(जल्वए आला हज़रत04)

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   (जल्वए आला हज़रत04)


आला हज़रत और फैजाने आला हज़रत !? 


➲  आला हज़रत इमाम अहमद रजा बरेलवी कुद्देसा सिर्रहू ने तज्दीदी जिम्मेदारियों की बुनियाद पर इंसानों को ख़्वाबे गफलत से जगाया उन्हें मुत्तहिद व मुत्तफ़िक होने की दावत व आवाज़ दी उनकी आवाज में दर्द व खुलूस था। 


➲  यही वजह है कि उनकी आवाज़ सदा बसहरा व बाज गश्त साबित न हुई बल्कि वह अन्फास व आफाक में सुनाई दी इस से जेहन व दिमाग के दरीचे खुल गए चारों तरफ से लब्बैक व सञ्दैक की सदाएं बुलन्द हुईं , उनके कदमों में सालेह और नेक रूहों का जमघटा हो गया उन्होंने आपस में इत्तिहाद व इत्तिफाक का जो दर्शे मुहब्बत दिया वो रंग लाया मुसलमानों में इस्लामी उखवत गसावात का जज़्बा बेदार हुआ। दीन व सुन्नत के तअल्लुक से अमली बेदारी आई , फराइज व वाजिबात , सुनन व मुस्तहिब्बात और अवामिर व नवाही पर अमल का जज्ब - ए - शौक जागा , जुमूद व तगाफुल की बदनुमा चादर उतार दी गई उनके कदमों की बरकत से मिल्लत की कराहती हुई रूह मुस्कुरा उठी , उसका पज़्मुरदा चेहरा खिल उठा अहले सुन्नत व जमाअत के चमने जार में यकीन व अमल के गुलाब लहलहाने लगे , मुआशरती ज़िन्दगी में सुधार व तब्दीली आई तहज़ीब व सकाफ़त की फिजा शादाब व खुशगवार हो गई। इन कारनामों से उन्होंने नयाबते रसूल का हक व फरीजा अदा किया उनके वजूदे मुकद्दस से मिल्लते इस्लामिया की रूहानियत जिन्दा हो गई मुर्दा दिलों को अबदी ज़िन्दगी का हसीन व दिलनवाज़ पैगाम मिला , वह इहयाए दीन व सुन्नत और तजदीदी कारनामों की बिना पर हमारी जमाअत में मुम्ताज व मुंफरिद हुए अरब व अजम में उनकी अज़मत व बुजुर्गी का खुतबा पढ़ा जाने लगा!...


( बा-हवाला, फैज़ाने आला हजरत सफ़ह 47)



 मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी

बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ (सीमांचल)

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