दुल्हन का मायके में चांद देखने जाना कैसा है

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 दुल्हन का मायके में चांद देखने जाना कैसा है

 सवाल  : क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसला के बारे में कि आज कल यह रिवाज हो चुका है कि जब लड़की की शादी होती है तो वह चांद देखने के लिए अपने मायके जाती है और कहते हैं कि अपने ससुराल में चांद नहीं देखना चाहिए मेहरबानी करके हमें बताएं कुरान और हदीस की रौशनी में यह कहां तक दुरुस्त है आपका बहुत शुक्रगुज़ार रहूंगा
 साईल :  मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी (सेमरबारी दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)

 जवाब  : शादियों में तरह-तरह के रसमें हैं उनमें कुछ जायज़ है़ं कुछ नाजायज़ हैं लिहाज़ा साहब ए बहारे शरीयत इरशाद फरमाते हैं  रुसूम की बिना उर्फ पर है यह कोई नहीं समझता कि शरअन वाजिब या सुन्नत या मुस्तहब हैं लिहाज़ा जब तक किसी रस्म की मामानअत शरीयत से साबित ना हो उस वक़्त तक उसे हराम व नाजायज़ नहीं कह सकते खींचतान कर ममनूअ क़रार देना ज़यादती है मगर यह जरूर है कि रूसूम की पाबंदी उसी हद तक कर सकता है कि किसी फेल हराम में मुब्तला ना हो बाज़ लोग इस क़दर पाबंदी करते हैं कि ना जाईज़ फेल करना पड़े तो पड़े मगर रूसूम का छोड़ ना गवारा नहीं (बहारे शरीयत जिल्द १ हिस्सा हफ्तुम सफा ९३)

नई शादी होती है तो कुछ अफराद लड़की को नए चांद के मौका पर अपने घर बुला लेते हैं इसलिए कि नया माहौल है नए लोग हैं लड़कियों को शुरू में अजनबीयत का एहसास होता है इसलिए महीना  १५ दिनों में ससुराल मायेका की आमद  व रफ्त होती है ताकि अपने ससुराल के माहौल को खूब अच्छी तरह समझ ले इस बिना पर लाते हैं शरअन इसमें कोई क़बाहत नहीं है इस लिए लाना जायज़ है उसे कोई वाजिब व सुन्नत नहीं समझते हैं
والله اعلم بالصواب

 अज़ क़लम  
 मोहम्मद रज़ा अमजदी
 हिंदी ट्रांसलेट 
 मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)



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