नअलैन शरीफ पर कलमा लिखना और बोसा लेना कैसा है

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 नअलैन शरीफ पर कलमा लिखना और बोसा लेना कैसा है


 सवाल  क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसाअला में कि एक मस्जिद में नबी ए करीम अलैहिस्सलाम का नअलैन मुबारक लगी हुई है और वहां के नमाज़ी पांचों टाइम उसे चूमते और बोसा लेते हैं एक शख्स कहने लगा यह चुमना कहां से साबित है ? यह जूता है इस जूते पर फिर अल्लाह और कुरान पाक की आयतें लिखना वैसे गलत है इस बारे में क्या हुकुम है ? जूता बार-बार कह रहा है तो जूता कहना कैसा है

 साईलमौलाना हशमत अली


 जवाब  बेशक नअलैन पर कलमा वगैरा लिखना और उसे चूमना जायज़ व बाअसे बरकत है

 इसी तरह का एक सवाल सरकार ए आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से किया गया तो आप ने जवाब में तहरीर फरमाया 
 फिल वाक़ेअ आसारे शरीफा हुज़ूर सैयदुल मुरसलीन ﷺ से तबर्रुक सलफन व खलफन ज़माना ए अक़द्दस हुजूर पुर नूर सैयद ए आलम ﷺ व सहाब ए किराम रज़ि अल्लाहू तआला अन्हुम से आज तक बिला नकीर राईज व मामूल और बइज्मा ए मुस्लिमीन मंदूब व महबूब व कसरत अहादीसे सहीहा बुखारी व मुस्लिम वगैरहुमा सहाह व सनन व कुतूब हदीस उस पर नातिक़ जिन में बाज़ की तफसील फक़ीर ने (کتاب البارقۃ الشارقۃ علی مارقۃ الشارقۃ) में ज़िक्रे की,

 और ऐसी जगह सुबूते यक़ीनी या सनद मुहदिसाना कि इस्लाह हाजत नहीं इस की तहक़ीक़ व तन्क़ीह के पीछे पड़ना और बगैर उसकी ताज़ीम व तबर्रुक से बाज़ रहना सख्त महरुमी कम नसीबी है
 अइम्मा ए दीन ने सिर्फ हुजूर अक़द्दस ﷺ के नाम से उस शै का मारूफ होना काफी समझा है

 तफसील के लिए फतावा रज़विया जिल्द ९ सफा ९२ निस्फ औवल क़दीम का ज़रूर मुतालआ करें
 चूंकी जूते को अरबी में नअलैन कहते हैं इसलिए जूता कहने में हर्ज नहीं है मगर अदबन नअलैन शरीफ कहना चाहिए

والله و رسولہ اعلم بالصواب




 अज़ क़लम

  फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी

हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)




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