(जल्वए आला हज़रत 07)

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  (जल्वए आला हज़रत 07)

                 

                        

आला हज़रत और फैजाने आला हज़रत !?


➲  इमामे इश्क व मुहब्बत आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी रजि अल्लाहु तआला अन्हु एक सच्चे आशिके रसूल थे उनका इश्क व अकीदत मशहूरे ज़माना और ख्वास व अवाम के नजदीक मुसल्लम है इश्क रिसालत ही उनकी जिन्दगी का अजीम सरमाया और असल मेश्यार था , जिसके अन्दर इश्क रिसालत की जल्वा फरमाई जितनी ज़्यादा होगी उसका ईमान उतना ही कामिल व कवी होगा उन्होंने इश्के रिसालत की बुलन्दी को तक्मीले ईमान की अलामत व पहचान करार दिया , दुनिया को उन्होंने अपने इश्क भरे पैगाम व दर्से मुहब्बत से सरशार व सरमस्त कर दिया , उनकी रफ्तार व गुफ्तार में इश्के बिलाल व उवैस की झलक मौजूद थी , उनके किरदार व अमल में सिद्दीके अक्बर का इश्क व इख्लास जल्वा फरमा था , उनकी फिक्र व नज़र में उमर फारूक का जोश व जज़्बा मोजज़न था , उनके आदात व अतवार में सलमान व बूज़र का सोज था , उनके अक्वाल व अपआल में इश्के रिसालत की रंग आमेजियाँ थीं , उन्होंने जो लिखा इश्के रिसालत के आईने में लिखा , उन्होंने जो कहा इश्के रसूल के सांचे में ढाल कर कहा उनकी तसानीफ का एक एक वर्क उनके आशिक सादिक होने का शाहिद व गवाह है उनकी सतर सतर से इश्के रसूल फूटा पड़ता है उनका सीना इश्के रसूल का मदीना और वह बज़ाते खुद इश्क व वफा के पैकर मुजस्सम थे , आज के दौर में बरे सगीर के अन्दर जब आशिके रसूल बोला जाता है तो आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा के सिवा कोई और मुराद नहीं होता वह आशिके अलल - इतलाक हैं , यह उनके आशिके पाकबाज होने की रौशन व वाजेह दलील है!...

(बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 48)




 मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी

बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ (सीमांचल)

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