(फासिक़ को सलाम करना या सलाम का जवाब देना कैसा है ?)

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 (फासिक़ को सलाम करना या सलाम का जवाब देना कैसा है ?)


अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि बरकातूह
सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए दीन व मुफ्तियाने शरअ मतीन इस मसअला में कि क्या फासिक़ को सलाम करने में पहल करना और उसके सलाम का जवाब देना दुरुस्त है ? जवाब इनायत फरमाएं करम होगा।
साइल : मुहम्मद हुसैन सहरवरदी गोखांतर उत्तर गुजरात

व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि बरकातूह
जवाब : फासिक़ को सलाम करने में इब्तिदा करना मकरूह है कि सलाम करने में उसकी ताज़िम है और फासिक़ मुअल्लिन शरअन क़ाबिले ताज़िम नहीं बल्कि क़ाबीले एहानत है, और फासिक़ मुअल्लिन की ताज़िम करने से अल्लाह तबारक व तआला नाराज़ होता है।हदीस मुबारक में है

"اذا مدح الفاسق غضب الرب واھتزلہ ذالک العرش"

यानी जब फासिक़ की तारीफ (ताज़िम) की जाती है तो रब तबारक व तआला गज़ब फरमाता है और अर्शे इलाही हिल जाता है। (शोबूल ईमान लिलबैहक़ी जिल्द 4पेज 231)

हज़रत अल्लामा इमाम मुहम्मद बिन अली अलाउद्दीन हसकफी अलैहिर्रहमा तहरीर फरमाते हैं

"و یکرہ السلام علی الفاسق لو معلنا والّا لا"

यानी और फासिक़ को सलाम में इब्तिदा करना मकरुह है अगर मुअल्लिन हो वरना नहीं।(दुर्रे मुख्तार जिल्द 6 सफा 415)
फतावा अलमगीरी में है

"واختلف فی السلام علی الفاسق فی الاصح انہ لا یبدا بالسلام کذا فی التمرتاشی"

यानी और फासिक़ को सलाम करने में एख्तिलाफ है और ज़्यादा सही यह है कि फासिक़ को सलाम में इब्तिदा ना की जाए, ऐसा ही तमर ताशी में है।(फतावा अलमगीरी जिल्द 5 सफा 326)

फासिक़ के सलाम का जवाब देना वाजिब है जैसा की बहरुल उलूम हज़रत अल्लामा मुफ्ती अब्दुल मन्नान आज़मी मुबारक पूरी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं" फासिक़ मुअल्लिन की ताज़िम या उस से इब्तिदा बिही सलाम मना है, अलबत्ता वह सलाम करे तो उसके सलाम का जवाब देना वाजिब है।(फतावा बहरुल उलूम जिल्द 5 सफा 518)

ऊपर जो बयान किया गया कि फासिक़ को सलाम करना मकरूह है तो इस से मुराद मकरुहे तहरीमी है।
जैसा की दुर्रे मुख्तार में है कि (سلامک مکروہ) इस के तेहत हज़रत अल्लामा शामी तहरीर फरमाते हैं" ظاہرہ التحریم " यानी अल्फाज़ के ज़ाहिर से मकरुहे तहरीमी साबित होता है।( रद्दुल मुह

और एक दूसरी जगह किताबुल हज़्र वल अबाहा में है कि हर मकरूह यहां भी मुतलक़न मकरूह है।और इसके तेहत दुर्रे मुख्तार ही में है कि"मकरूह जो मकरूहे तहरीमी होता है, और इसी में है कि जब लफ्ज़ कराहत मुतलक़ ज़िक्र किया जाए तो इस से मुराद कराहते तहरीमी होती है।रद्दुल मुहतार)

अलबत्ता फासिक़ को सलाम ना करने में अगर ऐज़ा रसानी का अंदेशा हो या कोई मजबूरी या हाजत हो तो इस सूरत में उस को सलाम करना मकरुहे तहरीमी नहीं बल्कि जायज़ है।जैसा की रद्दुल मुहतार(قولہ : ودع کافراً)के तेहत हज़रत अल्लामा शामी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं

" ای الا اذا کان لک حاجۃ الیہ فلا یکرہ السلام علیہ "

यानी अगर तुझे उस फासिक़ मुअल्लीन से हाजत हो तो उसे सलाम करना मकरूह नहीं।
(ردالمحتار علی الدرمختار شرح تنویر الابصار۔ج٢ ص ٣٧٤ کتاب الصلوۃ باب مایفسد الصلاۃ وما یکرہ فیھا)
फक़ीहे आज़मे हिंद हज़रत अल्लामा सदरुश्शरीआ मुफ्ती अमजद अली आज़मी अलैहिर्रहमा फरमाते हैं
" जो शख्स ऐलानियां फिस्क़ करता हो उसे सलाम ना करे, किसी के पड़ोस में फुस्साक़ रहते हैं मगर उन से यह अगर सख्ती बरतता है तो वह उसको ज़्यादा परेशान करेंगे और नर्मी करता है तो उन से सलाम कलाम जारी रखता है तो वह एज़ा पहुंचानेे से बाज़ रहते हैं तो उनके साथ ज़ाहिरी तौर पर मेल जोल रखने में यह माज़ूर है "
(बारे शरीअत जिल्द 2 हिस्सा 12 सफा 66)
वल्लाहु तआला व रसूलुहुल आला आलमु बिस्सवाब अज़्ज़ व जल व सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम
अज़ क़लम : सैय्यद मुहम्मद नज़ीरुल हाशमी सहरवरदी शाही दारुल क़ज़ा व आस्तान ए आलिया गौसिया सहरवरदिया दाहोद शरीफ अल हिंद
13 जमादिल औव्वल 1446 हिजरी मुताबिक़ 16 नवम्बर 2024 ब रोज़ हफ्ता
हिंदी अनुवादक : मुहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी सेमरबारी दुदही कुशीनगर
मुक़ीम : पुणे महाराष्ट्र
18 जमादिल औव्वल 1446 हिजरी मुताबिक़ 21 नवम्बर 2024 ब रोज़ जुमेरात
मीन जानिब : मसाइले शरइय्या ग्रुप

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