(जल्वए आला हज़रत 08)

0

 (जल्वए आला हज़रत 08)

                       

आला हज़रत और फैजाने आला हज़रत


➲  आला हजरत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी ने जब आँखें खोली उस वक़्त आलमे इस्लाम खास तौर से हिन्दुस्तान के अन्दर हर तरफ फ़ितनों का दौर दौरा था , बदअकीदगी व बद मज़हबी और विदआत व खुराफ़ात की बीखकुनी की बजाए उन्हें फरोग व रिवाज दिया जा रहा था , खुश अकीदा मुसलमानों को राहे रास्त पर लाने के नाम पर शिर्क व बिदअत की सनद दी जा रही थी सहीहुल - अकीदा लोगों को ईमान व अकीदे की हिफाज़त के नाम पर दीन व सुन्नत से दूर किया जा रहा था , दीन व शरीअत में रखना अंदाज़ी करने वाले कोई गैर नहीं बल्कि वह ईमान फरोश मौलवी थे , मौलवियत के लिबादे में वह मज़हब व मिल्लत के दुश्मन व बदख़्वाह थे वह दुश्मन के लिबास में नहीं बल्कि दोस्त बन कर साथी व हमनवा के लिबास में सामने आए , दोस्तों की शक्ल में अदावत व दुश्मनी का जाल बिछाया , अँग्रेज़ की गुलामी और उन्हें खुश करने के लिए मुसलमानों में तफरका पैदा किया , रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की शाने अक्दस में गुस्ताखियाँ की और नाज़ेबा कलिमात कहे जिसके नतीजे में मुसलमान दो फिरकों में बट गए और मिल्लते इस्लामिया का शीराज़ा मुंतशिर हो गया मगर वह बजुझुम ख्वेश अहले सुन्नत के खैर ख्वाह व हमनवा ही बने रहे और अपने को अहले सुन्नत का काइद व पेशवा ही कहा किरदार व गुफ़्तार और कौल व अमल के इस तजाद व तखालुफ से मिल्लते इस्लामिया को वह नुक्सान व जरर पहुँचा जिसकी तलाफ़ी मुम्किन नहीं!


➲  हासिल यह कि जो लोग गुस्ताखे रसूल थे , जिन्होंने फितने पैदा किए , गरोह बन्दियाँ की जिनकी रेशा दवानियों से मिल्लते इस्लामिया बेचैन च मुज्तरिब हो गई यह अज़राहे फरेब यही दार करते रहे कि हम ही अहले सुन्नत के ठेकेदार व काइद हैं हमारा मजहबे अहले सुन्नत से जो रिश्ता हैं वह अटूट व पाइदार है , उन्होंने अपने आपको सुन्नी भी कहलाया और हन्फी भी , चूंकि वर सगीर की मुस्लिम अक्सरीयत सुन्नी हनफी की थी और आज भी दुनिया की मुस्लिम आबादी का बेशतर हिस्सा सुन्नी हन्की हैं इसी सुन्नी व हन्फी की आवाज़ व लेबल से उन्होंने सहीहुल - अकीदा मुसलमानों को अपने दामे तज्वीर में फंसाया इसी नाम से मुसलमानों को धोखा और फरेब में डाला , ऐसी सूरत में अहले सुन्नत के तशख्खुस व बका के लिए किसी ऐसे इम्तियाजी नाम व शिनाख्त की ज़रूरत थी जिस से फिरकाहाए बातिला और हकीकी सुन्नी व हन्फी में फर्के इम्तियाज़ पैदा हो जाता!..


(बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह-50)




 मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी

बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ (सीमांचल)

Tags

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
एक टिप्पणी भेजें (0)
AD Banner
AD Banner AD Banner
To Top