(मीलादुन्नबी 03)

0

(मीलादुन्नबी ﷺ पर किये गए सवालात और उनके जवाबात)

 सवाल 1 : क्या आप कुरआन मजीद से रसूल ﷺ की आमद पर खुशी मनाने की दलील दे सकते हैं ?

जवाब 1  जी हाँ ! अल्लाह तआला कुरआन मजीद में इरशाद फ़रमाता है : तर्जमाः ऐ हबीब आप फ़रमा दीजिये कि अल्लाह के फज्ल और उसकी रहमत मिलने पर मुसलमानों को चाहिये कि खुशियाँ मनाएँ। ( सूरए - यूनुस, आयतः 58 )

☞ इस आयत में ये हुक्म दिया गया कि जब अल्लाह का फ़ज़्ल और उसकी रहमत नाज़िल हो तो मोमिनों को उस पर खुशियाँ मनानी चाहिये। अब किसी ज़हन में ये सवाल आ सकता है कि क्या रसूलुल्लाह ﷺ अल्लाह की रहमत हैं ? जो हम उनकी आमद पर खुशियाँ मनाएँ। इसका जवाब भी खुद कुरआन दे रहा है। मुलाहज़ा करें : हमने तुम्हें नहीं भेजा मगर रहमत सारे जहान के लिये। " ( सूरए - अम्बिया, आयतः 107 )

☞ अलहम्दुलिल्लाह रसूले अरबी ﷺ का इस दुनिया में तशरीफ लाना रहमत है और पहली आयत में अल्लाह तआला हमें रहमत मिलने पर खुशियाँ मनाने का हुक्म दे रहा है। अब बताओ मुसलमानो ! रसूलुल्लाह ﷺ की ज़ाते मुबारक से बढ़ के रहमत कौन हो सकता है ! तो मीलादुन्नबी ﷺ पर खुशियाँ क्यों न मनाया जाए ? अलहम्दुलिल्लाह कुरआन की इन आयतों से आमदे रसूल ﷺ पर खुशियाँ मनाना साबित हुआ।(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 08)

सवाल 2 : - क्या आप साबित कर सकते हैं कि रसूलुल्लाह ﷺ ने अपनी मीलाद मनाई ? 

जवाब 2 : - जी हाँ ! हदीस मुलाहज़ा फरमाएँ : हज़रत अबू क़तादा रादिअल्लाहु तआला अन्हु से रिवायत है कि रसूले अकरम ﷺ से पीर ( सोमवार ) के दिन रोज़ा रखने के बारे में पूछा गया तो आप सल्लल्लाहु ﷺ ने इरशाद फरमाया : इसी रोज़ मेरी विलादत हुई, इसी रोज़ मेरी बिअसत हुई और इसी रोज़ मेरे ऊपर कुरआन नाज़िल किया गया। ( सहीह मुस्लिम, हदीस 2807,

इस हदीस से साबित हुआ कि रसूलुल्लाह ﷺ ने हर पीर के दिन रोज़ा रख कर अपनी मीलाद का खुद एहतेमाम किया है। लिहाजा साबित हुआ कि दिन मुकर्रर करके यादगार मनाना सुन्नत है। अलहम्दुलिल्लाह (ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 09)

सवाल 3 : क्या सहाबा केराम रिदवानुल्लाहि अन्हुम ने भी कभी मीलाद की महफ़िल मुन्अकिद की है ? 

जवाब 3 : जी हाँ ! इमाम बुखारी के उस्ताद इमाम अहमद बिन हम्बल लिखते हैं : सय्यिदुना अमीर मुआविया रादिअल्लाहु तआला अन्हु फ़रमाते हैं : एक रोज़ ﷺ का अपने असहाब के हलके से गुज़र हुआ, आप ﷺ ने फ़रमायाः क्यों बैठे हो ? उन्होंने कहाः हम अल्लाह तआला का ज़िक्र करने और उसने हमें जो इस्लाम की हिदायत अता फरमाई उस पर हम्द व सना ( तारीफ़ ) बयान करने और उसने आप ﷺ को भेज कर हम पर जो एहसान किया है उसका शुक्र अदा करने के लिये बैठे थे। आपने फ़रमायाः अल्लाह की क़सम ! क्या तुम इसी के लिये बैठे थे ? सहाबा ने अर्ज़ कियाः अल्लाह की क़सम ! हम सब इसी के लिये बैठे थे। इस पर आप ﷺ ने फ़रमायाः अभी मेरे पास जिबरईल अलैहिस्सलाम आए थे, उन्होंने कहा कि अल्लाह तुम्हारी वजह से फ़रिश्तों पर फख़र कर रहा है। ( सुनने नसई, हदीस : 5443 , अल - मोजमुल कबीरः तिबरानी, हदीस : 16057 ) 

    इस हदीस से साबित हुआ कि सहाबा हुज़ूर ﷺ की मीलाद ( पैदाइश ) पर शुक्र अदा करते थे। यहाँ ये बात भी काबिले ज़िक्र है कि जो लोग हुज़ूरे अक़दस ﷺ की मीलाद की महफिल सजाते हैं और उसमें शरीक होते हैं, अल्लाह ऐसे बन्दों पर फ़रिश्तों की जमाअत में फख़र फ़रमाता है और हाँ ! हुज़ूरे अक़दस ﷺ का ज़िक्र अल्लाह ही का ज़िक्र है इस पर कुरआन और हुज़ूर ﷺ की हदीसें गवाह हैं।(ईद मीलादुन्नबी सवाल व जवाब की रोशनी में सफह 09)

मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ
8294938262

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
एक टिप्पणी भेजें (0)
AD Banner
AD Banner AD Banner
To Top