किसी मुसलमान को जाहिल कहना इंद्दशरअ कैसा है
सवाल : क्या फरमाते हैं उलमा ए दीन मुफ्तियान ए किराम इस मसला के बारे में कि किसी मुसलमान को जाहिल कहना कैसा है कुरान व हदीस की रौशनी में हवाला के साथ जवाब इनायत फमाएं मेहरबानी होगीसाईल : मोहम्मद शहबान खान (अमवा भारी)
जवाब : हक़ीर व ज़लील समझ कर किसी मुसलमान को जाहिल कहना हराम है ताजदार ए अहले सुन्नत हुजूर आला हज़रत फाज़िले बरेलवी रज़ि अल्लाहू अंहू तहरीर फरमाते हैं कि बिला वजह से शरई किसी मुसलमान जाहिल भी तहक़ीर ए हराम क़तई है रसूलुल्लाह ﷺ ने इरशाद फरमाया कि आदमी के बद होने को यह बहुत है की अपने मुसलमान भाई की तहक़ीर करे (माखूज़ ज़िया ए शरीयत हिस्सा १ सफा १२४)
लिहाज़ा मालूम हुआ कि बिला वजह शरई किसी मुसलमान जाहिल की भी तहक़ीर हराम व गुनाह है इसलिए जाहिल को भी जाहिल नहीं कहना चाहिए
والله و رسولہ اعلم باالصواب
अज़ क़लम
मोहम्मद शहरेयार खान क़ादरी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)