(जल्वए आला हज़रत 01)
हम आख़िर कार दींन क्यूँ हासिल करें ?
किसी भी हुनर वाले को हुनर बिला सीखे नहीं आता है ,बढ़ाई को बढ़ाई गीरी ,दर्जी को दर्जी गीरी और तबीब को हिकमत व डाक्टरी बिला सीखे और किसी को उस्ताद बनाये बगैर नहीं आती तो फिर दीन का अजीम इल्म बिला सीखे पढ़े और बिला उस्ताद बनाये कैसे हासिल हो सकता है।
क्या आपने कभी गौर किया कि दीन सीखने में आपने अपना उस्ताद किसको बनाया, या दीन सीखने और पढ़ने के लिए आप कितना वक्त निकालते हैं!?
वीडियो ,टेलीवीजन ,रोजनामे और अखबारात ,को देखने और पढ़ने में आप कितना वक्त बर्बाद करते हैं जबकि आज कल के प्रिन्ट और इलेक्ट्रानिक मीडिया में नफ्स में हैजानी कैफियत पैदा करने वाली फहश व उरियां तस्वीरें और जज्बातो ख्वाहिशात को भड़काने वाले मोहलिक मजागीन होते हैं ,हमारे बाज इस्लामी भाई बहन तो ऐसे है कि जब तक वह सुबह को पूरा अखबार नजर से चाट न लें तो शाम का खाना हजम नहीं होता ,अखबार और टेलीवीजन ही का नतीजा है कि हमारे बजुर्ग ,नौजवान और बच्चों से क्रिकेट प्लेयर्स ,फिल्मी अदाकारों ,और दुनिया के हुक्मरानों और सरबराहों के नाम और उनकी पूरी जिन्दगी के हालात पूछो तो फौरन बता देंगे।
लेकिन अगर अम्बिया अलैहिमुस्सलाम , सहाबा किराम ,अहले बैते इजाम ,अइम्मये अरबआ ,और औलियाये किराम रजिअल्लाहु अन्हुम अजमयीन के अस्माये गिरामी और उनकी सीरतों के बारे में पूछो तो जवाब मिलेगा कि यह सब हम नहीं जानते (मआजअल्लाह) इल्ला माशाअल्लाह ,जबकि उनकी जिन्दगियां और उनकी सीरतें हमारे लिए मियारे जिन्दगी हैं।
लिहाजा ऐ मेरे प्यारे भाइयो बहनो दीनी किताबें (इस्लामी लिटरेचर) पढ़ने पढ़ाने के लिए सुबह व शाम में से थोड़ा सा वक्त निकालो और मोअतबर उल्मायेदीन की किताबें पढ़ो।
इसलिए हम आपके लिए उस अज़ीम हस्ती की हयात ए ज़िन्दगी बताने वाले हैं जिन्हें आला हज़रत ,इमामे अहले सुन्नत, वली नीमत, अज़ीमुल बरकत, अज़ीमुल मरतबात, परवाना ए शम्मे रिसालत, मुजद्दिदे दींन व मिल्लत, हामी ए सुन्नत, माही ए बिद्दत, आलिम ए शरीअत, पीर ए तरीक़त, बाइसे खैर व बरकत, हज़रत अल्लामा मौलाना अल्हाज अल हाफिज अल कारी शाह इमाम अहमद रजा खान رحمۃ اللہ علیہ के नाम से न सिर्फ़ आप औऱ हम बल्कि पुरी दुनियां वाकिफ़ हैं!...
आला हज़रत और फैजाने आला हज़रत?
शैखुल - इस्लाम वल - मुस्लेमीन इमाम अहले सुन्नत मुजदिदे दीन व मिल्लत अजीमुल - बरकत आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी कुदसा सिरहू की ज़ाते मुकद्दसा आज मोहताजे तआढूफ नहीं अरब व अजम , एशिया व अफ्रीका ,बरे आज़म व बरे सगीर बल्कि आलमे इस्लाम में वह अहले सुन्नत व जमाअत के एक इमाम व मुक्तदा की हैसियत से जाने पहचाने जाते हैं।
वह मुसलमानाने आलम के दिलों की धड़कन और वज्हे इफ्तिखार हैं ,दुनिया की मुस्लिम अक्सरीयत उन्हें मज़हब व मिल्लत का मुहाफिज व पासवान जानती है उन्होंने जो अपकार व नज़ियात पेश किए उन्हें गले लगाया जा रहा है उनकी बसीरत व दानाई पर ज़माना हैरान है उन्होंने दीन व सुन्नत की तरवीज व तशहीर में नुमायाँ हिस्सा लिया।
मज़हबे हक और मसलके सही पर लोगों को गामज़न रहने की ताकीद व तल्कीन फरमाई फरज़न्दाने इस्लाम के दिलों में इश्के रिसालत की शम रौशन व फरोजाँ की ,उन्हें ईमान व इस्लाम के पाकीज़ा रास्ते पर चलने की दावते फिक्र दी ,इंसानों को नजात व सलामती के उसूल व जाब्ते बताए ,वह आशिके रसूल और दीने हक के सच्चे अलम बरदार थे ,उन्होंने खुश अकीदा मुसलमानों की इस्लाही व अमली मैदान में क्यादत व रहनुमाई की एक अच्छे और मुख्लिस काइद व रहनुमा का फरीज़ा अंजाम दिया।
आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी कुदेसा सिर्रहू हमारे असलाफ व अकाबिर की सच्चे यादगार और अमली तस्वीर थे उनके नुकूशे कदम से मटके हुए इंसानों को हिदायत व इरफान की मंज़िल मिली वह इल्म व ईकान के चिरागे राह और मीनार - ए - नूर थे जिनकी पुर नूर शुआओं से दिल व दिमाग के जुल्मत कदे रौशन व ताबनाक हो गए और कुलूब व अज़्हान में सुबहे उम्मीद का उजाला फैला!(बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 47)
आला हज़रत और फैजाने आला हज़रत !
आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी ने कौमे मुस्लिम को इंतिहाई नाजुक और कर्ब अंगेज़ हालात में संभाला दिया। जलालत व गुमराही के अमीक गार में उन्हें गिरने से बचाया मुसलमानों के इश्क व अकीदे की हिफाज़त फरमाई बद मजहबी व बद अकीदगी की तूफानी हवाओं की जद से उन्हें महफूज व मामून रखा , शिर्क व गुम्राही और बिदआत व खुराफात के बादे सुमूम से खुश अक़ीदा मुसलमानों के दीन व ईमान को झुलसने न दिया उनके वजूदे मसऊद के फैज़ व बरकत से कुफ्र व तुग़यान के तारीक व सियाह बादल छट गए अय्याराने जमाना के चेहरों का नकाब उलट दिया , मक्र व रेब के दबीज़ पर्दे तार तार हो गए , अपने खूने जिगर से उन्होंने मज़हब व मिल्लत की आबयारी की , दीन व सुन्नत के रहजनों का मुकाबला किया , शरीअते इस्लामिया की आहनी दीवार को गिरने न दिया , वह इस्लाम के मर्दै मुजाहिद और दीने हक के बतले जलील थे उन्हों ने आदा - ए - दीन की सरकूबी फरमाई , जुल्म व तअद्दी के खिलाफ आवाज बुलन्द की , वक्त के जालिम व जाबिर का पंजा मोड़ दिया हक के खिलाफ हर उठने वाली आवाज का गला चूंट दिया वह दीने हक के पैरू और सच्चे अलमबरदार थे , दीने इस्लाम का अलम बुलन्द किया उन्होंने फरजन्दाने तौहीद को हक व सदाकत का दर्से मुहब्बत और पैगामे अमन व अमान दिया!...
(बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 47)
मौलाना
अब्दुल लतीफ नईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ (सीमांचल)