(शाने गौ़से आज़म रहमतुल्लाह अ़लैहि03)

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(शाने गौ़से आज़म रहमतुल्लाह अ़लैहि03)

ह़ज़रते ह़सन बसरी की बिशारत

जिन मशाइख ने ह़ज़रते ग़ौसे आ'ज़म रह़मतुल्लाही अ़लैहि की क़ुतबिय्यत के मर्तबे की गवाही दी है "रौ-ज़तुन्नवाज़िर" और "नूज़हतुल खवातिर" में साहिबे किताब उन मशाइख का तज़्क़िरा करते हुवे लिखते है  आप रह़मतुल्लाही अ़लैहि से पहले अल्लाह के औलिया में से कोई भी आप का मुन्किर न था बल्कि उन्होंने आप की आमद की बिशारत दी, चुनान्चे ह़ज़रत ह़सन बसरी ने अपने ज़मानए मुबारक से लेकर ह़ज़रते शैख़ मुही़युद्दीन अ़ब्दुल क़ादिर जिलानी रह़मतुल्लाही अ़लैहि के ज़मानए मुबारक तक तफ़सील से खबर दी की जितने भी अल्लाह के औलिया गुज़रे है सब ने शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जिलानी की खबर दी है।(सीरते गौसुस्स-क़लैन, 58)

ह़ज़रते जुनैद बगदादी की बिशारत

    आप रह़मतुल्लाही अ़लैहि इर्शाद फरमाते है की "मुझे आ़लमे गैब से मालुम हुवा है की पांचवी सदी के वस्त में सय्यिदुल मुर-सलीन की औलादे अत्हर में से एक कुत्बे आ़लम होगा, जिन का लक़ब मुही़युद्दीन और इस्मे मुबारक अ़ब्दुल क़ादिर है और वो ग़ौसे आज़म होगा और जिलान में पैदा होगा, उनको खातमुन्नबीय्यिन की औलादे अत्हर में से अइम्मए किराम और सहा़बाए किराम के इलावा अव्वलिनो आखिरिन के "हर वली और वलिय्या की गर्दन पर मेरा क़दम है। कहने का हुक्म होगा।(सीरते गौसुस्स-क़लैन,57/ग़ौसे पाक के हा़लात, सफा 23-24)

 तालिबे दुआ 
 मुहम्मद अनस रज़ा रज़वी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णिया (बिहार)




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