(फातिहा पढ़ने का तरीक़ा)

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 (फातिहा पढ़ने का तरीक़ा)

नोट : क़ुरआन को हिंदी या इंग्लिश में लिखना हराम है इस लिए क़ुरआन को अरबी में ही रखा गया है
पहले 3 बार कोई दरूद शरीफ पढ़ें जो याद हो फिर सुरह काफिरून एक बार

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ:قُلْ یٰۤاَیُّهَا الْكٰفِرُوْنَ (1) لَاۤ اَعْبُدُ مَا تَعْبُدُوْنَ (2) وَ لَاۤ اَنْتُمْ عٰبِدُوْنَ مَاۤ اَعْبُدُ (3) وَ لَاۤ اَنَا عَابِدٌ مَّا عَبَدْتُّمْ (4) وَ لَاۤ اَنْتُمْ عٰبِدُوْنَ مَاۤ اَعْبُدُ (5) لَكُمْ دِیْنُكُمْ وَ لِیَ دِیْنِ (6)
फिर सुरह इखलास तीन बार पढ़ें

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ:قُلْ هُوَ اللّٰهُ اَحَدٌ (1) اَللّٰهُ الصَّمَدُ (2) لَمْ یَلِدْ  وَ لَمْ یُوْلَدْ (3) وَ لَمْ یَكُنْ لَّهٗ كُفُوًا اَحَدٌ (4)
फिर सुरह फलक़ एक बार पढें

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ:قُلْ اَعُوْذُ بِرَبِّ الْفَلَقِ (1) مِنْ شَرِّ مَا خَلَقَ (2) وَ مِنْ شَرِّ غَاسِقٍ اِذَا وَقَبَ (3) وَ مِنْ شَرِّ النَّفّٰثٰتِ فِی الْعُقَدِ (4) وَ مِنْ شَرِّ حَاسِدٍ اِذَا حَسَدَ (5)
फिर एक बार सुरह नास पढ़ें

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ:قُلْ اَعُوْذُ بِرَبِّ النَّاسِ (1) مَلِكِ النَّاسِ (2) اِلٰهِ النَّاسِ (3) مِنْ شَرِّ الْوَسْوَاسِ الْخَنَّاسِ (4) الَّذِیْ یُوَسْوِسُ فِیْ صُدُوْرِ النَّاسِ (5) مِنَ الْجِنَّةِ وَ النَّاسِ (6)
फिर एक बार सुरह फातिहा पढ़ें

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ:اَلْحَمْدُ لِلّٰهِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ (1) الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ (2) مٰلِكِ یَوْمِ الدِّیْنِ (3) اِیَّاكَ نَعْبُدُ وَ اِیَّاكَ نَسْتَعِیْنُ (4) اِهْدِنَا الصِّرَاطَ الْمُسْتَقِیْمَ (5) صِرَاطَ الَّذِیْنَ اَنْعَمْتَ عَلَیْهِمْ غَیْرِ الْمَغْضُوْبِ عَلَیْهِمْ وَ لَا الضَّآلِّیْنَ (7)
फिर सुरह बक़रा (الٓمّٓ) से (الْمُفْلِحُوْنَ) तक पढ़ेंगे

بِسْمِ اللّٰهِ الرَّحْمٰنِ الرَّحِیْمِ:الٓمّٓ (1) ذٰلِكَ الْكِتٰبُ لَا رَیْبَ  فِیْهِ ۚۛ-هُدًى لِّلْمُتَّقِیْنَ (2) الَّذِیْنَ یُؤْمِنُوْنَ بِالْغَیْبِ وَ یُقِیْمُوْنَ الصَّلٰوةَ وَ مِمَّا رَزَقْنٰهُمْ یُنْفِقُوْنَ (3) الَّذِیْنَ یُؤْمِنُوْنَ بِمَاۤ اُنْزِلَ اِلَیْكَ وَ مَاۤ اُنْزِلَ مِنْ قَبْلِكَۚ-وَ بِالْاٰخِرَةِ هُمْ یُوْقِنُوْنَ (4) اُولٰٓىٕكَ عَلٰى هُدًى مِّنْ رَّبِّهِمْۗ-وَ اُولٰٓىٕكَ هُمُ الْمُفْلِحُوْنَ (5)
इस के बाद इसे पढें

وَ اِلٰـہُکُمْ اِلٰہٌ وّٰحِدٌۚ لَاۤ اِلٰہَ اِلَّا ہُوَ الرَّحْمٰنُ الرَّحِیۡمُ 0 اِنَّ رَحْمَتَ اللہِ قَرِیْبٌ مِّنَ الْمُحْسِنِیْنَ O وَمَآ اَرْسَلْنٰکَ اِلَّارَحْمَۃً لِّلْعٰلَمِیْنَ 0 مَاکَانَ مُحَمَّدٌ اَبَآ اَحَدٍ مِّنْ رِّجَا لِکُمْ وَلٰکِنْ رَّسُوْلَ اللہِ وَ خَاتَمَ النَّبِیّٖنَ وَ کَانَ اللہُ بِکُلِّ شَیْءٍ عَلِیْمًا 0 اِنَّ اﷲَ وَمَلٰئِکَتَہٗ یُصَلُّوْنَ عَلَی النَّبِیِّ ؕ یٰاَیُّھَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْاصَلُّوْاعَلَیْہِ وَسَلِّمُوْا تَسْلِیْمًا O

फिर 3 बार दरूद शरीफ पढ़ें जो याद हो दरूद शरीफ के बाद यह पढेंगे

سُبْحٰنَ رَبِّکَ رَبِّ الْعِزَّۃِ عَمَّا یَصِفُوْنَ وَ سَلَامٌ عَلَی الْمُرْسَلِیْنَ وَالْحَمْدُ لِلّٰہِ رَبِّ الْعٰلَمِیْنَ 0

यह पढ़ने के बाद फिर बारगाहे इलाही में हाथ उठा कर यूं दुआ करें

या अल्लाह मैं ने जो कुछ दरूद शरीफ पढ़ा और क़ुरआन शरीफ की आयतें तिलावत की हैं इन को क़ुबूल फरमा और इनका सवाब (अगर खाना या शिरनी भी हो तो इतना और कहे की इस खाने और शिरनी का सवाब) हमारे जानिब से हुज़ूर सरवरे कायनात ﷺ की बारगाह में नज़र है क़बूल फरमा

  आप के वसीला से तमाम अंबिया ए किराम अलैहिमुस्सलाम व सहाबा ए एज़ाम व अज़वाज ए मुतह्हरात व अहले बैते अतहार व शुहदा ए किराम और तमाम औलिया व उलमा व सुलहा व शुहदा की बारगाह में नज़र है क़बूल फरमा

 (फिर अगर किसी खास बुजुर्ग को ऐसाले सवाब करना हो तो उनका नाम खुसुसियत के साथ ले मसलन यूं कहे की खुसूसन हज़रत गौसे पाक रहमतुल्लाह अलैह की बारगाह में नज़र है क़बूल फरमा

और जुमला मोमिनीन व मोमिनात की अरवाह को सवाब नज़र है क़बूल फरमा

 और किसी आम आदमी को ऐसाले सवाब करना हो तो उसका जिक्र खुसूसियत से करें मसलन यूं कहे की खुसुसन हमारे वालिद या वालिदा के रूह को सवाब नज़र है क़बूल फरमा आमीन या रब्बल आलमीन

हिन्दी अनुवाद  
 मुहम्मद रिज़वानुल क़ादरी अशरफी
 सेमरबारी दुदही कुशीनगर यू पी

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