(हज करने का आसान तरीका)

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(हज करने का आसान तरीका)

अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू 
उलमाए किराम व मुफ्तियाने इज़ाम से गुजारिश है कि हज करने का आसान तरीका लिख दें बहुत मेहरबानी होगी 
साइल:- अब्दुल कादिर  सुल्तानपुर 
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू 
बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम 

अल'जवाब:-  अल्लाह तआला का इरशाद है ( وَلِلّٰہِ عَلَی النَّا سِ حِجُّ الْبَیْتِ مَنِ اسْتَطَاعَ اِلَیْہِ سَبِیْلًا)और अल्लाह के लिये लोगों पर उस घर का हज करना है जो उस तक चल सके ( कंजुल ईमान, सूरह आल इमरान आयत नo 97 )

हज की तीन किस्में हैं (1) तमत्तो (2) क़िरान (3) इफ़राद, चूंकि हज तमत्तो आसान है इस लिये हुज्जाज किराम अक्सर इसी तरह हज करते हैं लिहाज़ा हम इसी को आसान लफ्जों में बयान करते हैं 

नोट:- सफ़र हज व उमरह करने का तरीक़ा इस से पहले वाले फतवा में मौजूद है वहां से इस्तेफादा करें।

हुज्जाज किराम जब उमरह से फारिग हो जाते हैं तो उनके लिये कोई खास अमल नहीं रह जाता जिस तरह वह चाहें नफ़ल तवाफ़ करते रहें फिर 8 ज़िल'हिज्जा यानी हज के पहले दिन गुस्ल करें और अगर गुस्ल न कर सकें तो वज़ू करके पहले की तरह एहराम बांध लें और मस्जिदे हराम में किसी जगह 2 रकअत नमाज़ एहराम की नियत से पढ़ें सलाम फेरने के बाद सर से चादर हटा कर नियत करें (اَللّٰھُمَّ اِنِّی اُرِیْدُ الْحَجَّ فَیَسِّرْ ہُ لِی وَتَقَبَّلْہُ مِنِّی)ऐ अल्लाह मैं हज का इरादा करता/करती हूं तू इसको मेरी तरफ से क़बूल फरमा ( याद रहे उमरह में उमरह की नियत करनी है और हज में हज की नियत करनी है)

उसके बाद 3 बार ऊंची आवाज़ से लब्बैक कह कर दुआ मांगे अब हज का एहराम बंध गया वह सारी पाबंदियां जो उमरह के एहराम के वक्त थीं लौट आईं, एहराम के बाद काबा शरीफ का 1 नफ़ल तवाफ़ रमल व इज़्तबाअ के बगैर करें फिर ज़ोहर से पहले मेना (जो मक्का से क़रीब 5 किलो मीटर है) पहुंच जाना चाहिए कि हुज़ूर नबी करीम अलैहिस्सलाम ने अरफ़ात जाने से पहले मेना में 5 नमाज़ें अदा फरमाई हैं, मेना जाते हुए लब्बैक,दुआ और दुरूद शरीफ की कसरत करें, मेना में रात भर ठहरें और आज ज़ोहर से नवीं की सुबह तक 5 नमाज़ें यहीं पढ़ें कुछ लोग आठवीं को मेना में नहीं ठहरते और सीधे अरफ़ात में पहुंच जाते हैं उनकी इत्तेबाअ में यह सुन्नत न छोड़ें बल्कि आठवीं को ठहर कर नवीं को जाएं ।

9 ज़िलहिज्जा यानी हज के दूसरे दिन मेना में नमाजे फज्र से फारिग हो कर लब्बैक, ज़िक्र और दुरूद शरीफ में मशगूल रहें, जब धूप जबल सबीर (सबीर पहाड़) पर आ जाए जो मस्जिदे ख़फ़िफ़ के सामने है तो नाश्ता वगैरह से फारिग हो कर अरफात की तरफ रवाना हो जाएं (जो मेना से क़रीब 10 किलो मीटर है) और वहां ज़ोहर से पहले पहुंचने की कोशिश करें लब्बैक, दुआ और दुरूद शरीफ कसरत से पढ़ें, यही वह अरफात है जहां हुज़ूर पाक अलैहिस्सलाम ने 1 लाख 14 या 24 हज़ार सहाबा के मजमा में खुतबा दिया था और आयते करीमा (اَلْیَوْمَ اَكْمَلْتُ لَكُمْ دِیْنَكُمْ)आज मैने तुम्हारे लिये तुम्हारा दीन कामिल कर दिया (यानी दीने इस्लाम)नाज़िल हुई थी 

यही अरफात वह मुबारक मक़ाम है कि जहां नवीं ज़िलहिज्जा को ज़वाल के बाद से दसवीं की सुबह के पहले तक किसी वक्त हाज़िर होना ख्वाह एक ही घड़ी (लम्हे) के लिये हो हज का अहम फ़र्ज़ है कि अगर छूट जाए तो इस साल हज अदा होने की कोई सूरत ही नहीं है।

मक़ामे अरफात में पहुंचने के बाद जब जबले रहमत पर निगाह पड़े तो दुआ करें कि यह मकबूल होने का वक्त है मक़ामें अरफात पहुंच कर जहां जगह मिले वहीं ठहर सकते हैं मगर जबले रहमत के पास ठहरना अफज़ल है फिर वाकूफे अरफा करें इसका तरीक़ा यह है कि ज़ोहर से पहले अगर हो सके तो गुस्ल करें वरना वज़ू करने के बाद नमाज़े ज़ोहर अदा करें और असर के वक्त में असर की नमाज़ अदा करें, नमाज़ के बाद खूब-खूब दुआएं मांगे और कसरत से दुरूद पढ़ें 

नोट:- अगर नमाज़े ज़ोहर जमाअत से पढ़ना हो तो जमा बैनुल'सलातैन है यानी ज़ोहर और असर दोनों वक्त की ज़ोहर ही के वक्त में पढ़नी होगी मगर अकेले पढ़ने पर जमा बैनस'सलातैन नहीं है 

सूर्य डूबने के बाद मक़ामे अरफात से नमाज़ पढ़े बग़ैर मक़ामे मुज़दलफा के लिये रवाना हो जाएं (जो अरफात से तक़रीबन 5 किलो मीटर है) याद रहे कि सूर्य डूबने से पहले न जाएं वरना कफ्फारा की क़ुरबानी लाज़िम हो जाएगी।
मुज़दलफा पहुंचने के बाद ईशा के वक्त में नमाज़े मगरिब और ईशा अदा करें यहां जमा बैनस'सलातैन इस तरह है कि अज़ान और अकामत के बाद मगरिब की नमाज़ अदा की नियत से पढ़ें उसके बाद फौरन बगैर अक़ामत के ईशा की फ़र्ज़ नमाज़ पढ़ें फिर मगरिब की सुन्नत फिर ईशा की सुन्नत फिर वित्र पढ़ें याद रहे यहां दोनों नमाज़ को पढ़ने के लिये जमाअत शर्त नहीं अकेले पढ़ने वाला भी जमा बैनस'सलातैन करे।

मुज़दलफा में पूरी रात गुजरना सुन्नते मुअक्कदा है और ठहरने का असली वक्त सुबह सादिक़ से उजाला होने तक है यानी अगर कोई रात को गया और सुबह सादिक़ से पहले चला आया तो उस पर कफ्फारा की क़ुरबानी लाज़िम होगी, या सुबह उजाला होने के बाद गया तो उस पर भी कफ्फारा की क़ुरबानी लाज़िम होगी।

शैतान को मरने के लिये यहीं से कंकरियां चुने के बराबर कंकरियां चुन लें अगर तेरहवीं ज़िल'हिज्जा तक कंकरी मारनी है तो 70 कंकरी लें और अगर बारहवीं तक मारनी है तो 49 कंकरी लें।

10 ज़िल'हिज्जा यानी हज के तीसरे दिन सुबह सादिक़ तुलुअ (निकलने) होने के बाद नमाज़े फज्र अदा करके जहां जगह मिले वक़ूफ करें यानी ठहर कर लब्बैक, दुआ और दुरूद शरीफ पढ़ने में मसरूफ (बिज़ी,व्यस्त) रहें।

जब सूरज निकलने में 5 मिनट का वक्त बाक़ी रह जाए तो मेना की तरफ रवाना हो जाएं, मेना पहुंच कर पहले सबसे बड़े शैतान को कंकरी मारें, बीच के और छोटे शैतान को आज कंकरी नहीं मारनी है, कंकरी मारने का वक्त 10 ज़िल'हिज्जा से 11 ज़िल'हिज्जा की सुबह सादिक़ तक है लेकिन 10 ज़िल'हिज्जा को सूरज निकलने के बाद से ज़वाल तक कंकरी मारना सुन्नत है।

नोट:- कंकरी कोई और नहीं मार सकता अगर दूसरा कोई मारेगा तो अदा न होगी और कफ्फारा की क़ुरबानी लाज़िम आएगी।

शैतान को एक एक कंकरी मारनी होगी सातों को एक साथ हरगिज़ न मारें।कंकरी मारने के बाद क़ूर्बानी करें अगर क़ुरबानी करने की ताक़त न हो तो 3 रोज़े रखे यानी 7,8,9 ज़िलहिज्जा को रखें और 7 रोज़े घर आकर रखें, और अगर हाजी मालिके निसाब मुक़ीम है तो उस पर 2 क़ुर्बानी वाजिब है एक हज के शुकराने की और दूसरी बक़रईद की, तो अगर चाहें तो दोनों वहीं पर करें या शुकराने की वहां करें और बक़रईद की घर पर करा दें।

क़ुरबानी के बाद क़िबला रुख बैठ कर हजामत बनवाएं यानी सर मुंडाएं या बाल कुतरवाएं, और औरतें सर का बाल उंगली के पोर के बराबर कुतरवाएं पूरे सर का बाल कुतरवाना मुस्तहब है और चौथाई सर का बाल कुतरवाना वाजिब है, मगर किसी ना महरम के हाथ से हरगिज़ न कुतरवाएं कि हराम है और जिसके सर पर बाल न हों वह उस्तरा फेरवाएं, फिर नाखून वगैरा तराशें बाल कुतरवाने से पहले नाखून हरगिज़ न तराशें वर्ना कफ्फारा की क़ुरबानी लाज़िम आएगी।

हजामत के बाद एहराम की सारी पाबंदियां खत्म हो गईं अब नहा धो कर सिले हुए कपड़े पहने, लेकिन बीवी से सोहबत करना उसे शहवत के साथ छूना और बोसा लेना अभी हलाल नहीं हुआ यह तवाफे ज़ियारत के बाद हलाल होगा।

क़ुर्बानी और हजामत से फारिग होने के बाद अफज़ल यह है कि आज ही यानी 10 ज़िल'हिज्जा को मक्का शरीफ पहुंचन कर तवाफे ज़ियारत,रमल और इज़्तबाअ के साथ करें फिर सफ़ा मरवा का सई करें यह तरीक़ा पहले बयान किया जा चुका है, फिर रात गुज़ारने के लिये मेना आ जाएं, और अगर दसवीं को तवाफे ज़ियारत का मौक़ा न मिल सके तो बारहवीं की मगरिब से पहले तक कर सकते हैं।

11 ज़िल'हिज्जा यानी हज के चौथे दिन तीनों शैतान को कंकरी मारें इसका वक्त सूरज ढलने के बाद से सुबह सादिक़ तक है, लेकिन सूरज डूबने के बाद बेला उज़्र मकरूह है।

11 ज़िल'हिज्जा को पहले सबसे छोटे शैतान को 7 कंकरी मारें कंकरियां मार कर कुछ आगे बढ़ जाएं और क़िब्ला की तरफ हाथ उठा कर इस तरह दुआ करें कि हथेलियां क़िब्ला की तरफ रहें फिर निहायत आजज़ी व इनकेसारी के साथ दुआ, दुरूद शरीफ और इस्तिगफ़ार में कम से कम 20 आयत पढ़ने के बराबर तक मशगूल रहें, फिर बीच वाले शैतान को 7 कंकरी मारें और दुआ व इस्तिगफ़ार करें, फिर बड़े शैतान को 7 कंकरी मारें अब वहां ठहरे नहीं बल्कि दुआ करते हुए फौरन पलट आएं।

12 ज़िल'हिज्जा यानी हज के पांचवें दिन भी तीनों शैतान को कंकरी मारें इसका वक्त भी ग्यारहवीं की तरह है यानी सूरज ढलने के बाद से है।

शैतान को कंकरी मारने के बाद अब अगर आप चाहें तो सूरज डूबने से पहले पहले मक्का शरीफ रवाना हो जाएं, सूरज डूबने के बाद जाना मायूब ( ऐब / अच्छा नहीं ) है।

और अगर तेरहवीं की सुबह हो गई तो फिर कंकरी मारें इसका वक्त सुबह से सूरज डूबने तक हे लेकिन सूरज ढलने यानी ज़वाल के बाद मारना सुन्नत है ( तेरहवीं को कंकरी मारे बगैर जाना जाइज़ नहीं कि जाने से कफ्फारा की क़ुरबानी लाज़िम आएगी )

हज मुकम्मल हो गया अब जब तक मक्का शरीफ में रहें जिस क़द्र (जितना हो सके) हो सके उमरा करें और तमाम अइज़्ज़ा व अक़रबा (दोस्त, रिश्तेदार) मोमिनीन व मोमिनात के लिये अच्छी दुआ करें और (हम सबके लिये खुसूसी तोर से ताज मुहम्मद क़ादरी वाहिदी और मुजस्सम हुसैन) को भी अपनी दुआ में याद रखें कि अल्लाह तआला इस मुबारक दयार की ज़ियारत नसीब फरमाए।

फिर जब रुखसत होना हो तो  एक और तवाफ करें जिसको तवाफे वदाअ कहते हैं, यह बाहर वालों पर वाजिब है कि बगैर रमल व इज़्तबाअ और सई के करें फिर मक़ामे इब्राहीम पर नमाज़ पढ़ें, फिर ज़मज़म शरीफ पियें मुलतज़म (एक जगह जहां दुआ क़ुबूल होती है) से लिपट कर हज क़ुबूल होने की और बार बार हाज़री की खूब दुआएं मांगें और दुरूद शरीफ कसरत से पढ़ें।

बारगाहे खुदा वंदी में दुआ है मौला करीम किसी क़िस्म की गलती हुई हो तो माफ फरमा और हम सबको हरमैन शरीफैन की ज़ियारत नसीब फरमा।आमीन बजाहे सय्यदिल मुरसलीन अलैहिस्सलातु वत्तसलीम 
अज़'क़लम 
मौलाना ताज मुहम्मद क़ादरी वाहिदी 
हिन्दी अनुवादक 
मुजस्सम हुसैन ( गोड्डा झारखण्ड )
मुक़ीम:- गाजीपुर उत्तर प्रदेश 
मिन जानिब:- मसाइले शरइया ग्रुप
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