फिर्क़हा ए बातिला कपड़ा वगैरा दें तो लेना कैसा है

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 फिर्क़हा ए बातिला कपड़ा वगैरा दें तो लेना कैसा है


 सवाल  क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसला में कि अगर कोई शख्स मुल्के अरब में काम करने गया हो और उसका मालिक बद अक़ीदा हो और उसको वह कुछ पैसे और कपड़े देता हो तो उसको ले सकते हैं या नहीं

 साईलमोहम्मद साक़िब रज़ा

 जवाब  अगर देवबंदी वहाबी के यहां नौकरी करने पर इस बात का अंदेशा हो कि हमें उनके अकीदे के मुवाफिक़ रहना पड़ेगा या उनके साथ खाना पीना पड़ेगा या उनके जनाज़े में शिरकत करना पड़ेगा या उनके साथ नमाज़ पढ़नी पड़ेगी या उनके दबाव में आकर शरीयत के खिलाफ बोलना पड़ेगा तो उनके यहां नौकरी ही जायज़ नहीं

 क्योंकि हदीस शरीफ ने इस की मुमानअत आई है,

 और अगर इस बात पर उम्मीद हो कि मज़कूरा बाला बातें ना पाई जाएगी सिर्फ काम से मतलब रहेगा तो नौकरी करना जायज़ होगा जैसा कि फतवा रज़विया शरीफ में है कि

 सरकार ए आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से सवाल किया गया कि रंडीयोंडोमनियों के यहां मजदूरी करके कमाना जायज़ है या नहीं ? अगर नहीं जायज़ तो नेसारा की नौकरी क्यों जायज़ है ?
 तो आपने जवाब में इरशाद फरमाया अस्ल मजदूरी अगर किसी फेल नाजायज़ पर हो सब के यहां नाजायज़और जायज़ पर हो तो सबके यहां जायज़ (फतावा  रज़विया जिल्द २३ सफा ५०८दावते इस्लामी)

 और उनका माल बगैर मक्र व फरेब के माल हासिल हो तो लेना जायज़ है जबकि कोई और वजह ना हो जैसा कि मुजद्दीदे आज़म इमाम अहमद रज़ा खान फाज़िले बरेलवी अलैहिर्रहमा तहरीर फरमाते हैं
 काफिर अगर होली या दिवाली के दिन मिठाई दें तो ना ले हां अगर दूसरे रोज़ दे तो ले लें मगर यह नहीं समझें कि उनके खुब्सा के तिवहार की मिठाई है बल्कि (مال موذی نصیب غازی)जाने

 (मलफूज़ात ए आला हज़रत हिस्सा १ सफा १६३)

والله و رسولہ اعلم بالصواب



 अज़ क़लम

  फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी

हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)

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