दाढ़ी वाले मुसलमानों को मुल्ला जी कहना कैसा है
सवाल : किया फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसला के बारे में की मुसलमान जिस के चेहरे पर दाढ़ी हो उसको मुल्ला जी कहना कैसा उलमा ए किराम रहनुमाई फरमाएं
साईल : मोहम्मद सगीर खान क़ादरी रिज़वी
जवाब : जिसके चेहरे पर दाढ़ी हो उसको मुल्ला जी कहना मना है क्योंकि जाहिल के चेहरे पर भी दाढ़ी होती है तो जाहिल को आलिम फाज़िल नहीं कह सकते हैं हां कोई आलिम ए दीन है तो कोई खराबी नहीं क्योंकि मुल्ला जी के मतलब भी आलिम फाज़िल होते हैं बाज़ इलाकों में मुल्ला जैसे कुछ गलत तस्मीया देते हैं उस जगह उसकी जबान में अगर कुछ गलत समझा जाता हो तो वहां के लोगों के लिए उलमा को मुल्ला जी कहना मना है वरना बड़े-बड़े बुज्रगाने दीन का नाम मुल्लाह है शरअन कोई खराबी नहीं लफ्ज़ ए मुल्ला सिफत मौला से बना हुआ निहायत उम्दा लिखने वाला अलिम फाज़िल मस्जिद में नमाज़ पढ़ाने वाला बच्चों को पढ़ाने वाला (बहवाला फिरोज़ुल लुगात सफा मीमलाम)
साईल : मोहम्मद सगीर खान क़ादरी रिज़वी
जवाब : जिसके चेहरे पर दाढ़ी हो उसको मुल्ला जी कहना मना है क्योंकि जाहिल के चेहरे पर भी दाढ़ी होती है तो जाहिल को आलिम फाज़िल नहीं कह सकते हैं हां कोई आलिम ए दीन है तो कोई खराबी नहीं क्योंकि मुल्ला जी के मतलब भी आलिम फाज़िल होते हैं बाज़ इलाकों में मुल्ला जैसे कुछ गलत तस्मीया देते हैं उस जगह उसकी जबान में अगर कुछ गलत समझा जाता हो तो वहां के लोगों के लिए उलमा को मुल्ला जी कहना मना है वरना बड़े-बड़े बुज्रगाने दीन का नाम मुल्लाह है शरअन कोई खराबी नहीं लफ्ज़ ए मुल्ला सिफत मौला से बना हुआ निहायत उम्दा लिखने वाला अलिम फाज़िल मस्जिद में नमाज़ पढ़ाने वाला बच्चों को पढ़ाने वाला (बहवाला फिरोज़ुल लुगात सफा मीमलाम)
लेकिन दौरे हाज़िर में लफ्ज़ ए मुल्ला अहानत की गर्ज़ से कुफ्फार व फुस्साक़ इस्तेमाल करते हैं इसीलिए लफ्ज़ ए मुल्ला कहना ममनुअ है जैसा कि सहाबा ए किराम मोहम्मद ﷺ कि जब कोई बात ना समझ पाते या बराबर सुन ना पाते तो कहते राईना (راعنا) और इस माना में कोई खराबी भी नहीं लेकिन यहूद अपनी लुगत के एतबार से इस लफ्ज़ से मज़ाक़ उड़ाते तो अल्लाह तआला ने मना फरमाया
یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَقُوْلُوْا رَاعِنَا وَ قُوْلُوا انْظُرْنَا وَ اسْمَعُوْاؕ-وَ لِلْكٰفِرِیْنَ عَذَابٌ اَلِیْمٌ۔
तर्जुमा कंज़ुल इरफान ए ईमान वालो राईना ना कहो और यूं अर्ज़ करो कि हुजूर हम पर नज़र रखें और पहले ही बगौर सुनो और काफिरों के लिए दर्दनाक अज़ाब है (सूरह अल बकरा १०४)
والله و رسولہ اعلم باالصواب
अज़ क़लम
मोहम्मद इम्तियाज़ क़मर रज़वी अमजदी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)