(हज़रत जुबैर बिन अव्वाम)
आप भी अशरह ए मुबश्शेरह में से हैं
यह हुज़ूरे अक़्दस की फूफी सफ़िया के बेटे हैं। इस लिए यह रिश्ता में शहंशाहे मदीना के फूफी ज़ाद भाई और हज़रत सैय्यदा ख़दीजा के भतीजे और हज़रत अबू बकर सिद्दीक़ के दामाद हैं। यह भी अशरे मुबश्शेरा यअनी उन दस ख़ुश नसीब सहाबा-ए-किराम में से हैं जिन को हुज़ूरे अकरम ने दुनिया ही में जन्नती होने की ख़ुशख़बरी सुनाई।
बहुत ही बलन्द क़ामत, गोरे और छरेरे बदन के आदमी थे और अपनी वालिदा माजिदा की बेहतरीन तरबियत की बदौलत बचपन ही से निडर, मेहनती, बलन्द हौसला और निहायत ही पक्के इरादे और बहादुर थे। सोलह बरस की उम्र में उस वक़्त इस्लाम क़बूल किया जब कि अभी छ (6) या सात (7) आदमी ही इस्लाम लाए हुए थे। तमाम इस्लामी लड़ाइयों में अरब के बहादुरों के मुक़ाबले में आप ने जिस मुजाहिदाना बहादुरी का मुज़ाहिरा किया तवारीख़े जंग में उस की मिसाल मिलनी मुश्किल है। आप जिस तरफ तलवार लेकर बढ़ते कुफ़्फ़ार के परे के परे काट कर रख देते।
आप को हुज़ूरे अक़्दस ने जंगे खंदक के दिन "हवारी" (मुख़्लिस व जाँ निसार दोस्त) का ख़िताब अता फरमाया। आप जंगे जुमल से बेज़ार होकर वापस तशरीफ ले जा रहे थे कि अम्र बिन जरमोज़ ने आप को धोका दे कर शहीद कर दिया। शहादत के समय आप की उम्र शरीफ़ चौंसठ (64) बरस की थी। सन् 36 हिजरी में सफ़्वान में आप की शहादत हुई।
पहले यह "वादी अलसबाअ" में दफ़न किए गए मगर फिर लोगों ने उन की मुक़द्दस लाश को क़ब्र से निकाला और पूरे इज़्ज़त व एहतेराम के साथ लाकर आप को शहर बसरा में सुपुर्दे ख़ाक किया जहाँ आप की क़ब्र शरीफ मश्हूर ज़ियारत गाह है।(अकमाल स 595 वग़ैरा)
आप के करामात
फ़तहे फुसतात
मिस्र की जंग में हज़रत अम्र बिन आस अपने लश्कर के साथ फुसतात के क़िला का कई महीना से घेराव किए हुए थे लेकिन उस मज़बूत क़िला को फतह करने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। आप ने दरबारे ख़िलाफत में कुछ और फौज़ों से इमदाद के लिए दरख़्वास्त भेजी। अमीरूल मोमिनीन हज़रत फारूक़े आज़म ने दस हज़ार मुजाहिदीन और चार अफसरों को भेज कर यह तहरीर फरमाया कि उन चार अफसरों में हर अफसर दस हज़ार सिपाही के बराबर हैं। उन चार अफसरों में हज़रत जुबैर भी थे।
फ़तहे फुसतात
मिस्र की जंग में हज़रत अम्र बिन आस अपने लश्कर के साथ फुसतात के क़िला का कई महीना से घेराव किए हुए थे लेकिन उस मज़बूत क़िला को फतह करने का कोई रास्ता नज़र नहीं आ रहा था। आप ने दरबारे ख़िलाफत में कुछ और फौज़ों से इमदाद के लिए दरख़्वास्त भेजी। अमीरूल मोमिनीन हज़रत फारूक़े आज़म ने दस हज़ार मुजाहिदीन और चार अफसरों को भेज कर यह तहरीर फरमाया कि उन चार अफसरों में हर अफसर दस हज़ार सिपाही के बराबर हैं। उन चार अफसरों में हज़रत जुबैर भी थे।
हज़रत अम्र बिन आस ने हज़रत जुबैर को हमला आवर घेराव करने वालों की फौज का कमान्डर बना दिया। हज़रत जुबैर ने क़िला का चक्कर लगा कर अन्दाज़ा फरमा लिया कि इस क़िला को फतह करना बहुत ही दुश्वार है। लेकिन आप ने अपने फोजी दस्ते को मुख़ातब करके फरमाया कि ऐ बहादुराने इस्लाम ! देखो में आज अपनी हस्ती को इस्लाम पर फिदा और क़ुर्बान करता हूँ। यह कह कर आप ने बिल्कुल अकेले क़िला की दीवार पर सीढ़ी लगाई और तनहा क़िला के ऊपर चढ़ कर "अल्लाहु अकबर "का नअरा मारा और एक दम फसील के नीचे किला के अन्दर कूद कर अकेले ही क़िला की अन्दरूनी फौज से लड़ते हुए क़िला का फाटक खोल दिया और इस्लामी फोज नअरए तकबीर बलन्द करते हुए क़िला के अन्दर दाख़िल हो गई और एक ही लम्हे में किला फतह हो गया।
इस मज़बूत व पक्का क़िला को जिस बे मिसाल हिम्मत और बहादुरी से मिनटों में फतह कर लिया। उस को तारीख़े जंग में करामत के सिवा कुछ भी नहीं कहा जा सकता। अमीरे लशकर हज़रते अम्र बिन आस भी उस करामत को देखकर दंग रह गए। क्योंकि वह कई माह से उस क़िला का घेराव किये हुए थे। मगर बावजूद अपनी जंगी महारत और आला दर्जे की कोशिशों के वह उस क़िला को फतह नहीं कर सकते थे। (किताब अश्रए मुबश्शरह सफा 224)
हज़रत जुबैर की शकल में हज़रत जिब्राईल
हुज़ूरे अकरम ने फरमाया कि जंगे बद्र के दिन हज़रत जिब्रईल पीले रंग का अमामा बांधे हुए हज़रत जुबैर की शकल व सूरत में फ्रिश्तों की फौज लेकर उतरे थे। (कन्जुल उम्माल ज़ि 12 स 127 मतबूआ हैदराबाद)
पेश करदा
मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही
ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद
नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या