(जल्वए आला हज़रत 09)

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 (जल्वए आला हज़रत 09)

                            

आला हज़रत और फैजाने आला हज़रत


➲  आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी कुद्देसा सिर्रहू ने इन अय्याराने जमाना का दागदार व बदनुमा चेहरा बेनकाब किया उनकी नापाक कोशिशों को तश्त अज़ बाम व वाशिगाफ किया , उनके मक्र व फरेब से दुनिया को आगाह व आशना कराया और बताया कि यह रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की शाने रफी में गुस्ताखियों के सबब से काफिर व मुरतद और इस्लाम से खारिज हैं , मक्का मुअज्जमा और मदीना तैय्यबा के उलमा - ए - किराम व मुफ्तियाने इजाम ने उन पर कुफ्र व इर्तिदाद का हुक्म सादिर फरमाया है इसलिए यह हकीकी सुन्नी या हन्फ़ी नहीं हैं यह अपने दावे में सरासर झूठे और काज़िब हैं उन्होंने बद अकीदगी व बद मज़हबी को फरोग दिया बिदआत व खुराफात की आब्यारी की यह कुफ्र व शिर्क के अलमबरदार हैं , इन्होंने काफिरों की हमनवाई की और उनकी खुशी को अपनी खुशी जाना , शैतान की शागिर्दी की और अल्लाह व रसूल को नाराज व नाखुश किया , हाँ हकीकी सुन्नी व हन्फी वह है जो आशिके रसूल हो , बारगाहे रिसालत का गुस्ताख व मुज्मि न हो सहाबा व ताबईन और असलाफ व अकाबिर का अदब दाँ हो , औलिया - ए - उम्मत के तसर्राफात व इख़्तियारात का काइल व मोअतकिद हो।


➲  इस नुक्त - ए - नज़र से जब आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी की तालीमात व तज्दीदी कारनामों का जाइजा लिया जाता है तो अंदाज़ा होता है कि उन्होंने जाते रसूले अकरम सल्लल्लाह तआला अलैहि वसल्लम से इश्क व एहतराम और उन से वालिहाना वारफ़्तगी व शैफ्तगी का दर्स मुहब्बत दिया है , सहाबा व ताबईन की बारगाहों का अदब बताया , औलिया - ए - उम्मत और असलाफ व अकाबिरे मिल्लत के मकाम व मंसब से आगाह व आशना कराया और बताया कि हकीकी सुन हन्फी वही है जो इन औसाफे मजकूरा का हामिल व अमीन हो वरना फिक्र व ऐतकाद की दुरुस्तर्ग के बगैर आदमी सच्चा पक्का मुसलमान नहीं हो सकता बल्कि उसके बगैर वह कुफ्र व शिर्क है दलदल से ही निकल नहीं सकता। 


➲  चूंकि आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी की मसाई जमीला और कोशिशों से दीन व सुव्रत को फरोग मिला आईने सुन्नत को रिवाज दिया गया , खास तौर से अहले . सुत्रत व जमाअत , बद अकीदों और बद मज़हबों मुम्ताज व नुमायाँ हो गए इसलिए वक्त के मशहूर व मुक्तदिर उलमा ने तशख्खुस व तफरीक के लिए “ मसलके आला हज़रत " कहना शुरू किया , मसलके आला हज़रत कहने से सहीहुल - अकीदा व बदअकीदा सुन्नी हन्फी के दरम्यान तपीक व तमीज पैदा हो गई। 


••• ➲  दूध का दूध और पानी का पानी हो गया!..


( बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह-50)



 मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी

बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ (सीमांचल)

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