हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम कि जिन्दगी मुबारका

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 हज़रत मुहम्मद मुस्तफ़ा ﷺ सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम कि जिन्दगी मुबारका


 हज़रत अब्दुल मुत्तलिब

हुजूरे अकदस ﷺ सल्लल्लाहु तआला अलैहि वसल्लम के दादा अब्दुल मुत्तलिब का असली नाम *शैबा* है यह बड़े ही नेक- नफ्स और इबादत करने वाले व जाहिद थे गारे हिरा में खाना - पानी साथ ले कर जाते और कई कई दिनों तक लगातार ख़ुदा की इबादत में मगन रहते रमज़ान शरीफ़ के महीने में ज्यादातर गारे हिरा में एतिकाफ किया करते थे ख़ुदा के ध्यान में अकेले रहा करते थे 

रसूलुल्लाह ﷺ सल्लल्लाहु तआला अलैही वसल्लम का नूरे नुबुव्वत उनकी पेशानी में चमकता था उनके बदन में मुश्क की खुश्बू आती थी अहले अरब खुसूसन कुरेश को उनसे बड़ी अकीदत थी मक्का वालों पर जब कोई मुसीबत आती या सूखा पड़ जाता तो लोग अब्दुल मुत्तलिब को साथ लेकर पहाड़ पर चढ़ जाते और बारगाहे खुदावन्दी में उनको वसीला बनाकर दुआ माँगते थे तो दुआ कबूल हो जाती थी यह लड़कियों को ज़िन्दा दफ़न करने से लोगों को बड़ी सख़्ती के साथ रोकते थे चोर का हाथ काट डालते थे 

अपने दस्तरख्वान से परिन्दों को भी खिलाया करते थे । इसलिए इनका लकब ' मुतइमुत - तैर *परिन्दों को खिलाने वाले है शराब और ज़िना को हराम जानते थे और अकीदा के लिहाज़ से मुवहहिद थे ज़मज़म शरीफ का कुवाँ जो बिल्कुल पट गया था आपही ने उसको नए सिरे से खुदवाकर दुरुस्त किया लोगों को ज़मज़म के पानी से सैराब किया आप भी काबा के मुतवल्ली और सज्जादा नशीन हुए असहाबे फील का वाकिआ आपके वक़्त में पेश आया एक सौ बीस बरस की उम्र में आपकी वफ़ात हुई । (जरकानी अलल - मवाहिब जिल्द -1 सफह -72 )(सीरते मुस्तफ़ा पहला बाब सफ़ह,36,37)


नबी ए करीम ﷺ सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम की नसीहत

हज़रत अबू हुरैरा से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लम ने फ़रमाया  दूसरों की औरतों से दूर रहो, तुम्हारी औरत भी पाक दामन रहेंगी और अपने वालिदैन के साथ हुस्न सुलूक (अच्छा बरताव) करो, तुम्हारी औलाद भी तुमसे हुस्न सुलूक (अच्छा बरताव) करेगी।(मुस्तदरक हाकिम 7258)





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