(क्रिसमस डे पर मुबारक बादी पेश करना कैसा है?)
अस्सलामु अलैकुम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहूकिया फरमाते हैं उलमाए किराम व मुफ्तियाने इज़ाम इस मसअले में कि किया कोई क्रिसमस को अच्छा समझे बगैर या उसकी ताज़िम किये बगैर अगर कोई इसकी मुबारक बादी दे तो किया यह भी कुफ्र है?इसी तरह जो हमारे वज़रा (प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री) क्रिसमस की मुबारकबादी देते हैं तो किया यह भी कुफ्र होगा?और अगर कोई बैरूने मुल्क (दूसरे देश में) रहता हो और उसको मुबारकबादी देनी पड़ जाए तो किया यह भी कुफ्र है?बराए करम इस सिलसिले में जितनी भी सूरतें बनती हैं उनके बारे में बता दें।
साइल:- मुहम्मद शब्बर पाकिस्तान
व अलैकुम अस्सलाम व रहमतुल्लाहि व बरकातुहू
बिस्मिल्ला हिर्रहमा निर्रहीम
अल'जवाब :- क्रिसमस डे को अच्छा समझे बगैर या उसकी ताज़िम किये बगैर भी उसकी मुबारकबादी देना ना जाइज़ और हराम है।और जो वज़रा क्रिसमस डे की मुबारकबादी देते हैं या उनकी महफिल में शरिक होते हैं या ईसाई को उस दिन तोहफे तहाइफ (गिफ्ट) देते हैं अगर वह ताज़ीम के लायक़ समझ कर देते हैं तो कुफ़्र है उनपर तौबा तजदीदे ईमान लाज़िम है और अगर बीवी वाले हों तो तजदीदे निकाह भी ज़रूरी है, (यानी फिर से कलमा पढ़ना और फिर निकाह करना) और अगर किसी नेक और शरीअत के पाबंद पीर से मुरीद हों तो फिर से मुरीद हो लें और अगर ताज़ीम के लाइक समझ कर मुबारकबादी पेश नहीं करते हैं तो ना जाइज़ और हराम है।फ़तावा तातार खानियह में है
حکی عن ابی حفص الکبیر لو ان رجلا عبد اللہ خمسین سنۃ ثم جاء یوم النیروز فاھدی الی بعض المشرکین بیضۃ یرید بہ تعظیم ذلک الیوم فقد کفر باللہ واحبط عملہ
यानी हज़रत अबू हफ्स अलकबीर से हिकायत बयान किया गया कि अगर आदमी 50 साल अल्लाह तआला की इबादत करे फिर निरोज़ का दिन (काफिरों का खास दिन) आ जाए और वह उस दिन की ताज़ीम में मुशरिकीन को कोई तोहफा दे अगर चे अंडा ही हो तो बेशक उसने कुफ्र किया और उसके आमाल बर्बाद हो गए (तातार खानियह, अहकामुल मूर्तदीन पार्ट 5 पेज़ 354 कदीमी कुतुब खाना कराची)
और अगर कोई मुल्क के बाहर रहता हो या अपने मुल्क में रहता हो सब को इसकी मुबारकबादी ताज़ीम के लायक़ समझ कर पेश करना कुफ्र है और बगैर ताज़ीम के मुबारकबादी पेश करना ना जाइज़ और हराम है, मुसलमानों को इससे बचना निहायत अहम और ज़रूरी काम है, क्योंकि यह ईसाइयों का मज़हबी त्योहार है जिसको ईसाई बड़े धूम धाम से मनाते हैं और बाज़ ईसाई इसको यह मानते हैं कि आज ही के दिन (25 दिसंबर) हज़रत ईसा अलैहिस्सलाम की पैदाइश हुई यानी अल्लाह के यहां बेटा हुआ (मआज़ल्लाह) ऐसा अकीदा रखना कुफ्र है।क्योंकि अल्लाह तआला न खुद पैदा किया गया है और न अल्लाह तआला को किसी ने पैदा किया है | क़ुरआन शरीफ में है
قُلْ هُوَ اللّٰهُ اَحَدٌۚ،اَللّٰهُ الصَّمَدُۚ،لَمْ یَلِدْ وَ لَمْ یُوْلَدْۙ،وَ لَمْ یَكُنْ لَّهٗ كُفُوًا اَحَدٌ۠
तर्जमा कंजुल ईमान:- तुम फरमाओ वह अल्लाह है वह एक है। अल्लाह बे नियाज़ है। न उसकी कोई औलाद और न वह किसी से पैदा हुआ। और न उसके जोड़ का कोई।और याद रखें कि क्रिसमस डे ईसाइयों का मज़हबी शेआर (मज़हबी तरीक़ा) है इस में ईसाइयों के साथ शामिल होना हदीस पाक की रोशनी में ना जाइज़ और हराम है।हदीस पाक में है
مَنْ جَامَعَ المُشْرِكَ ، و سَكَنَ مَعَهُ ؛ فإنَّهُ مثلُهُ
यानी जो मुशरिक से यकजा (मिले जुले) और उसके साथ रहे वह उसी मुशरिक की तरह है ( सुनन अबी दाऊद, किताबुज्जिहाद, पार्ट 3 पेज़ 93 अल मकतबतुल असरियह, बैरूत)
और अगर कोई उस दिन ईसाइयों की महफिल में उस दिन की ताज़ीम करते हुए शरिक हो तो वह कुफ्र का मूर्तकिब (कुफ्र करने वाला) है फतावा हिन्दिया में है
یکفر بخروجہ الی نیروز المجوس لموافقتہ معھم فیما یفعلون فی ذلک الیوم
यानी जो मजूसियों के निरोज़ में उनकी मवाफिक़त करने के लिये जाए जिस दिन में वह खुराफात करते हैं तो उसकी तकफीर की जाएगी( फ़तावा हिन्दिया, किताबुस्सियर, पार्ट 2 पेज़ 276 दारुल्फिक्र बैरूत )
और अगर कोई मुसलमान इसमें शिरकत ना करे बल्कि वैसे ही इस दिन की ताज़ीम करे और ईसाइयों की इन तकरीबात (त्योहार, फंक्शन) को अच्छा जाने तो भी कुफ्र है।फ़तावा तातार खानियह में है
واتفق مشایخنا ان من رای امر لکفار حسنا فھو کافر
यानी उलमाए किराम का इस बात पर इत्तेफ़ाक़ है कि जो काफ़िर के किसी अम्र (काम) को अच्छा जाने वह काफ़िर है।(तातार खानियह, अहकामुल मूर्तदीन पार्ट 5 पेज़ 354 कदीमी कुतुब खाना कराची)(फ़तावा यूरप में क्रिसमस डे के ताल्लुक़ से है)
ईसाइयों के यहां क्रिसमस डे की कोई तारीखी हैसियत (पुरानी हिस्ट्री) नहीं है यह चौदहवीं सदी ईसवी का एक हादिस (जो पहले से न हो) त्योहार है।
लेकिन दुनिया भर ईसाइयों ने इस अख्तराई (नया ईजाद किया हुआ) त्योहार को इतनी मज़बूती से थामा कि यह सदियों से ईसाईयत की पहचान और शेआर बन गया है हर चर्च और ईसाई तंज़ीम गाहें इस तारीख में मुज़य्यन (सजावट) की जाती हैं और दुनिया को बावर (यक़ीन दिलाना) कराया जाता है कि गोया यह मसीहों का अज़ीमुश्शान त्योहार है, जिसमें अरबों डॉलर की शराब न सिर्फ पी जाती है
बल्कि लुंढायी (बहाई) जाती है फिर अरबों डॉलर्स की आतिशबाज़ियों और आतिशी माद्दों से यूरोप और अमेरिका के दर व दीवार और आसमानी फ़ज़ा थर्रा उठती है हफ्ता अशरा (8/10 दिन) तक गंधक की बदबू से मुल्क का मुल्क महकता रहता है
बहर हाल क्रिसमस डे उनका मज़हबी त्योहार हो या न हो मगर आज क़ौमी त्योहार की हैसियत एख्तियार कर गया है जिससे मुसलमानों को दूर रहना लाज़िम व ज़रूरी है।
لقولہ علیہ السلام "من تشبہ بقوم فھو منھم
यानी जिसने किसी क़ौम की मुशाबिहत (शक्ल/तरीक़ा) की वह उन्हीं में से है (मुसनद इमाम अहमद)
और सुनन अबू दाऊद, किताबुज्जिहाद, पार्ट 2 पेज़ 29 में है
من جامع المشرک وسکن معہ فانہ مثلہ
यानी जिसने किसी मुशरिक के साथ इश्तराके (शिरकत) अमल और राह व रस्म किया वह उसी के मिस्ल (तरह) है।मुसलमानों के लिये हराम है कि उनके त्योहारों में अपने घरों को उन्हीं चीजों से मुज़य्यन (सजाएं) करें जिनसे वह लोग करते हैं फिर उस तारीख में उन्हें हदया देना और उनसे तोहफा लेना भी हराम व ममनुअ (मना/नाजाईज़) है और अगर क्रिसमस डे की ताज़ीम मक़सूद हो तो (मआज़ल्लाह तआला) यह कुफ्र है।दुर्रे मुख्तार पार्ट 2 पेज़ 350 और रद्दुल मुहतार पार्ट 5 पेज़ 481 में है
الاعطاء باسم النیروز والمھرجان (بان یقال ھدیۃ ھذا ھذا الیوم ش) لا یجوز ای الھدایا باسم ھٰذین الیومین حرام وان قصد تعظیمہ کما یعظمہ المشرکون یکفر"
यानी निरोज़ और मेहरजान (मजूसियों, आग की पूजा करने वालों के ईदों के नाम) पर अतयह का तबादला यह कह कर कि यह आज का हदया है जाइज़ नहीं यानी इन दोनों दिनों के नाम पर तोहफे लेना हराम है और अगर मुशरिकीन मजूसी की तरह उनकी ताज़ीम भी करेगा तो कुफ्र है (फ़तावा यूरप पेज़ 540/541)
लिहाज़ा मज़कुरा बाला (जो ऊपर जिक्र हुआ) हवालों से मालूम हुआ कि क्रिसमस डे ईसाइयों का मज़हबी त्योहार है जिसमें मुसलमानों का बगैर ताज़ीम के शिरकत करना या मुबारकबादी देना नाजाइज़ व हराम है और ताज़िमन शिरकत करना या मुबारकबादी देना कुफ्र है लिहाज़ा जो ऐसे मौक़े पर ताज़ीम करते हुए मुबारकबादी दिये हों या शिरकत किये हों उनपर तौबा तजदीदे ईमान तजदीदे निकाह लाज़िम व ज़रूरी है और दोबारा ऐसी महफिलों में शिरकत न करने और मुबारकबादी न देने की अहद (क़सम) करें और ऐसा न करने वालों को मुसलमानों पर लाज़िम व ज़रूरी है कि उनका बायकॉट करें।अल्लाह तआला क़ुरआन शरीफ में फरमाता है
وَ اِمَّا یُنْسِیَنَّكَ الشَّیْطٰنُ فَلَا تَقْعُدْ بَعْدَ الذِّكْرٰى مَعَ الْقَوْمِ الظّٰلِمِیْنَ
तर्जमा कंजुल ईमान |और जो कहें तुझे शैतान भुलावे तो याद आए पर जालिमों के पास न बैठ।
लेखक
मौलाना गुलाम मुहम्मद सिद्दीक़ी फ़ैज़ी
हिन्दी अनुवादक
मुजस्सम हुसैन (गोड्डा झारखण्ड)
मिंजनिब :- मसाइले शरइया ग्रुप
15 दिसंबर 2024