( क़याम में हाथ ना बांधे तो नमाज़ होगी ?)
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि बरकातूहसवाल : क्या फरमाते हैं मुफ्तियाने किराम और उलमा ए एज़ाम इस मसअला के बारे में अल्लाहु अकबर कह कर नाफ के निचे हाथ बाधंना कैसा है ? और अगर कोई हाथ ना बांधे और ऐसे ही खुले हाथ छोड़ कर नमाज़ पढ़े तो नमाज़ का क्या हुक्म है ? उलमा ए किराम रहनुमाई फरमाएं फक़त सलाम
साइल : अब्दुल्लाह गुजराती
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि बरकातूह
जवाब : मर्दों के लिए नमाज़ में क़याम की हालत में नाफ के नीचे हाथ बांधना सुन्नत है अब अगर किसी ने नाफ के नीचे हाथ ना बांधे तो तर्के सुन्नत की वजह से उसकी नमाज़ मकरुहे तंज़िही होगी।सुनन अबू दाऊद में है
" من السنة وضع الکف علی الکف فی الصلاة تحت السرة "
तर्जुमा : नमाज़ में दाएं हाथ को बाएं हाथ पर नाफ के नीचे रखना सुन्नत है।(अबू दाऊद)
हुज़ूर सदरुश्शरीआ मुफ्ती मुहम्मद अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा तहरीर फरमाते हैं कि:" बाद तकबीर फौरन हाथ बांध लेना यूं कि मर्द नाफ के निचे दाहिने हाथ की हथेली बाएं कलाई के जोड़ पर रखे, बाज़ लोग तकबीर के बाद हाथ सीधे लटका लेते हैं फिर बांधते हैं यह ना करना चाहिए बल्कि नाफ के नीचे लाकर बांध ले।और आगे फरमाते हैं कि जिस क़याम में ज़िक्र मसनून हो उस में हाथ बांधना सुन्नत है।और तर्के सुन्नत पर नमाज़ के मकरूह होने के मुतअल्लिक़ फरमाते हैं:और अलावा तकबीरे तहरीमा और तकबीरात या समिअल्लाहु लिमन हमीदा या रब्बना व ल कल हम्द में अगर महज़ ऐलान का क़सद हो तो नमाज़ फासिद ना होगी, अलबत्ता मकरूह होगी कि तर्के सुन्नत है।(बहारे शरीअत जिल्द 1 सफा 522 मतबूआ मकतबतुल मदीना दअवते इस्लामी)
अज़ क़लम
अब्दुल वकील सिद्दीक़ी नक्शबंदी फलोदी राजस्थान अल हिंद (खादिमुत्तदरीस : अल जामिअतुस सिद्दीक़िया सोजा शरीफ बाड़मेर राजस्थान अल हिंद)
15 जमादिल उला 1446 हिजरी मुताबिक़ 18 नवम्बर 2024 ब रोज़ सोमवार
हिंदी अनुवादक
मुहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी दुदही कुशीनगर
मुक़ीम : पुणे महाराष्ट्र
19 जमादिल उला 1446 हिजरी मुताबिक़ 22 नवम्बर 2024 ब रोज़ जुमआ
मीन जानिब : मसाइले शरइय्या ग्रुप