(गलत किरात करने वाले को जो मना ना करे उनकी इक़्तिदा का क्या हुक्म है?)
सवाल: क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में के ज़ैद कुरआन मजहूल पढ़ता है तो उस के पीछे नमाज़ पढ़ना कैसा है ? मैं जानता हूं कि कुरआन को मजहूल पढ़ना जायज़ नहीं अगर ज़बर को अलिफ में तब्दील कर देता है तो ऐसे में नमाज़ भी ना होगी जैसे अनअमता को खींच कर पढ़ दे और एक मुफ्ती साहब हैं जो ज़ैद के पीछे नमाज़ नहीं पढ़ते मगर लोगों को मना भी नहीं करते हैं और ना ज़ैद को समझाते हैं अगर मुफ्ती साहब चाहें तो ज़ैद को मस्जिद से निकाल भी सकते हैं मुफ्ती साहब की गांव में बहुत चलती है, तो अर्ज़ यह करना है की मुफ्ती पर क्या हुक्म शरीअत का लगेगा उनके पीछे नमाज़ होगी या नहीं?
साईल: गुलाम हुसैन बरकाती मधुबनी (बिहार)
जवाब: कुरआन को मजहूल पढ़ना यानी खींच तान कर पढ़ना नाजायज़ है इस तरह कुरआन पढ़ने वाले के पीछे नमाज़ ना होगी जितनी नमाज़े पढ़ी गई हैं उन सब को दोहराना वाजिब है
मुफ्ती साहब को चाहिए था कि ज़ैद को इमामत ना करने दें बल्कि इमामत से हटा दें अगर मुफ्ती साहब को इतना एख्तियार है कि ज़ैद को मुसल्लए इमामत से हटा सकते हैं तो उन पर लाज़िम है कि हटा दें इरशाद ए रब्बानी है
کَانُوْا لَا یَتَنَاہَوْ نَ عَنْ مُّنْکَرٍ فَعَلُوْ ہُ لَبِئْسَ مَا کَانُوْا یَفْعَلُوْنَ
जो बुरी बात करते आपस में एक दूसरे को ना रोकते ज़रूर बहुत ही बुरे काम करते थे(सुरह माइदा ७९)
नीज़ इरशाद फरमाता है
لَوْ لَا یَنْہٰہُمُ الرَّبّٰنِیُّوْنَ وَ الْاَحْبَارُ عَنْ قَوْ لِہِمُ الْاِثْمَ وَ اَکْلِہِمُ السُّحْتَ لَبِئْسَ مَا کَانُوْا یَصْنَعُوْنَ
उन्हें क्यों नहीं मना करते उनके पादरी और दुरवेश गुनाह की बात कहने और हराम खाने से बेशक बहुत ही बुरे काम कर रहे हैं,(सुरह माइदा ६३)
मगर चूंकि दौरे हाज़िर में फितना व फसाद हद से बढ़ा हुआ है कि किसी को मसअला बताओ तो अमल करने के बजाए फितना फैलाना शुरू कर देते हैं नीज़ इस्लाह करने वाले के खिलाफ तरह-तरह झूठी बातें गढ़ कर निकलवा देते हैं और तक़रीबन हर जगह का यह मामला है कि हर गांव में दो चार फितना फसाद करने वाले मौजूद रहते हैं (फक़ीर ने मुफ्ती साहब से फोन पर राब्ता किया तो मालूम हुआ कि यही हाल मज़कूरा गांव का है कि ज़ैद को हटाने की सूरत में फितना खड़ा हो जाएगा) ऐसी सूरत में इस फेल को बुरा जानने और उनसे दूर रहने में ही भलाई है:जैसा की हदीस शरीफ में
عَنْ طَارِقِ بْنِ شِھَابٍ قَالَ: اَوَّلُ مَنْ قَدَّمَ الْخُطْبَۃَ قَبْلَ الصَّلَاۃِ مَرْوَانُ، فَقَامَ رَجُلٌ فَقَالَ:یَا مَرْوَانُ خَالَفْتَ السُّنَّۃَ، قَالَ: تُرِکَ مَا ھُنَاکَ یَا اَبَا فُلَانٍ، فَقَالَ ابوسَعیْدٍ: (اَلْخُدْرِیُّ رضی اللہ عنہ ) اَمَّاھٰذَا فَقَدْ قَضٰی مَا عَلَیْہِ، سَمِعْتُ رَسُوْلَ اللّٰہِ صلی اللہ علیہ وآلہ وسلم یَقُوْلُ مَنْ رَاٰی مِنْکُمْ مُنْکَرًا فَلْیُغَیِّرْہُ بِیَدِہِ، فَاِنْ لَمْ یَسْتَطِعْ فَبِلِسَانِہِ، فَاِنْ لَمْ یَسْتَطِعْ فَبِقَلْبِہٖ
सैयदिना तारिक़ बिन शहाब कहते हैं पहला शख्स, जिसने नमाज़(ईद) से पहले खुत्बा दिया, वह मरवान है, एक आदमी खड़ा हुआ और उसने कहा ऐ मरवान तूने सुन्नत के मुखालिफत की है, उसने कहा ऐ अबू फुलां वह वाले उमूर छोड़ दिए गए हैं, सैयदिना अबू सईद खुदरी रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने कहा इस आदमी ने अपनी जिम्मेदारी अदा कर दी है, मैं ने रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम को यह फरमाते हुए सुना तुम में जो आदमी बुराई को देखे, उसको अपने हाथ से तबदील करे अगर इतनी ताकत ना हो तो ज़बान से रोके और अगर इतनी ताक़त भी ना हो तो दिल से बुरा समझे (मुसनद अहमद : ११४८०)
अराकिन या इमामत करवाने वालों को चाहिए की ज़ैद को मुसल्ल ए इमामत से हटा दें जब तक किरात ना दुरुस्त हो जाए इमामत ना करने दें उन्हें मुकम्मल एख्तियार है, साईल ने लिखा की मुफ्ती साहब उनकी इक़्तिदा में नमाज़ नहीं पढ़ते हैं बल्कि तन्हा पढ़ते हैं तो यह फेल ही बता रहा है कि मुफ्ती साहब उनकी इमामत से बेज़ार हैं, और उनकी इमामत को दुरुस्त नहीं जानते लिहाज़ा मुफ्ती साहब शरअन गुनहगार नहीं हैं और ना ही मुफ्ती साहब की इमामत पर फर्क़ पड़ेगा बल्कि उनकी इक़्तिदा दुरुस्त है, और यह खयाल करना कि मुफ्ती साहब जानने के बावजूद मना नहीं करते हैं इसलिए शरअन गुनाहगार होंगे तो इस ज़ुमरे में साइल भी आएगा और वह भी मुजरिम ठहरेगा क्योंकि साईल ने तहरीर किया है कि मुझे मालूम है इस तरह किरत करना दुरुस्त नहीं है तो फिर साईल को चाहिए था कि मना करे मगर साईल मना करने के बजाए मुफ्ती साहब के खिलाफ फतवा तलब किया तो जो हुक्म मुफ्ती साहब पर लगेगा वही साईल पर लगेगा और अगर साईल फितने का उज़्र पेश करे तो वही उज़्र मुफ्ती साहब पर भी होगा
والله تعالی اعلم بالصواب
अज़ क़लम
फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)