(जल्वए आला हज़रत०५ )

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 (जल्वए आला हज़रत०५ )

    सबबे  तालीफ़ : नबीर - ए - आला हजरत शहजाद - ए - रेहाने मिल्लत हजरत अल्हाज कारी मुहम्मद तस्लीम रजा खाँ साहब नूरी मद्दा जिल्लहुल - आली से एक मुलाकात के मौका पर मेरी बाज़ तालीफात मसलन “ इमाम अहमद रज़ा और इल्मे हदीस ( पाँच जिल्द ) सीरते मुस्तफा जाने रहमत , ( चार जिल्द ) फरमूदाते आला हजरत और उलूमुल - कुरआन वगैरह का जिक्र हुआ तो उ न्होंने उन्हें खूब सराहा और दुआयें दीं। नीज़ फरमाया कि “ फैजाने आला हज़रत " के नाम से एक किताब की ज़रूरत महसूस की जा रही है अगर आप उसे मुरत्तब करें तो बहुत बेहतर होगा आप उसकी तबाअत व इशाअत की फिक्र न करें मैं इसे " इमाम अहमद रजा लाइब्रेरी " की तरफ से छपवा दूंगा। उनके हुक्म पर मैंने अस्बात में जवाब तो दे दिया मगर कम माइगी और बेबज़ाअती का एहसास बशिद्दत दामनगीर हुआ और मैं सोचता रहा कि निशाने मंजिल के बगैर अज्मे सफर कैसे करूँ। बात तो समझ में आ गई थी कि " फैजाने आला हज़रत के नाम से किताब की वाकई ज़रूरत है जो मसाजिद व मजालिस वगैरह में अवामुन्नास को पढ़ कर सुनाया जा सके और जिसमें मसलके आला हज़रत के मुताबिक अकाइद व ईमानियात और मरासिम अहले सुन्नत वगैरह का जामेअ ब्यान हो!

    मैं इसी गौर व फिक्र में मुस्तगरक व महव था कि शहज़ाद - ए - रेहाने मिल्लत कारी मुहम्मद तस्लीम रज़ा खाँ साहब नूरी से फिर दोबारा फोन पर बात हुई तो आपने मजीद ताकीद के साथ फरमाया कि आप जरूर फैजाने आला हज़रत ' की तरतीब शुरू कर दें और यह कि इस बात का भर पूर ख्याल रखा [ जाए कि इसके तमाम मज़ामीन व मवाद तसानीफ आला हज़रत ही से माखूज व मुस्तखरज हों क्योंकि मेरे रज़ा ने अपनी तसानीफे आलिया में कुछ भी नहीं छोड़ा सब कुछ ब्यान फरमा दिया है , उनकी तसानीफ में दुनिया - ए - इल्म य तहकीक के कीमती व अनमोल खजाने मौजूद हैं बस उन है। गौहर हाए आबदार निकालने की जरूरत है अगर ऐसा हो गया तो उन से दुनिया की आँखें चौंध और खीरा हो जाएँगी और दुनिया पुकार उठेगी कि वाकई इमाम अहमद रज़ा बरेलवी अपना जात व सिफात में एक जहाने हैरत और इल्म व फन की आमाजगाह हैं!(बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह-54)

    सबबे  तालीफ़ : फिर कुछ दिनों के बाद शहजाद - ए - रेहाने मिल्लत के हुक्म व ईमा के मुताबिक जाते वाजिबुल - वजूद पर वसूक व तवक्कल करते हुए इस अजीम काम का आगजा कर दिया कि इस अंजाम व इस्तिताम तक पहुँचाने वाला सिर्फ और सिर्फ वही खालिक व मालिक है मैं इब्तिदा इंतिहा में उसी रहमत व बरकात का उम्मीदवार व मुतलाशी हूँ। मैं कदम आगे बढ़ाता रहा मंजिल खुद बखुद सिमटती चली गई और यके बाद दीगर निशाने राह की तलाश जारी रही मेरी जुस्तान और मेरा कारवाने शौक बढ़ता चला गया इधर शहजाद - ए - रेहाने मिल्लत मद्दा जिल्लहुल - आलो के पैहम इसरार व तकाजे होते रहे जिसके नतीजे में आज अहले सुन्नत की मेज़ पर इस अजीम सौगात व अरमुगाने खुलूस को पेश करते हुए मैं जेहनी फख्न व इंबिसात और दिली फरहत व शादमानी महसूस कर रहा हूँ।

    अगर यह काविश बारगाहे रब्बुल - इज़्जत व बारगाहे रिसालत में मक्बूल हो जाए तो मेरी उम्मीदों और आरजुओं की इंतिहा हो जाएगी और इस किताब के जरिए अगर एक शख्स भी राहे हिदायत व सिराते मुस्तकीम पर गामज़न व आमिल हो गया तो यह मेरे लिए सुर्ख ऊँट से बेहतर और दारैन की सआदत व फीरोज़ बख़्ती होगी और उसे सरमाय - ए - आखिरत समझने में हक बजानिब हूँगा।(बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह-54)

    तशक्कुर व इम्तिनान : नबीर - ए - आला हज़रत शहजाद - ए - रेहाने मिल्लत हजरत अल्हाज कारी मुहम्मद तस्लीम रज़ा खाँ साहब नूरी मद्दा जिल्लहुल - आली की बारगाह में हम तशक्कुर व इम्तिनान का खिराजे तहसीन पेश करते हैं कि उन्हीं के ईमा व इशारे पर “ फैजाने आला हजरत तरतीब दी गई और उनके मुसलसल इसरार व तकाजे की बुनियाद पर सिर्फ पाँच महीने की कलील मुद्दत में इसकी तकमील अमल में आई फिर उन्होंने अपना काइम करदा इदारा " इमाम अहमद रजा लाइब्रेरी रज़ा नगर सौदाग्रान बरैली शरीफ की जानिब से इसकी तबाअत व इशाअत का बारेगिराँ उठाया इसके लिए हम मजीद उनकी बारगाहे रफ़ी में हदिय - ए - तशक्कुर पेश करते हैं।

    बरैली शरीफ अहले सुन्नत व जमाअत का अज़ीम मरकज़ है जहाँ पर हमा औकात तिशनगाने उलूमे नब्बीया का हुजूम व मेला लगा रहता है और कुछ लोग तो सिर्फ तसानीफे रजा की ज़्यारत व दीदार ही करना चाहते हैं , इस लाइब्रेरी का एक फाइदा यही होगा कि मुतमन्नी और शाइक लोग तसानीफे रज़ा की नज़र भर ज़्यारत कर सकेंगे और इल्मी इस्तिफादा करने वाले उन से बआसानी इस्तिफादा करके अपनी इल्मी प्यास बुझायेंगे। और यह कि आल हज़रत के शहर में अगर आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी कुदेसा सिरहू की तसानीफ से तिशनगी जाइल व दूर न होगी तो कहाँ दूर होगी। मुझे यकीन है कि ' इमाम अहमद रज़ा लाइब्रेरी अहले जौक को सामाने तस्कीन व तसल्ली फराहम करेगी और उसकी हरकत व बरकत से अहले शौक की तलाश व जुस्तजू को मंज़िले मक्सूद मिलेगी।(बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह-54)

 मौलाना 
अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ (सीमांचल)

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