(शादी में दूल्हे को हल्दी लगाना नाचगाना करना है)
सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसला के बारे में की शादी बियाह के मौक़ा पर दूल्हा को जो औरतें हल्दी लगाती है और गाना गाती है ऐसा करना कैसा है ? और अगर किसी घर में इस तरह होता है और उस घर में आलिम है और वह कहता है कि अगर इस तरह गाना वगैरह गाया गया तो हम घर को रिश्ते को छोड़कर चले जाएंगे तो इस बिना पर घर छोड़ना कैसा है छोड़ सकता है कि नहीं ज़ाएद हवालों के साथ जल्द से जल्द मुकम्मल जवाब इनायत फरमाएं बहुत मेहरबानी होगी
साईल : रिज़वान अहमद इस्माइली (सिद्धार्थ नगर यूपी)
जवाब : हल्दी और उबटन जिसको बाज़ जगह बुकवा कहते हैं लगाना जायज़ है मगर ज़रूरी नहीं शादी हो या गैर शादी अलबत्ता बालिग़ औरत से हल्दी उबटन लगवाना नाजायज़ वह हराम है यहां तक की मां भी बदन को हाथ नही लगा सकती आला हज़रत अज़ीमुल बरकत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खान फाज़िले बरेलवी अलैहिर्रहमा व रिज़वान से पूछा गया कि दूल्हे को उबटन लगाना और उस मौक़ा पर गुड़ तक़्सीम करना कैसा है तो जवाब में इरशाद फरमाया कि उबटन हल्दी मलना जायज़ है और किसी खुशी पर गुड़ की तक़्सीम असराफ नहीं और दूल्हा की उम्र नौ(९) दस (१०) साल की हो तो अजनबी औरतों का उसके बदन में उबटन मलना भी गुनाह व ममनूअ नहीं हां बालिग़ के बदन में ना महरम औरतों का मलना नाजायज़ व हराम है और बदन को हाथ तो मां भी नहीं लगा सकती यह हराम और सख्त हराम है (फतावा ए रिज़वीया जिल्द २२ सफा २४५ मुतरजिम)
और उबटन (हल्दी) मलने के वक़्त का मुरव्वजा रसम यानी औरतों का गानाबाजाबजाना उसका सुनना सब हराम व फिस्क़ है (درمختار حظروالاباحۃ) मैं है
قال ابن مسعود صوت الھو والغناء ینبت فی القلب کما ینبت الماء النبات قلت و فی البزازیۃ استماع صوت الملاھی کضرب قصب و نحوہ حرام لقولہ علیہ االصلاۃ والسلام استماع الملاھی معصیۃ والجلوس علیھا فسق والتلذذ بھا کفر ای بالنغمۃ ھ۱
(दुर्रे मुख्तार जिल्द ५ सफा २४५)
बहर कैफ मज़कूरा रसमे कबीहा यानी उबटन मलने के वक़्त औरतों का गाना बजाना और सुनना नाजयज़ व हराम व फिस्क़ है अगर्चे हल्दी उबटन मलना जाइज़ है जितनी ख्वातीन उस फेल हराम के मुरतकीब हुए सब पर तौबा व अस्तगफार लाज़िम है सब के सब तौबा सादिक़ा करें और उस बुरे रस्मो रिवाज को समाज से खत्म करने की कोशिश करें
और घर के आलिम साहब पर कोई हुक्म नाफिज़ नहीं होगा कि उन्होंने हत्तल मक़दूरे शरीअत का हुक्म बताते हुए औरतों को उसके बाज़ आने की तल्क़ीन की है ना मानने के बिना पर उन्होंने कहां होगा कि आप लोग ऐसा ही गाने बजाने का काम मना करने के बावजूद भी करते रहेंगे तो मैं घर से निकल जाऊंगा गोया आलिम साहब का यह कहना बतौरे तादिब तल्क़ीन है मुमकिन है कि आलिम साहब की अपनी नाराज़गी ज़ाहिर करने से औरतें यह काम तर्क कर दें और जायज़ तरीक़े से हल्दी लगाएं जैसा की शरअ शरीफ की तरफ से इजाज़त है
والله اعلم بالصواب
अज़ क़लम
अबू सदफ मोहम्मद सादिक़ रज़ा साहब
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)