क्या वज़ू करने से गुनाहे सगीरा व कबीरा माफ हो जाता है

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 क्या वज़ू करने से गुनाहे सगीरा व कबीरा माफ हो जाता है


 सवाल  क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में की वज़ू करने से गुनाह धूल जाते हैं या नहीं ? और अगर धूल जाते हैं तो गुनाहे सगीरा या कबीरा की कोई तखसीस है या दोनों गुनाह धूल जाते हैं

 साईलदानिश रज़ा गोंडवी

 जवाब  बेशक वज़ू से गुनाह धूल जाते हैं जैसा की हदीस शरीफ में है 

 عَنْ عَمْرَو بْنَ عَبَسَةَ، ‌‌‌‌‌‏يَقُولُ:‌‌‌‏ قُلْتُ:‌‌‌‏ يَا رَسُولَ اللَّهِ، ‌‌‌‌‌‏كَيْفَ الْوُضُوءُ ؟ قَالَ:‌‌‌‏ أَمَّا الْوُضُوءُ، ‌‌‌‌‌‏فَإِنَّكَ إِذَا تَوَضَّأْتَ فَغَسَلْتَ كَفَّيْكَ فَأَنْقَيْتَهُمَا خَرَجَتْ خَطَايَاكَ مِنْ بَيْنِ أَظْفَارِكَ وَأَنَامِلِكَ، ‌‌‌‌‌‏فَإِذَا مَضْمَضْتَ وَاسْتَنْشَقْتَ مَنْخِرَيْكَ وَغَسَلْتَ وَجْهَكَ وَيَدَيْكَ إِلَى الْمِرْفَقَيْنِ وَمَسَحْتَ رَأْسَكَ وَغَسَلْتَ رِجْلَيْكَ إِلَى الْكَعْبَيْنِ، ‌‌‌‌‌‏اغْتَسَلْتَ مِنْ عَامَّةِ خَطَايَاكَ، ‌‌‌‌‌‏فَإِنْ أَنْتَ وَضَعْتَ وَجْهَكَ لِلَّهِ عَزَّ وَجَلَّ خَرَجْتَ مِنْ خَطَايَاكَ كَيَوْمٍ وَلَدَتْكَ أُمُّكَ. قَالَ أَبُو أُمَامَةَ:‌‌‌‏ فَقُلْتُ:‌‌‌‏ يَا عَمْرَو بْنَ عَبَسَةَ، ‌‌‌‌‌‏انْظُرْ مَا تَقُولُ، ‌‌‌‌‌‏أَكُلُّ هَذَا يُعْطَى فِي مَجْلِسٍ وَاحِدٍ ؟ فَقَالَ:‌‌‌‏ أَمَا وَاللَّهِ لَقَدْ كَبِرَتْ سِنِّي وَدَنَا أَجَلِي وَمَا بِي مِنْ فَقْرٍ فَأَكْذِبَ عَلَى رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ وَلَقَدْ سَمِعَتْهُ أُذُنَايَ وَوَعَاهُ قَلْبِي مِنْ رَسُولِ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ

 हज़रत अम्र बिन अबसा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि मैंने अर्ज़ कियाअल्लाह के रसूल ﷺ वज़ू का सवाब क्या है ? आप ﷺ ने फरमाया वज़ू का सवाब यह है कि जब तुम वज़ू करते होऔर अपनी दोनों हथेली धोकर उन्हें साफ करते हो तो तुम्हारे नाखून और उंगलियों के पोरों से गुनाह निकल जाते हैंफिर जब तुम कुल्ली करते हो और अपने नथुनों में पानी डालते होऔर अपना चेहरा और अपने दोनों हाथ के कोहनियों तक धोते होऔर सर काम मसह करते होऔर टखने तक पावं धोते हो तो तुम्हारे अक्सर गुनाह धूल जाते हैंफिर अगर तुम अपना चेहरा अल्लाह ﷻ के लिए (ज़मीन) पर रखते हो तो अपने गुनाहों से इस तरह निकल जाते हो जैसे उस दिन थे जिस दिन तुम्हारी माँ ने तुम्हें जना था,(निसाई ह न १४७ )

 रही बात सगीरा कबीरा की तो इसमें उलमा का एख्तिलाफ हैमुफ्ती अहमद यार खान अलैहिर्रहमां फरमाते हैं कि गुनाहे सगीरा माफ होते हैं,(मिरात ह न ४ )

 मगर सही यह है कि गुनाहे सगीरा व कबीरा दोनों गुनाह धूल जाते हैंजैसा कि सरकारे आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू फरमाते हैं कि बहुत उलमा फरमाते हैं यहां गुनाहों से सगाईर मुराद हैं""अक़ूल"" मैं कहता हूं (सरकारे आला हज़रत) तहक़ीक़ यह है कि कबाइर भी धूलते हैं अगर्चे ज़ाएल ना हों यह सैयदिना इमामे आज़म रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू वगैरा अकाबीरे औलिया ए किराम क़ुदुस्त इसरारहुम (قدست اسرارہم) का मुशाहिदा है।  (फतावा रज़विया जिल्द १ सफा ७७६)

नोट  मज़ीद मालूमात के लिए सरकारे आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू का रिसाला""बारिक़ुन्नूर फी मक़ादीर माउत्तूहूर (१३२७ हिजरी)"" जिल्द औवल सफा ७७६ पर मौजूद है और

الطرس المعدل فی حدالماء المستعمل(۱۳۲۰ھ)

जो जिल्द दोम सफा ४३ पर मौजूद है दोनों रिसालो का मुतालआ करें

والله و رسولہ اعلم بالصواب



 अज़ क़लम

  फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी

हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)






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