नाच गाना वाली बारात में इमाम शामिल हो तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ना कैसा है
सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम व मुफ्तियाने एज़ाम नाच गाना बाजा और डी जे वाली बारात में शिरकत करना कैसा है और अगर इमाम शिरकत करे तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ना कैसा है हवाले के साथ जवाब इनायत फरमाएं
साईल : मोहम्मद वसीम फैज़ी
जवाब : नाच गाना बाजा बजाना और उसका सुनना सब हराम व फिस्क़ है दुर्रे मुख्तार में है
قال ابن مسعود صوت اللھو والغناء ینبت النفاق فی القلب کما ینبت الماء النبات قلت وفی البزازیة استماع الملاھی کضرب قصب ونحوہ حرام لقولہ علیہ الصلاة والسلام استماع الملاھی معصیة والجلوس علیھا فسق والتلذبھا کفر ای بالنغمة اھ
(दुर्रे मुख्तार जिल्द ५ सफा २४५)
और फासिक़ को इमाम बनाना गुनाह उसके पीछे नमाज़ मकरूहे तहरीमी वाजिबुल एयादा है
लिहाज़ा जिन लोगों ने ऐसी बारात में शिरकत की जिसमें रंडियां नाचने के लिए आएं और दूसरे खुराफात हुए जैसे लोगों ने डांस किया बाजा बजाया गाना गाया या डी जे पर लोगों ने डांस किया तो जितने भी उस बारात में शामिल थे सब के सब फासिक़ व फाजिर गुनहगार मुस्तहिक़ ए अज़ाब नार हैं ख्वाह वह शिरकत करने वाले आलिम हो या जाहिल
आलिम हो तो उन पर हुक्म और सख्त हो जाता है कि उनको देखकर दूसरे लोग भी गुमराह होंगे ऐसे लोगों का बाईकाट कर दिया जाए (मरकज़ ए तरबियत इफ्ता जिल्द दोम सफा ३९०)
और हुजूर आला हज़रत फातावा ए रिज़वीया में तहरीर फरमाते हैं नाच बाजा की बारात में शिरकत करना किसी मोमिन के लिए जायज़ नहीं चाहे वह इमाम हो या मुक़्तदी अगर इमाम ऐसी बारात में जाता है तो उसके पीछे नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं जब तक वह तौबा ना कर ले फतावा रिज़वीया शरीफ जिल्द नहुम जिस हाफिज़ या इमाम ने बाजा और नाच की बारात में शिरकत की उसके ऊपर तौबा व इस्तगफार वाजिब है जब तक वह तौबा ना कर ले उसके पीछे नमाज़ पढ़ना जायज़ नहीं और जितने भी लोग उस बारात में शामिल हुए वह लोग भी तौबा करें अगर तौबा नहीं कर रहे हैं तो सारे मुसलमान उनका बाईकाट करें उनसे रिश्ता मुन्क़तअ करें उनसे सलाम व कलाम व तआम बंद करें(फतावा ए फैज़ूर रसूल जिल्द २ सफा ५६९)
والله و رسولہ اعلم باالصواب
अज़ क़लम
मोहम्मद इस्माईल खान अमजदी क़ादरी रिज़वी अरशदी हन्फी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)