( नमाज़ जहरी और सिर्री ( ज़ोर से और आहिस्ता ) की हक़ीक़त किया है ? )
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहूसवाल :- किया फरमाते हैं उलमाए किराम व मुफ्तियाने इज़ाम इस मसअला में कि इमाम नमाज़े ज़ोहर और असर में आहिस्ता और बाक़ी नमाज़ो में ज़ोर से क़िरात क्यों करता है, इस की किया वजह है ?
साइल :- रजबुल क़ादरी
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
अल'जवाब :- मुफस्सिरे क़ुरआन मुअल्लिफे नूरुल अनवार उस्ताज़े औरंगज़ेब आलमगीर शैख मुल्ला अहमद जीवन अलैहिर्रहमा फरमाते हैं कि रसूले करीम अलैहिस्सलाम नमाज़ में क़ुरआन शरीफ के तिलावत के वक्त आवाज़ बुलंद (ज़ोर) कर लिया करते थे जब मुशरिकीन (काफिर) सुनते तो लगवियात (बेहूदा,बेकार) बातें कहते जिस पर अल्लाह तआला ने यह आयत नाज़िल फरमाई
وَ لَا تَجْهَرْ بِصَلَاتِكَ وَ لَا تُخَافِتْ بِهَا وَ ابْتَغِ بَیْنَ ذٰلِكَ سَبِیْلًا
तर्जमा: और अपनी नमाज़ न बहुत ज़ोर से पढ़ो न बिल्कुल आहिस्ता और इन दोनों के बीच में रास्ता चाहो (कंजुल ईमान, सूरह बनी इसराईल,आयत 110)
इस आयते करीमा के ज़रिए अल्लाह पाक ने हुक्म दिया कि अपनी आवाज़ आहिस्ता कर लें।(तफ़सीराते अहमदया, पेज 691 )
और खज़ाइनूल इरफान में इसी मक़ाम पर है कि मुशरिकीन जब क़ुरआन पाक सुनते तो अल्लाह पाक और हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलाम और हज़रत ज़िब्रईल अलैहिस्सलाम को गलियां देते इस पर यह आयते करीमा नाज़िल हुई, क्योंकि इन दोनों वक्तों यानी ज़ोहर और असर में क़ुफ्फ़ार व मुशरिकीन आवारा घूमते थे और मग़रिब के वक्त खाने पीने में लग जाते, ईशा के वक्त सो जाते और फज्र में जागते ही न थे, इस लिये दोनों वक्तों में किरात का आहिस्ता हुक्म हुआ, अब अगर चे वह हालत नहीं है मगर हुक्म वही है ताकि सुन्नी मुसलमान इस मगलूबियत को याद करके गलबए इसलाम ( इसलाम की बुलंदी ) पर अल्लाह तआला का शुक्र अदा करें ।वल्लाहु तआला आलम व रसूलहु आलम
अज़'क़लम
मौलाना मुहम्मद अली क़ादरी वाहिदी
हिन्दी अनुवादक
मुजस्सम हुसैन (गोड्डा, झारखण्ड)
मुक़ीम:- ( गाजीपुर उत्तर प्रदेश )
मिन जानिब:- मसाइले शरइया ग्रुप