जो शख्स अलिम ए दीन को हकीर जाने तो क्या हुक्म है
सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए दीन की किसी आलिम को गाली देना कैसा है जवाब इनायत फरमाएं मेहरबानी होगी ?
साईल :कफिल रज़ा माले गावं
जवाब : सूरत ए मज़कुर मैं हुजूर ﷺ ने फरमाया कि मैंने जिब्राईल से पूछा की मेरी उम्मत के लिए कौन सा अमल सबसे अफज़ल है उन्होंने कहा इल्म आका फरमाते हैं मैंने फिर पूछा उसके बाद क्या अफज़ल है उन्होंने कहा आलिम ए दीन को देखना मैंने दरयाफ्त किया फिर कौन सा अमल अफज़ल है उन्होंने कहा कि आलिम ए दीन की जियारत करना (तफसीर ए कबीर जिल्द 1 सफा 282)
साईल :कफिल रज़ा माले गावं
जवाब : सूरत ए मज़कुर मैं हुजूर ﷺ ने फरमाया कि मैंने जिब्राईल से पूछा की मेरी उम्मत के लिए कौन सा अमल सबसे अफज़ल है उन्होंने कहा इल्म आका फरमाते हैं मैंने फिर पूछा उसके बाद क्या अफज़ल है उन्होंने कहा आलिम ए दीन को देखना मैंने दरयाफ्त किया फिर कौन सा अमल अफज़ल है उन्होंने कहा कि आलिम ए दीन की जियारत करना (तफसीर ए कबीर जिल्द 1 सफा 282)
मेरे आका ﷺ इरशाद फरमाते हैं कि आलिम का सोना इबादत है इसका मजहबी मुजाकरा तस्बीह है उसकी सांस सदका है और आंसू का हर कतरा जो उसकी आंख से टपकता है जहन्नम के एक समंदर को बुझा देता है
तो जिस ने आलिम की तौहीन की और जिसने इल्म की तौहीन की तहकिक उसने इल्म की तौहीन की तहकिक उसने नबी की तौहीन की और जिसने नबी की तौहीन की तहकिक उसने जिब्राइल की तौहीन की और जिस ने जिब्राइल की तौहीन की तहकिक उसने अल्लाह की तौहीन के और जिस ने अल्लाह की तौहीन की अल्लाह उसे कियामत के दिन ज़लील व रुसवा करेगा (इमाम राजी. तफसीर ए कबीर जिल्द 1 सफा 281)
आलिम बनो या उससे इल्म हासिल करने वाला बनो या उसकी बात सुनने वाला बनो या उससे मोहब्बत करने वाला बनो और पांचवा मत बनो की हिलाक हो जाओगे (तफसीर ए कबीर जिल्द 1 सफा 282)
और अगर अज़ राह ए हसद बिला वजह आलिम ए दीन से बुगज़ व इनाद रखते और उसकी तहकिर व तौहीन करते हैं तो उन लोगों के कुफ्र का अंदेशा है
हजरत अल्लामा इमाम राज़ी रहमतुल्लाहि तआला अलैही रहमां फरमाते हैं जिसने आलिम ए दीन को हकीर समझा उसने अपने दीन को हिलाक कर दिया (तफसीर ए कबीर जिल्द 1 सफा 283)
और हुजूर आला हजरत अलेही रहमां फतावा ए रिज़वीया मैं तहरीर फरमाते हैं की आलिम ए दीन से बिला वजह बुगज़ रखने में भी खौफ ए कुफ्र है अगरचे एहानत ना करे (फतावा रज़विया जिल्द 10 सफा 571)
और तहरीर फरमाते हैं अगर आलिम ए दीन को इसलिए बुरा कहता है कि वह आलिम है जब तो सरीह काफिर है और अगर बेवजह इल्म उसकी ताज़िम फर्ज जानता है मगर अपनी दुनियावी खुसुमत के बाअस बुरा कहता है गाली देता है तहकीर करता है तो सखत फासिक़ व फाजीर है और अगर बेसबब रंज रखता है तो मरीज़ुल क़ल्ब खब्बीसुल बातिन है और उसके कुफ्र का अंदेशा है (फतावा रज़विया जिल्द 10 सफा 140)
और तनवीरुल अबसार व दुर्रे मुख्तार के हवाले से तहरीर फरमाते हैं यानी खुदा ए तआला ने इरशाद फरमाया कि वह आलिमों के दर्जे को बुलंद फरमाएगा तो आलिम को बुलंद करने वाला अल्लाह है
लिहाजा जो शख्स उसको गिराएगा अल्लाह उसको जहन्नम में गिराएगा अगर उसने इस वजह से ऐसा जुमला इस्तेमाल किया कि वह आलिम है तो वह काफिर हो गया और अगर अपनी दुनियावी खुसुमत के बाअस बुरा कहता है तो ऐसा शख्स सख्त गुनाहगार है उसको चाहिए की तौबा व इसतिगफार करे और आइंदा ख्याल रखे (फतावा रज़विया जिल्द 9 सफा 59) (फतावा फैजुर्रसूल जिल्द 2 सफा 666)
अज़ क़लम
मोहम्मद आमिल रजा खान
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)