं कर रहा हूं ? (हज़रते मुग़ीरा बिन शअबा ने चन्द आदमियों को क़त्ल कर दिया था जिस का खून बहा उर्वह बिन मसऊद ने अपने पास से अदा किया था येह उसी तरफ़ इशारा था) इस के बाद उर्वह बिन मसऊद सहाबए किराम को देखने लगा और पूरी लश्कर गाह को देखभाल कर वहां से रवाना हो गया।
उर्वह बिन मसऊद ने हुदैबिया के मैदान में सहाबए किराम की हैरत अंगेज़ और तअज्जुब खैज़ अकीदत व महब्बत का जो मन्ज़र देखा था उस ने इस के दिल पर बड़ा अजीब अषर डाला था। चुनान्चे उस ने कुरैश के लश्कर में पहुंच कर अपना तअष्पुर बयान किया |(सीरते मुस्तफा ﷺ सफ़ह- 352)
मौलाना
अब्दुल लतीफ नईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ (बिहार। सीमांचल)
8294938262