(शाने गौ़से आज़म रहमतुल्लाह अ़लैहि08)

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(शाने गौ़से आज़म रहमतुल्लाह अ़लैहि08)

विलादते बा सआ़दत 02

     आप की विलादत माहे रमज़ानुल मुबारक में हुई और पहले दिन ही से रोज़े रखना शुरू कर दिये, सह़री से ले कर इफ्तार तक आप वालिदए मोहतरमा का दूध न पीते थे। ह़ज़रते सय्यिदुना गौसे आ'ज़म रह़मतुल्लाही अ़लैहि की वालिदए माजिदा उम्मुल खैर फ़ातिमा फ़रमाया करती थी :- जब मेरा बेटा अ़ब्दुल क़ादिर पैदा हुवा तो वो रमज़ानुल मुबारक में दिन के वक़्त मेरा दूध नहीं पिता था,अगले साल रमज़ान का चांद गुबार की वजह से नज़र न आया तो लोग मेरे पास दरयाफ़्त करने के लिये आए तो मेने कहा की मेरे बच्चे ने दूध नहीं पिया। फिर मालूम हुवा की आज रमज़ान का दिन है और हमारे शहर में ये बात मश्हूर हो गई की सय्यिदो में एक बच्चा पैदा हुवा है जो रमज़ानुल मुबारक में दिन के वक़्त दूध नहीं पिता।(गौसे पाक का बचपन, सफा 9)

शीकमे मादर में इ़ल्म

       5 बरस की उ़म्र में जब पहली बार बिस्मिल्लाह पढ़ने की रस्म के लिये किसी बुज़ुर्ग के पास बैठे तो बिस्मिल्लाह पढ़ कर सूरए फातिहा़ और अलिफ़-लाम-मिम से लेकर 18 पारे पढ़ कर सूना दिये। उन बुज़ुर्ग ने कहा बेटा ! और पढ़िये।फ़रमाया : बस मुझे इतना ही याद है क्यूंकी मेरी माँ को भी इतना ही याद था, जब में अपनी माँ के पेट में था उस वक़्त वो पढ़ा करती थी, मेंने सुन कर याद कर लिया था।

अपनी विलायत का इ़ल्म होना

    हज़ूर गौसे आज़म फरमाते है की जब में बचपन के आ़लम में मदरसे को जाया करता था तो रोज़ाना एक फरिश्ता इंसानी शक्ल में मेरे पास आता और मुझे मदरसे ले जाता, खुद भी मेरे पास बैठा रहता था, में उसे मुतलक़न नहीं पहचानता था की ये फरिश्ता है, एक दिन मेने उससे पूछा की आप कौन हो ? तो उसने जवाब दिया की में फरिश्तों में से एक फरिश्ता हुं, अल्लाह तआ़ला ने मुझे इस लिये भेजा है की मदरसे में आप के साथ रहा करूं। इसी तरह आप फरमाते है, की एक रोज़ मेरे क़रीब से एक शख्स गुज़रा जिस को में बिलकुल न जानता था, उसने जब फरिश्तों को ये कहते सुना की कुशादा हो जाओ ताकि अल्लाह का वली बैठ जाए, तो उसने फ़रिश्ते से पूछा की ये लड़का किस का है ? तो फ़रिश्ते ने जवाब दिया की ये सादात के घराने का लड़का है, तो उसने कहा की ये अ़नक़रीब बहुत बड़ी शान वाला होगा।आप रह़मतुल्लाही अ़लैहि के साहिब ज़ादे शैख अ़ब्दुर्रज़्जा़क़ रह़मतुल्लाही अ़लैहि का बयान है की एक दफा हुज़ूर गौसे आज़म से दरयाफ़्त किया गया की आप को अपने वली होने का इ़ल्म कब हुवा ?तो आप ने फ़रमाया की जब में दस बरस का था और अपने शहर के मकतब में जाया करता था और फरिश्तों को अपने पीछे और इर्द गिर्द चलते देखता, जब मकतब में पहुंच जाता तो वो बार बार ये कहते की अल्लाह के वली को बैठने के लिये जगह दो। इसी वाकिए को बार बार देख कर मेरे दिल में ये एह़सास पैदा हुवा की अल्लाह तआ़ला ने मुझे दर्जए विलायत पर फाइज़ किया है।( गौसे पाक का बचपन, सफा 15,18)

 तालिबे दुआ 

 मुहम्मद अनस रज़ा रज़वी

बड़ा रहुवा बायसी पूर्णिया (बिहार)








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