(मीलदे मुस्तफा 08)

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(मीलदे मुस्तफा 08)

सवाल18: ईद मीलादुन्नबी ﷺ के मौके पर नात शरीफ पढ़ी जाती है, क्या रसूलुल्लाह ﷺ के ज़माने में भी नात पढ़ी गई 

जवाब 18: हज़रत अनस बिन मालिक रदियल्लाहु तआला अन्हु से मरवी है कि हुज़ूर नबीए अकरम ﷺ मदीने की गलियों से गुज़रे तो चन्द लड़कियाँ दफ़ बजा रही थीं और गा रही थीं कि हम बनू नज्जार की लड़कियाँ कितनी खुशनसीब हैं कि मुहम्मद मुस्तफा ﷺ ( जैसी हस्ती ) हमारे पड़ौसी हैं। तो हुज़ूर नबीए अकरम ﷺ ने ( उनकी नात सुन कर ) इरशाद फरमाया कि मेरा ( अल्लाह ) ख़ूब जानता है कि मैं भी तुमसे बेहद मुहब्बत रखता हूँ। इनके अलावा और भी हदीसें मौजूद हैं कि रसूले अकरम ﷺ के ज़माने में नात पढ़ी गई और अलहम्दु लिल्लाह 1443 सालों से ये सिलसिला जारी है और अहले मुहब्बत आज भी आका ﷺ की बारगाह में नातों का तोहफा पेश करते रहते हैं।

सवाल19: क्या मुहद्दिसों, इमामों और ओलमा-ए-इस्लाम ने भी मीलादुन्नबी ﷺ मनाया या उसे मनाने को जाइज़ कहा है ? 

जवाब19: अलहम्दु लिल्लाह मीलादुन्नबी ﷺ ऐसी अजीम इबादत और बरकत भरी खुशी है कि उम्मते मुस्लिमा के बड़े बड़े मुहद्दिस, मुफस्सिर, फकीह, तारीखनिगार ( इतिहासकार ) और ओलमा-ए-उम्मत ने ईद मीलादुन्नबी ﷺ पर बेशुमार किताबें लिखीं और अमली तौर पर खुद मीलादुन्नबी मनाया है। उनकी लम्बी फेहरिस्त है, कुछ के नाम हम यहाँ तहरीर कर रहे हैं : 

 1- अल्लामा इब्ने जौज़ी ( 597 हिजरी )

2 - इमाम शम्सुद्दीन जज़री ( 660 हिजरी ) 

3 – शारेह् मुस्लिम इमाम नौवी के शैख़ इमाम अबू शामा ( 665 हिजरी ) 

4 - इमाम कमालुद्दीन अल - अफ़वदी ( 748 हिजरी ) 

5 – इमाम ज़हबी ( 748 हिजरी ) 

6 – इमाम इब्ने कसीर ( 774 हिजरी ) 

7- इमाम शम्सुद्दीन बिन नासिरूद्दीन दमिश्की ( 842 हिजरी ) 

8 – इमाम अबू ज़र अल - इराक़ी ( 826 हिजरी ) 

9- शारेहे बुखारी साहिबे फतहुलबारी अल्लामा इब्ने हजर अस्कुलानी ( 852 हिजरी ) 

10- इमाम शम्सुद्दीन सख़ावी ( 902 हिजरी ) 

11 - इमाम जलालुद्दीन सुयूती ( 911 हिजरी ) 

12 - इमाम क़स्तलानी ( 923 हिजरी ) 

13 – इमाम मुहम्मद बिन यूसुफ़ अल - सालिही ( 942 हिजरी ) 

14 - इमाम इब्ने हजर मक्की ( 973 हिजरी ) 

15 – शैख अब्दुल हक मुहद्दिस देहलवी ( 1052 हिजरी ) 

16 – इमाम ज़रक़ानी ( 1122 हिजरी ) 

17 – हज़रत शाह वलीयुल्लाह मुहद्दिस देहलवी ( 1179 हिजरी ) 

18 – ओलमा - ए - देवबन्द के पीर व मुर्शिद हाजी इमदादुल्लाह मुहाजिर मक्की ( 1233 हिजरी ) 

19- मौलाना अब्दुल हई लखनवी ( 1304 हिजरी ) वगैरा(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 21/22)

सवाल 20:क्या मुहद्दिसों, इमामों और ओलमा-ए-इस्लाम ने भी मीलादुन्नबी ﷺ मनाया या उसे मनाने को जाइज़ कहा है ? 

जवाब20: आज कल कुछ जाहिल और फ़ितना फैलाने वाले लोग कहते हैं कि मीलाद मनाना बिदअत है। तो क्या ये लोग बता सकते हैं कि क्या ये सारे के सारे मुहद्दिस, मुफ़स्सिर, इमाम और आलिम हज़रात बिदअती और गुमराह थे ? ( मआजल्लाह ) इमाम क़स्तलानी शारेहे बुखारी फरमाते हैं : हुज़ूर ﷺ की पैदाइश के महीने में अहले इस्लाम हमेशा से मीलाद की महफ़िल मुन्अकिद करते चले आ रहे हैं, खुशी के साथ खाना पकाते हैं, आम दावत करते हैं, इन रातों में किस्म किस्म की ख़ैरात करते हैं, ख़ुशी जाहिर करते हैं, नेक कामों में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लेते हैं और आप ﷺ की मीलाद शरीफ़ पढ़ने का एहतेमाम करते हैं जिनकी बरकतों से अल्लाह का उन पे फ़ज़्ल होता है और ख़ास तजर्बां है कि जिस साल मीलाद हो वो मुसलमानों के लिये अमन का बाइस है। ( ज़रकानी अलल - मवाहिब , पेजः 139 )

सवाल 21: आज जिस तरह ईद मीलादुन्नबी ﷺ मनाई जाती है ये तो बिदअत है। 

जवाब 21:सबसे पहले तो ये जानना ज़रूरी है कि शरीअत में बिदअत से मुराद क्या है और उसकी कितनी किस्में हैं ? इमाम नौवी रहमतुल्लाहि अलैहि ( 676 हिजरी ) फ़रमाते हैं : शरीअत में बिदअत से मुराद वो काम हैं जो हुज़ूर नबी - ए - अकरम ﷺ के में न थे और ये बिदअत हसना और क़बीहा में तक़सीम होती है। ( नौवी : शरहे सहीह मुस्लिम, हिस्साः 1 , हदीस : 286 ) 

    ज़माने मसलन हज़रत उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु के दौर में लोग अलग अलग तरावीह की नमाज़ पढ़ा करते थे, उन्होंने सबको एक इमाम के पीछे जमा किया और फ़रमायाः ये अच्छी बिदअत है। ( सहीह बुखारी , हिस्साः 1, हदीस : 2010 ) (ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह नः22/23)

सवाल 22:आज जिस तरह ईद मीलादुन्नबी ﷺ मनाई जाती है ये तो बिदअत है। 

जवाब22: पता चला कि हर बिदअत ऐसी नहीं जो बन्दे को जहन्नम ले जाए बल्कि बिदअत की एक किस्म हसना भी है जो जन्नत ले जाने वाली है। अगर हर बिदअत गुमराही है तो हज़रत उमर फारूक रदियल्लाहु तआला अन्हु की इस बिदअत पर आप क्या फ़तवा लगाएँगे ?

इमाम शाफ़ई रहमतुल्लाहि अलैहि फरमाते हैं कि हर काम जो शरीअत के किसी अस्ल के नीचे आ रहा हो और उसको पहली बार किया जा रहा हो फिर भी उसको बिदअते ज़लाला कह कर गुमराही नहीं करार दिया जाएगा बल्कि उसे हक और सवाब कमाने का एक ज़रिया करार दिया जाएगा। ( मनाकिबे शाफेई : बैहकी, हिस्सा : 1 पेजः 469 )(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 24)

मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ
8294938262

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