(मीलदे मुस्तफा 06)

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(मीलदे मुस्तफा 06)

सवाल 11:इस्लाम में दो ही ईदें हैं, ये तीसरी ईद कहाँ से आई ? 

जवाब 11: हदीस में है : जुमुआ का दिन तमाम दिनों का सरदार है और अल्लाह के यहाँ तमाम दिनों से अज़ीम है और ये अल्लाह के यहाँ ईदुल अजहा और ईदुल फित्र दोनों से अफ़ज़ल है। ( अल - मोजमुल कबीरः तिबरानी, हदीस : 4387 ) 

अब सवाल ये है कि आखिर क्या वजह है कि जुमुआ का दिन ईद भी है, सब दिनों से अफ़ज़ल भी है बल्कि ईदुल अज़हा और ईदुल फित्र से भी अफ़ज़ल है ? इसका जवाब भी हदीसे पाक से मुलाहज़ा करें : हज़रत औस बिन औस रादिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फ़रमायाः तुम्हारे दिनों में सबसे अफ़ज़ल दिन जुमुआ का दिन है। इस दिन हज़रत आदम عَلَيْهِمُ السَّلاَم की विलादत हुई इसी रोज़ उनकी रूह कब्ज़ की गई और इसी रोज़ सूर फूँका जाएगा। पस इस रोज़ कसरत से मुझ पर दुरूद भेजा करो, बेशक तुम्हारा दुरूद मुझ पर पेश किया जाता है। ( सुनने इब्ने माजा, हदीस : 1138,(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 14)

सवाल12: इस्लाम में दो ही ईदें हैं, ये तीसरी ईद कहाँ से आई ? 

जवाब 12: ज़िक्र की गई हदीसों से मालूम हुआ कि जुमुआ का दिन आदम अलैहिस्सलाम की पैदाइश का दिन है इसलिये ये ईद का दिन है। तो भला जिस दिन दोनों जहाँ के सरदार, दोनों जहाँ की रहमत ﷺ की मीलाद ( पैदाइश ) हो, वोह ईद का दिन क्यों न हो ? बल्कि ये तो ईदों की ईद है कि हमें सारी ईदें इसी ईद की वजह से मिली हैं। 

     इन हदीसों से ये भी मालूम हुआ कि मुसलमान साल में दो ईदें नहीं बल्कि 50 से ज़्यादा ईदें मनाता है। अलहम्दु लिल्लाह इसके अलावा कुरआन पाक में हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की दुआ नक्ल है कि तर्जमाः ऐ हमारे रब हम पर आसमान से नेमतों का दस्तरख्वान नाज़िल फ़रमा कि वो हमारे लिये ईद करार पाए और वो तेरी तरफ से निशानी बने और तू बेहतर रिज्क अता फरमाने वाला है। ( सूरए - माइदा, आयतः 114 ) 

     गौर फरमाएँ ! कि हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम दस्तरख्वान नाज़िल होने के दिन को ईद करार दे रहे हैं। अब आप खुद फ़ैसला करें कि जिस दिन फख्रे मौजूदात, दुनिया की पैदाइश का सबब हुज़ूर ﷺ जलवागर हों वो दिन क्यों न ईद क़रार पाए ?(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 15)


सवाल 13:हुज़ूरे अकदस ﷺ की पैदाइश का दिन 12 रबीउल अव्वल नहीं है बल्कि 9 रबीउल अव्वल है। लिहाज़ा इस दिन क्यों खुशी नहीं मनाते हैं ? 

जवाब 13: हुज़ूर ﷺ की पैदाइश की तारीख़ के मुतअल्लिक मुअर्रिख़ीन ( historians ) की राय मुख़्तलिफ है, मगर जिस तारीख़ पर हदीस के बहुत से इमामों और ओलमा - ए- केराम ने इत्तिफाक किया, वो बारह रबीउल अव्वल है। हवाले पेशे ख़िदमत हैं : 

     1- हाफिज़ इब्ने कसीर ( 774 हिजरी ) फ़रमाते हैं : इब्ने अब्बास रादिअल्लाहु तआला अन्हु इरशाद फरमाते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ की विलादत आमे फील, पीर के दिन, माह रबीउल अव्वल की 12 तारीख़ को हुई। ( अल - बिदाया वन्निहाया, हिस्साः 2, पेजः 282 ) 

     इसके अलावाः सीरतुन्नबी : इब्ने कसीर, हिस्साः 1, पेज : 143, मतबूआः हाफ़िज़ी बुक डिपो, देवबन्द 

    सीरतुन्नबी : इब्ने हशाम, हिस्साः 1, पेजः 182 , मतबूआः एतिक़ाद पब्लिकेशंज हाउस ( नई देहली ) 

  मदारिजुन्नुबुव्वा, हिस्साः 2, पेजः 23, मतबूआः अदबी दुनिया ( नई देहली ) 

5 – तारीखे इब्ने खुलदून, हिस्साः 1, पेजः 32, मतबूआः मक्तबा फ़ारान , देवबन्द 

    ज़िक्र की गई किताबों में और दूसरी कई किताबों में यही लिखा है कि आका ﷺ की विलादत पीर के दिन बारह रबीउल अव्वल को हुई। 

नोट : अगर मुखालिफ़ीन अब भी ज़िद पर हैं कि विलादत 9 रबीउल अव्वल को हुई तो हम कहते हैं आप 9 तारीख़ को ही ईद मीलादुन्नबी ﷺ मनाएँ, हमें कोई एतराज़ नहीं।(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 16)


मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ
8294938262

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