(शाने गौ़से आज़म रहमतुल्लाह अ़लैहि11)

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(शाने गौ़से आज़म रहमतुल्लाह अ़लैहि11)

हुज़ूर ग़ौसे आ'ज़म की साबित क़दमि

     ह़ज़रत कुत्बे रब्बानी शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर अल जिलानी अल ह़सनी वल हुसैनी रह़मतुल्लाही अ़लैहि ने अपनी साबित क़दमि का खुद इस अंदाज़ में तज़्किरा फ़रमाया है की मेने (राहे खुदा ﻋﺰﻭﺟﻞ में) बड़ी बड़ी सख्तिया और मशक़्क़्ते बतदाश्त की अगर वो किसी पहाड़ पर गुज़रती तो वो भी फट जाता।

 शयातीन से मुक़ाबला

      शैख़ उ़स्मान अस्सरिफैन रह़मतुल्लाही अ़लैहि फरमाते है  मेने शहंशाहे बगदाद हुज़ूरे ग़ौसे पाक रह़मतुल्लाही अ़लैहि की ज़बाने मुबारक से सुना की में शबो रोज़ बयाबानो और वीरान जंगलो में रहा करता था, मेरे पास शयातीन मुसल्लह हो कर हैबत नाक शक्ल में कीतार आते और मुझ से मुक़ाबला करते, मुझ पर आंग फेंकते मगर में अपने दिल में बहुत ज़्यादा हिम्मत और ताक़त मह़सूस करता और गैब से कोई मुझे पुकार कर कहता ऐ अ़ब्दुल क़ादिर ! उठो उनकी तरफ बढ़ो, मुक़ाबले में हम तुम्हे साबित क़दम रखेंगे और तुम्हारी मदद करेंगे।फिर जब में उन की तरफ बढ़ता तो वो दाएं बाएं या जिधर से आते उसी तरफ भाग जाते, उन मेसे मेरे पास सिर्फ एक ही शख्स आता और डराता और मुझे कहता की यहाँ से चले जाओ। तो में उसे एक तमाचा मारता तो वो भागता नज़र आता फिर में "ला-ह़व्ल-वला-क़ुव्वत इल्ला-बिल्ला-हिल-अ़लिय्यिल-अ़ज़िम" لا حولا ولا قوۃ الا باللہ العلی العظیم पढता तो वो जल कर ख़ाक हो जाता।

ज़ाहिर व बातिनी औसाफ के जामेअ़

     मुफ्तिये इराक़ मुही़युद्दीन शैख़ अबू अ़ब्दुल्लाह मुह़म्मद बिन अ़ली तौही़दि रह़मतुल्लाही अ़लैहि फरमाते है   ह़ज़रते शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जिलानी रह़मतुल्लाही अ़लैहि जल्द रोने वाले, निहायत ख़ौफ़ वाले, बा हैबत, मुस्तजाबुद्दा'वात, करीमुल अख़लाक़, खुशबूदार पसीने वाले, बुरी बातो से दूर रहने वाले, ह़क़ की तरफ लोगो से ज़्यादा क़रीब होने वाले, नफ़्स पर क़ाबू पाने वाले, इन्तिक़ाम न लेने वाले, साइल को न झिड़कने वाले, इ़ल्म से मुहज़्ज़ब होने वाले थे,आदाबे शरीअ़त आप के ज़ाहिरी औसाफ़ और ह़क़ीक़त आप का बातिन था। समुंदरी तरीक़त आप के हाथो में कुत्बे शहरी अह़मद रिफाइ़ रह़मतुल्लाही अ़लैहि से मरवी है की शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर रह़मतुल्लाही अ़लैहि वो है की शरीअ़त का समुन्दर उनके दाएं हाथ है और ह़क़ीक़त का समुन्दर उनके बाए हाथ, जिस में से चाहे पानी ले,हमारे इस वक़्त में अ़ब्दुल क़ादिर का कोई सानी नहीं।( ग़ौसे पाक के हा़लात, सफा 32.33)

 तालिबे दुआ 

 मुहम्मद अनस रज़ा रज़वी

बड़ा रहुवा बायसी पूर्णिया (बिहार)








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