(दूध पीने का ज़माना)

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(दूध पीने का ज़माना )

 सब से पहले हुज़ूर ﷺ ने अबू लहब की लौंडी "हज़रते षुवैबा" का दूध नोश फ़रमाया फिर अपनी वालिदए माजिदा हज़रते आमिना के दूध से सैराब होते रहे, फिर हज़रते हलीमा सादिया आप को अपने साथ ले गई और अपने क़बीले में रख कर आप को दूध पिलाती रहीं और इन्हीं के पास आप ﷺ के दूध पीने का ज़माना गुज़रा। शुरफ़ाए अरब की आदत थी कि वोह अपने बच्चों को दूध पिलाने के लिये गिर्दो नवाह देहातों में भेज देते थे देहात की साफ़ सुथरी आबो हवा में बच्चों की तन्दुरुस्ती और जिस्मानी सिहत भी अच्छी हो जाती थी और वोह ख़ालिस और फ़सीह अरबी ज़बान भी सीख जाते थे क्यूं कि शहर की ज़बान बाहर के आदमियों के मेलजोल से ख़ालिस और फ़सीह व बलीग ज़बान नहीं रहा करती।(क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 74)

    हज़रते हलीमा उस दुर्रे यतीम को ले कर आई जिस से सिर्फ हज़रते हलीमा और हज़रते आमिना ही के घर में नहीं बल्कि काएनाते आलम के मशरिक व मग़रिब में उजाला होने वाला था, येह खुदा वन्दे कुद्दूस का फ़ज़्ले अज़ीम ही था कि हज़रते हलीमा की सोई हुई क़िस्मत बेदार हो गई और सरवरे काएनात ﷺ इन की आगोश में आ गए, अपने खैमे में ला कर जब दूध पिलाने बैठीं तो बाराने रहमत की तरह बरकाते नुबुव्वत का ज़ुहूर शुरू हो गया, खुदा की शान देखिये कि हज़रते हलीमा के मुबारक पिस्तान में इस क़दर दूध उतरा कि रहमते आलम ﷺ ने भी और उनके रज़ाई भाई ने भी ख़ूब शिकम सैर हो कर दूध पिया, और दोनों आराम से सो गए, उधर उंटनी को देखा तो उस के थन दूध से भर गए थे हज़रते हलीमा के शोहर ने उस का दूध दोहा, और मियां बीवी दोनों ने ख़ूब सैर हो कर दूध पिया और दोनों शिकम सैर हो कर रात भर सुख और चैन की नींद सोए। 
    
   हज़रते हलीमा का शोहर हुजुर रहमते आलम ﷺ की येह बरकतें देख कर हैरान रह गया, और कहने लगा कि हलीमा ! तुम बड़ा ही मुबारक बच्चा लाई हो। हज़रते हलीमा ने कहा कि वाकेई मुझे भी येही उम्मीद है कि येह निहायत ही बा बरकत बच्चा है और खुदा की रहमत बन कर हम को मिला है और मुझे येही तवक्कोअ है कि अब हमारा घर खैरो बरकत से भर जाएगा।

     हज़रते हलीमा फरमाती है कि इस के बाद हम आप ﷺ को अपनी गोद में ले कर मक्कए मुकर्रमा से अपने गाउं की तरफ रवाना हुए तो मेरा वोही खच्चर अब इस क़दर तेज़ चलने लगा कि किसी की सुवारी उस की गर्द को नहीं पहुंचती थी, क़ाफ़िले की औरतें हैरान हो कर मुझ से कहने लगीं कि ऐ हलीमा ! क्या येह वोही खच्चर है जिस पर तुम सुवार हो कर आई थीं या कोई दूसरा तेज़ रफ्तार खच्चर तुम ने खरीद लिया है? अल गरज हम अपने घर पहुंचे वहां सख्त कहत पड़ा हवा था।(क़िताब :- सीरते मुस्तफा (ﷺ) सफ़ह - 75)

 मौलाना अब्दुल लतीफ न‌ईमी रज़वी क़ादरी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णियाँ

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