( विलादते मुस्तफा अलैहिससलाम )
बुतों का गिर पड़ना
कुरैश के कुछ लोग जैसे अमरू बिन नुफेल और अब्दुल्ला बिन जहश वगैरा, एक बुत (मूर्ती) के पास जाया करते थे। वोह लोग उस रात भी बूत के पास गए...जिस रात आप ﷺ सल्लल्लाहू अलैही वसल्लम की पैदाइश हुई।इन्होंने देखा कि, वह बुत औंधे मुंह गिरा पड़ा है..इन लोगों को यह बात बुरी लगी इन्होंने उस बूत को उठाया और सीधा कर दिया। मगर, वह फिर गिर गया, इन्होंने फिर उसको सीधा किया... मगर, वह फिर उल्टा हो गया । इन लोगों को बहुत हैरत हुई, यह बात बहुत अजीब लगी । तब उस बुत से आवाज निकली :- "यह एक ऐसे बच्चे की पैदाइश की खबर है, जिसके नूर से मशरिक और मगरिब में जमीन के तमाम गोशे मुनव्वर हो गए हैं।बुत से निकलने वाली आवाज ने इन लोगों को बहुत ज्यादा हैरतज़दा कर दिया ।
ईरान के शहेंशाह के महल में दरार पड़ना
इसके अलावा एक वाकिया यह पेश आया कि, ईरान के शहंशाह किसरा नौशेरवान का महल हिलने लगा और उसमें दरार पड़ गई । नौशेरवान का यह महल निहायत ही मजबूत था। बड़े-बड़े पत्थरों और चूने से तामीर किया गया था । इस वाकिए से पूरी सल्तनत में दहशत फैल गई । दरार पडने से खौफनाक आवाज भी निकली थी। महल के 14 कंगूरे टूट कर नीचे आ गिरे थे।
आतिश गाह की आग बुझना
आप की पैदाइश पर एक वाकिया यह पेश आया कि, फारस के तमाम आतिश क़दों की वह आग बुझ गई.... जिसकी वह लोग पूजा करते थे और उस आग को कभी बुझने नहीं देते थे। आतिश कदा कि, वह आग जो 1000 साल से कभी ना बुझी थी, वह खुद–ब–खुद बुझ गई. उस रात में एक ही वक्त में तमाम के तमाम आतिश क़दो की आग आनन-फानन बुझ गई । आग के पूजने वालों में रोना पीटना शुरू हो गया।.यह दर हकीकत आतिश परस्ती और गुमराही के खात्मे का ऐलान था.
फारस के बादशाह नौशेरवान (जिसका लकब किसरा था) को ये तमाम खबर मिली.... तो उसने एक काहिन को बुलाया । उसने अपने महल में शगाफ पढ़ने और आतिश क़दो की आग बुझने के वाकियात उसे सुना कर पूछा :- "आखिर ऐसा क्यों हो रहा है ? वह का़हिन खुद तो जवाब न दे सका , लेकिन, उसने कहा :- "इन सवालात के जवाबात मेरा मामू दे सकता है । उसका नाम सतीह है। वो बहुत बड़ा काहिन है " नौशेरवान ने कहा :- "ठीक है! तुम जाकर इन सवालात के जवाबात लाओ।"
वह काहिन गया , अपने मामू सतीह से मिला, उसे यह सारे वाकियात सुनाएं, उसने सुन कर कहा :- "एक असा वाले नबी ज़ाहिर होंगे, जो अरब और मुल्के शाम पर छा जाएंगे* और जो कुछ होने वाला है होकर रहेगा।"उसने आ कर यह जवाब कि़सरा को बताया । उस वक्त तक कि़सरा ने दूसरे काहिनो से भी मालूमात हासिल कर ली थी चुनांचे, यह सुनकर उसने कहा :- तब तो फिर अभी वह वक्त आने में देर है ( यानी उनका गलबा मेरी हुकूमत के बाद होगा। )
आप का नाम मुबारक
पैदाइश के सातवें दिन हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने आपका अकी़का़ किया और नाम आपका " मुहम्मद " रखा। अरबों में इससे पहले यह नाम किसी का नहीं रखा गया था। कुरैश को यह नाम अजीब सा लगा। चुनांचे, कुछ लोगों ने हज़रत अब्दुल मुत्तलिब से कहा :- "ऐ अब्दुल मुत्तलिब ! क्या वजह है कि, तुमने इस बच्चे का नाम इसके बाप दादा के नाम पर नहीं रखा..... बल्कि मुहम्मद रखा है? और यह नाम ना तुम्हारे बाप दादा में से किसी का है, ना तुम्हारी कौम में से किसी का है ।" हज़रत अब्दुल मुत्तलिब ने उन्हें जवाब दिया :- "मेरी तमन्ना है कि, आसमानों में अल्लाह तआला इस बच्चे की तारीफ फरमाएं और जमीन पर लोग इसकी तारीफ करें।" ( मुहम्मद के मा'अनी हैं जिसकी बहुत ज्यादा तारीफ की जाए) इसी तरह वालिदा की तरफ से आपका नाम " अहमद" रखा गया । अहमद नाम भी इससे पहले किसी का नहीं रखा गया था। मतलब यह कि इन दोनों नामों की अल्लाह ताला ने हिफाज़त की.... और कायनात की पैदाईश से अब तक कोई भी यह नाम न रख सका । अहमद का मतलब है सबसे ज्यादा तारीफ करने वाला।
अल्लामा सुहेली ने लिखा है: आप अहमद पहले हैं और मुहम्मद बाद में । यानी आपकी तारीफ दूसरों ने बाद में की इससे पहले आप की शान यह हैं कि, आप अल्लाह ताला की सबसे ज़्यादा हम्दो सना करने वाले हैं । पुरानी आसमानी किताबों में और सहीफों में आपका नाम अहमद जिक्र किया गया है।