(क्या आपकी रोज़ी हलाल है!)
सय्यिदी आला हज़रत अलयहिर रह़मह फतावा रज़विया शरीफ में फरमाते हैं: काम की तीन हालतें हैं؛ सुस्त,मुअ़तदिल यानी मियाना अंदाज, निहायत तेज. अगर मजदूरी में सुस्ती के साथ काम करता है गुनाहगार है, और उस पर पूरी मजदूरी लेना हराम है, उतने कम के लायक जितनी मजदूरी है ले, उससे जो कुछ ज्यादा मिला मुस्ताजिर यानी मलिक, काम पर रखने वाले को वापस दे, वह ना रहा हो उसके वारिसों को दे, उनका भी पता ना चले तो मुसलमान मोहताज जरूरतमंद पर सदका करे, अपने काम में लाना या सदके अलावा किसी और काम मसलन किसी को तोहफे के तोर पर देने मैं उसे खर्च करना हराम है, अगरचे ठेके के काम में भी काहिली से सुस्ती करता हो. (फतावा रज़विया शरीफ जिल्द: 19 = पेज़: 406)
हम जरा गौर करें कि आजकल आमतौर पर देखा जाता है की तनख्वाह और मजदूरी पर काम करने वाले गैर जिम्मेदारी के साथ काम करते हैं यानी के जिस काम के लिए उन्हें रखा जाता है उसे अच्छे से अंजाम नहीं देते हैं, जैसे काम करने में सुस्ती करते हैं एक घंटे का काम दो घंटे में करते हैं, नौकरी पर जिम्मेदारियों की अदायगी अच्छे से नहीं करते, मसलन: आने में लेट और जाने में जल्दी करते हैं, उस्ताद हैं तो पढ़ाई का हक्क अदा नहीं करते: मसलन: गैर जरूरी छुट्टियां करना, इमाम का अपनी जिम्मेदारी अदा ना करना, मुफ्ती का मनसबे इफता के हुकु़क़ अदा न करना, मसलन: गलत या चेहरा देखकर या नजराना की खातिर फतवा देना, मुकर्रिन का तारीख ते करने के बाद ना पहुंचना वगैरा और उस पर पूरी मजदूरी तनख्वाह और उज़रत लेते हैं, जबकि उन्हें सिर्फ काम के मुताबिक उजरत लेना जरूरी है जो ज्यादा मिले उसे मलिक मुस्ताजिर यानी कम पर रखने वाले को वापस करना जरूरी है अगर वापस न करें तो उन्हें उस रकम को अपने लिए खर्च करना हराम है।
ये ऐसा मसअला है जिससे आम खास में से अक्सर गा़फिल हैं, लिहाजा हमें चाहिए कि जिस काम पर रखा गया है उसे अच्छे से अदा करें और अपनी रोजी पर तवज्जो दें ताकि हमारे और हमारी औलाद वगेरहआरिफ के पेट में हराम लुक़मा ना जाए। अल्लाह ताला हमें हलाल रोजी कमाने की तौफीक अता फरमाए आमीन सुम्मा आमीन.
तारिक़ मेहमूद रज़वी
18/07/1445
30/01/2024