(तावीज़ पहनना कैसा है?)

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 तावीज़ पहनना कैसा है?

 जवाब:

देखें, जो तावीज़ात क़ुरान व हदीस की रौशनी और उसूल पर बने हों उसको पहनना और इस्तेमाल में रखना बिल्कुल जाएज़ हैं, और ये हमारा या किसी अलिम की ही सुन्नत नही बल्कि सहाबए कराम से साबित है और उनकी सुन्नत में से है,

क़ुरआने पाक में हुक्म है*

"और हम क़ुरान में उतारते हैं वो चीज़ जो मोमिनों के लिए (रूहानी व जिस्मानी) अमराज़ से शिफ़ा है"(पारह 15, सूरह बनी इसराइल, आयत 82)

यानी ये क़ुरान शरीफ़ से ही साबित हो गया है कि क़ुरआन की आयतों से शिफ़ा हासिल करना जाएज़ है

और हदीस शरीफ़ से भी ज़ाहिर होता ही कि

हज़रते इब्ने उमर رضي الله عنه हुज़ूर ﷺ की इरशाद की हुई दुआ को लोगों को सिखाते थे और जो छोटे बच्चे होते थे उनके गले मे उस दुआ को तावीज़ लिख कर लटका देते थे(तिर्मिज़ी शरीफ़, जिल्द 02, सफ़ह 972)

नोट:यह तर्जुमा खुद वहाबी की किताब में भी मिल जायेगा

अब देखें बुज़ुर्गाने दीन का इस पर क्या क़ौल है


हज़रते इमामे शाफ़ई के नज़दीक़

अल्लामा ज़रकशी लिखते हैं कि "हज़रते इमामे शाफ़ई की ख़िदमत में एक शख़्स आया और उसने अशोबे चश्म की शिकायत की तो हज़रते इमाम शाफ़ई ने एक तावीज़ लिख कर दिया और उस शख़्स ने उस तावीज़ को गले मे डाला तो उसको शिफ़ा मिल गयी"

(अल बुरहानुल उलूमुल क़ुरआन, जिल्द 01, सफ़ह 434)


इमाम इब्ने हजर के नज़दीक़

हज़रते इमाम इब्ने हजर अश्क़लानी लिखते हैं कि "वो तमाइम (तावीज़) जिसमे क़ुरान और ज़िकरुल्लाह के अल्फ़ाज़ हों उनके इस्तेमाल में कोई हर्ज नही है, क्यूंकि वो तबर्रुक के मानिंद हैं और उन तावीज़ में अल्लाह का नाम और ज़िक्र होता है"

(फ़तहुल बारी शरह सहीह बुख़ारी, जिल्द 06, सफ़ह 147)

हज़रते ईमामे मालिक के नज़दीक़

हज़रते इमामे मालिक फ़रमाते "इस बात में कोई हर्ज नही कि हाइज़ औरतों या बच्चों के गले में तावीज़ लटकाया जाए, बशर्ते ये कि तावीज़ किसी लोहे या चमड़े में बन्द हों"

(अल मजमुआ शरहउल मुहज़्ज़ब, जिल्द 02, सफ़ह 71)

हज़रते इमाम बैगावी के नज़दीक़

हज़रते इमाम बैगावी लिखते हैं कि "सईद बिन मुसय्यब से सवाल पूछा गया कि औरतों और छोटे बच्चों के गले में ऐसे तावीज़ लटकाना जिन में क़ुरान मजीद लिखा हो तो इसका क्या हुक्म है?

तो हज़रते सईद बिन मुसय्यब ने फरमाया जब तावीज़ चमड़े में बंधा हुआ हो या लोहे की डिबिया में हो तो कोई हर्ज नही"(सरहुस्सुन्नह, जिल्द 12, सफ़ह 158)


ये हमारे अकाबिर ओलमाये कराम का मौक़फ़ है जो तावीज़ को लिखने और पहनने को जाएज़ फ़रमाते हैं

हां ग़ैरमुस्लिमों के पास जाना और उनसे ताविज़ात वग़ैरह करवाना नाजयज़ और कुफ्ऱ व शिर्क भी है, लिहाज़ा जादूगर और कुफ़्फ़ार के पास हरगिज़ ना जाएं






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