(करामाते फारूक़े आज़म)

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                    (करामाते फारूक़े आज़म)

                        पोस्ट नंबर 21

  दो ग़ैबी शेर

  रिवायत है कि बादशाहे रूम का भेजा हुआ एक अजमी (अरब के रहने वालों के अलावा को अजमी कहते हैं।) काफ़िर मदीना मुनव्वरा आया और लोगों से हज़रत उमर का पता पुछा। लोगों ने बता दिया कि वह दोपहर को खजूर के बाग़ों में शहर से कुछ दूर कैलूला (दोपहर खाने के बाद आराम करना) फ़रमाते हुए तुम को मिलेंगे। यह अजमी काफ़िर ढूंडते ढूंडते आप के पास पहुँच गया और यह देखा कि आप अपना चमड़े का सोटा अपने सर के नीचे रख कर ज़मीन पर गहरी नींद में सो रहे हैं। अजमी काफ़िर इस इरादे से तलवार को नियाम से निकाल कर आगे बढ़ा कि अमीरूल मोमिनीन को क़त्ल करके भाग जाए मगर वह जैसे ही आगे बढ़ा बिल्कुल ही अचानक उस ने यह देखा कि दो शेर मुँह फाड़े हुए उस पर हमला करने वाले हैं। यह ख़ौफ‌नाक मन्ज़र देख कर वह ख़ौफ़ व दहशत से बिलबिला कर चीख़ पड़ा और उस की चींख की आवाज़ से अमीरूल मोमिनीन बेदार हो गए और यह देखा कि अजमी काफ़िर नंगी तलवार हाथ में लिए हुए थर थर काँप रहा है। आप ने उस की चीख और दहशत का सबब पुछा तो उस ने सच सच सारा वाक़िआ बयान कर दिया और फ़िर बलन्द आवाज़ से कलिमए तैयबा पढ़ कर मुशर्रफ बा इस्लाम हो गया और अमीरूल मोमिनीन ने उस के साथ निहायत ही रहम वाला बरताव फरमा कर उस के क़ुसूर को मआफ् कर दिया।

 (इज़ालतुल ख़िफ़ा मक़्सद नम्बर 2, स 172 व तफ्सीरे कबीर

जिल्द 5 स 478)

*तबसेराः*

यह रवायत बता रही है कि अल्लाह तआला अपने ख़ास बन्दों की हिफाज़त के लिए ग़ैब से ऐसा सामान इन्तिज़ाम फरमा देता है कि जो किसी के वहम व गुमान में भी नहीं आ सकता और यही ग़ैबी सामान औलिया अल्लाह की करामत कहलाते हैं। हज़रत शैख़ सअदी अलैहिर्रहमा ने उसी मज़मून की तरफ इशारा फरमाते हुए इरशाद फ़रमाया।

 محال است چون دوست دارد ترا که  دردست دشمن گزارد ترا

मुहाल अस्त चूँ दोस्त दारद तेरा कि दर दस्त दुश्मन गुज़ारद तेरा

तर्जमाः यअनी अल्लाह तआला जब तुम को अपना महबूब बन्दा बना ले तो फिर यह मुहाल है कि वह तुम को तुम्हारे दुश्मन के हाथ में परीशानी के आलम में छोड़ दे बल्कि उस की किब्रियाई ज़रूर दुश्मनों से हिफाज़त के लिए अपने महबूब बन्दों की ग़ैबी तौर पर इमदाद व नुसरत का सामान पैदा फरमा देती है और यही ईमानी मदद फ़्ज़्ले रब्बानी बन कर इस तरह महबूबाने इलाही की दुश्मनों से हिफाज़त करती है जिस को देख कर बे इख़्तियार यह कहना पड़ता है किः- "दुश्मन अगर क़वी अस्त निगहबान क़वी तरास्त"


*जारी रहेगा।*

*ان شاءاللہ*

          *(करामाते सहाबा हिंदी पेज 51/52/53)*


                      *पेश करदा*

*मोहम्मद सदरे आलम निज़ामी मिस्बाही*

*ख़तीब व इमाम गुर्जी अली बेग मस्जिद*

       *नया पुरवा फैज़ाबाद अयोध्या*

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