(शाने गौ़से आज़म रहमतुल्लाह अ़लैह13)
अम्बिया और औलिया की आप के बयान में तशरीफ़ आवरी
शैख़ मुहक़्क़ीक़ शैख़ अ़ब्दुल ह़क़ मुह़द्दिस दहेल्वी फ़रमाते है
ग़ौसे पाक ररह़मतुल्लही अ़लैहि की मजलिस शरीफ में कुल औलिया और अम्बियाए किराम जिस्मानी ह़यात और अरवाह़ के साथ नीज़ जिन्न और मलाएका तशरीफ़ फ़रमा होते थे
और ह़बिबे रब्बुल आ़लमिन ﷺ भी तरबिय्यत व ताईद फ़रमाने के लिये जल्वा अफरोज़ होते थे और ह़ज़रते खिज़र अ़लैहीरह़मा तो अक्सर अवक़ात मजलिस शरीफ के हा़ज़िरीन में शामिल होते थे और न सिर्फ खुद आते बल्कि मशाईखे ज़माना में से जिस से भी आप की मुलाक़ात होती तो उन को भी आप की मजलिस में हा़ज़िर होने की ताकी़द फ़रमाते हुवे इर्शाद फ़रमाते की जिस को भी फ़लाह़ व कामरानी की ख्वाहिश हो उस को ग़ौसे पाक रह़मतुल्लही अ़लैहि की मजलिस शरीफ की हमेशा हा़ज़री ज़रूरी है।
जिन्नात भी आप का बयान सुनते है
शैख़ अबू ज़करिया यह़या बिन अबी नसर् सहरावी रह़मतुल्लही अ़लैहि के वालीद फ़रमाते है की "मेने एक दफा अ़मल के ज़रिए़ जिन्नात को बुलाया तो उन्हों ने कुछ ज़्यादा देर कर दी फिर वो मेरे पास आए और कहने लगे की" जब शैख़ अ़ब्दुल क़ादिर जिलानी बयान फरमा रहे होते है उस वक़्त हमें बुलाने की कोशिश न किया करो।मेने कहा क्यूँ? उन्होंने कहा की हम हुज़ूरे ग़ौसे आज़म रह़मतुल्लही अ़लैहि की मजलिस में हा़ज़िर होते है।मेने कहा तुम भी उनकी मजलिस में जाते हो ?उन्होंने कहा हां हम मर्दों में कसीर तादाद में होते है, हमारे बहुत से गुरौह है जिन्हों ने इस्लाम क़बूल किया है और उन सब ने हुज़ूर ग़ौसे पाक रह़मतुल्लही अ़लैहि के हाथ पर तौबाह की है।(ग़ौसे पाक के हा़लात, सफा 37)
तालिबे दुआ
मुहम्मद अनस रज़ा रज़वी
बड़ा रहुवा बायसी पूर्णिया (बिहार)