सजदा की हालत में दुआ मांगना कैसा है

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 सजदा की हालत में दुआ मांगना कैसा है


 सवाल  क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में की सजदे की हालत में दुआ करना अज़ रूए शरअ कैसा है मुदल्लल जवाब इनायत फरमाएं नवाज़िश होगी

 साईलमोहम्मद अनवर रज़ा

 जवाब  सवाल जब भी करें खुलासा करें आप के सवाल से वाज़ेह नहीं है कि किस चीज़ का सजदा अगर सजदा से मुराद नमाज़ फर्ज़ का सजदा है तो उस में दुआ करना मना है,
 अलबत्ता नमाज़े नफल में वो दुआएं पढ़ सकते हैं जो अहादीसे तैय्यबा में है जैसा कि अल्लामा सदरुश्शरीआ अलैहिर्रहमा फरमाते हैं  यह जो कहा गया कि सजदा ए तिलावत में सुबहान रब्बियल आला पढ़ें यह फर्ज़ नमाज़ में हैऔर नफल नमाज़ में सजदा किया तो चाहे यह पढ़े या और दुआएं जो अहादीस में वारद हैं वह पढ़ेमसलन
 سجد وجھی للذی خلقہٗ وصورہٗ وشق سمعہٗ وبصرہٗ

 (بحوالہ وقوتہ فتبارک اللہ احسن الخالقین)

 मेरे चेहरे ने सजदा किया उसके लिए जिस ने इसे पैदा किया और इसकी सूरत बनाई और अपनी ताक़त व कुव्वत से कान और आंख की जगह फाड़ी बरकत वाला है अल्लाह तआला जो अच्छा पैदा करने वाला है, या यह पढ़ें
 اللھم اکتب لی عندک بھا اجرا و ضع عنی بھا وزرا واجعلھا لی عندک زخرا و تقبلھا منی کما تقبلتھا من عبدک داوٗد
 अल्लाह पाक इस सजदा की वजह से तू मेरे लिए अपने नज़दीक सवाब लिख और इसकी वजह से मुझ से गुनाह को दूर कर और इसे तू मेरे लिए अपने पास ज़खीरा बना और इसको तू मुझसे क़ुबूल कर जैसा तूने अपने बंदे दाऊद अलैहिस्सलाम से क़ुबूल किया,या यह पढ़े
 سبحن ربنا ان کان وعد ربنا لمفعولا
 पाक है हमारा रब बेशक हमारे परवरदिगार का वादा होकर रहेगा,और अगर नमाज़ का सजदा नहीं बल्कि बैरुने नमाज़ है मसलन सजदा ए शुक्र हैसजदा ए तिलावततो जो चाहे पढे़ कोई हर्ज नहीं
 जैसा कि अल्लामा सदरुश्शरीआ अलैहिर्रहमा फरमाते हैं  अगर बैरुने नमाज़ हो तो चाहे यह पढ़े या सहाबा व ताबईन से जो आसार मरवी हैं वह पढ़ेमसलन इब्ने उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से मरवीवह कहते थे,
 اللھم لک سجد سوادی ربک امن فؤادی اللھم ارزقنی علما ینفعنی وعملا یرفعنی
 ऐ अल्लाह पाक मेरे जिस्म ने तुझे सजदा किया और मेरा दिल तुझ पर ईमान लायाऐ अल्लाह तू मुझको इल्मे नाफे और अमल राफे रोज़ी कर, (बहारे शरीअत हिस्सा ४ सजदा ए तिलावत का बयान)

 मगर याद रहे कि मकरूह औक़ात में ना हो क्योंकि उन औक़ात में मना है, जैसा कि अल्लामा सदरुश्शरीआ अलैहिर्रहमा फरमाते हैं तुलुअ व गुरूब व निस्फुन्नहार इन तीनों वक़्तों में कोई नमाज़ जायज़ नहीं ना फर्ज़ ना वाजिब ना नफल ना अदा ना क़ज़ा, यूं ही सजदा ए तिलावत व सजदा ए सहू भी नाजायज़ हैअलबत्ता उस रोज़ अगर असर की नमाज़ नहीं पढ़ी तो अगर्चे आफताब डूबता हो पढ़ लेमगर इतनी ताखीर करना हराम है,
 यूं ही नमाज़े असर और नमाज़े फजर के बाद नफली सजदा मना है कि इन औक़ात में कोई नफल नमाज़ व नफली सजदा जायज़ नहीं,

والله تعالی اعلم بالصواب




 अज़ क़लम

  फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी

हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)





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