(जल्वए आला हज़रत ०२ )

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  (जल्वए आला हज़रत ०२ )

    आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी कुद्देसा सिर्रहू ने तज्दीदी जिम्मेदारियों की बुनियाद पर इंसानों को ख़्वाबे गफलत से जगाया उन्हें मुत्तहिद व मुत्तफ़िक होने की दावत व आवाज़ दी उनकी आवाज में दर्द व खुलूस था। 
  यही वजह है कि उनकी आवाज़ सदा बसहरा व बाज गश्त साबित न हुई बल्कि वह अन्फास व आफाक में सुनाई दी इस से जेहन व दिमाग के दरीचे खुल गए चारों तरफ से लब्बैक व सञ्दैक की सदाएं बुलन्द हुईं , उनके कदमों में सालेह और नेक रूहों का जमघटा हो गया उन्होंने आपस में इत्तिहाद व इत्तिफाक का जो दर्शे मुहब्बत दिया वो रंग लाया मुसलमानों में इस्लामी उखवत गसावात का जज़्बा बेदार हुआ। दीन व सुन्नत के तअल्लुक से अमली बेदारी आई , फराइज व वाजिबात , सुनन व मुस्तहिब्बात और अवामिर व नवाही पर अमल का जज्ब - ए - शौक जागा , जुमूद व तगाफुल की बदनुमा चादर उतार दी गई उनके कदमों की बरकत से मिल्लत की कराहती हुई रूह मुस्कुरा उठी , उसका पज़्मुरदा चेहरा खिल उठा अहले सुन्नत व जमाअत के चमने जार में यकीन व अमल के गुलाब लहलहाने लगे , मुआशरती ज़िन्दगी में सुधार व तब्दीली आई तहज़ीब व सकाफ़त की फिजा शादाब व खुशगवार हो गई। इन कारनामों से उन्होंने नयाबते रसूल का हक व फरीजा अदा किया उनके वजूदे मुकद्दस से मिल्लते इस्लामिया की रूहानियत जिन्दा हो गई मुर्दा दिलों को अबदी ज़िन्दगी का हसीन व दिलनवाज़ पैगाम मिला , वह इहयाए दीन व सुन्नत और तजदीदी कारनामों की बिना पर हमारी जमाअत में मुम्ताज व मुंफरिद हुए अरब व अजम में उनकी अज़मत व बुजुर्गी का खुतबा पढ़ा जाने लगा!( बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 47)
        

     आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी रज़िअल्लाहु तआला अन्हु ने मसलके हक की तरवीज व इशाअत की , दीने हक की दावत व इरशाद का खुशगवार फरीज़ा अंजाम दिया मज़हबे अहले सुन्नत व जमाअत पर होने वाले हमलों का दन्दान शिकन और मुदल्लल जवाब दिया , बातिल ताक़तों के परखचे उड़ा दिए तागूती कुव्वतों के सरनिगू कर दिए उनकी मसाई जमीला से हक व सदाक़त का बोल बाला हुआ ईमान व ईकान की मंज़िल में सच्चाईयों का सूरज तुलू हुआ उसकी जिया बार किरनों से इल्म व अमल के मैदान में सुबहे यकीन का सवेरा हुआ राहे हक से भटके हुए मुसाफिर को अपनी मंज़िल का सुराग व निशान मिला उन्होंने मरासिमे अहले सुन्नत व जमाअत की हिफाज़त व सियानत की और घर घर में इत्तिबाए सुन्नत का माहौल बरपा कर दिया , उनकी इल्मी व दीनी खिदमात के तज़्किरों से तारीख के सफ्हात रौशन व फरोजां हैं ऐसी ही शख्सियात के जिक्र से तारीख़ की जुल्फें संवारी जाती हैं!(बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 47)
       
    आला हज़रत इमाम अहमद रज़ा बरेलवी ने जिस दौर में बरैली शरीफ की सर जमीन पर होश व खिरद की आँखें खोली वह इंतिहाई भयानक व पुर आशोब दौर था , आसमाने हिन्द पर कुफ्र व शिर्क और विदआत व खुराफात के बादल मंडला रहे थे खुश अकीदा मुसलमानों को सिराते मुस्तकीम व राहे हिदायत से हटाने की नापाक कोशिश की जा रही थी फरज़न्दाने तौहीद के इश्क व अकीदे पर शब खून और डाका डाला जा रहा था सईद व नेक रूहें मुसलमानों के अंजाम से घबरा रही थीं इंसानियत खौफजदा थी जब व इस्तिब्दाद के हाथों खुश अकीदगी का गला घूटा जा रहा था , दीनी पामर्दी व इस्तिकामत मुतजलजल हो रही थी। 

    ऐसे भयानक दौर में कुदरत ने मुजद्दिदे इस्लाम आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरैलवी कुद्देसा सिर्रहू को तज्दीदे दीन व सुन्नत के लिए मुकर्रर फरमाया उन्होंने ताईदे गैबी से अपना फर्जे मंसबी को पूरा किया और बेमिसाल तज्दीदी कारनामे अंजाम दिए , बद अकीदों व बद मज़हबों का खुले आम रद्द व इब्ताल फरमाया रसूलुल्लाह सल्लल्लाहु तआला अलैहि व सल्लम की शाने अक्दस में नाजैबा कलिमात कहने वालों को उनके कैफरे किरदार तक पहुँचा दिया , बातिल ताकतों की सरकूबी व बीख कुनी की , बनामे इस्लाम बाद के जमाने में जितने फिरके वजूद में आए हर एक का रद्दे बलीग फरमाया उनके अन्दरूनी राज और मक्कारियों को तश्त अज़बाम व आशकारा किया गोया कि फिरका बातिला के रद्द व इताल को उन्होंने अपनी ज़िन्दगी का अहम उन्सुर और जुज्वला यन्फक करार दिया उन्हीं की बदौलत दीन के भेड़ियों की पहचान व शिनाख्त हुई। 

    इस खौफनाक दौर में अगर आला हजरत इमाम अहमद रजा बरेलवी कुद्देसा सिर्रहू की मसाई जमीला और उनके तज्दीदी कारनामे न होते तो दीन के डाकू मुसलमानों को भी अंग्रेजी इस्तेमार के हाथों अरजी कीमत पर फरोख्त कर देते जिस तरह मुल्क हिन्दुस्तान पर अंग्रेज़ का नाजाइज कला व इक्तिदार हो गया था उसी तरह यह मुसलमानों को भी असीर व कैद कर लेते , आला हज़रत की जाते सतूदा सिफात ने मुसलमानों को विकने और असीरे किस्मत होने से बचा लिया। 

    यह वह तारीखी हकाइक हैं जिन्हें ठुकराया नहीं जा सकता तारीख के औराक इन सच्चाईयों के शाहिद व गवाह हैं!.(बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 48)

 मौलाना
 अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ (सीमांचल)

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