मूर्ति पर चढ़ाने वालों के हाथ फूल बेचना कैसा है
सवाल क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसला में कि अगर कोई फूलों की तिजारत कर रहा है और उसके पास हर क़िस्म के लोग आर्डर दे रहे हैं तो सवाल यह है कि एक गैर मुस्लिम ने मूर्ति को हार पहनाने के लिए आर्डर दिया और उसने बना कर दे दिया और उजरत ले लिया तो उसका उजरत लेना कैसा है ? ज़ैद ने फतवा दिया है कि बेचने वाला काफिर हो गया तो क्या यह सही है ? अगर नहीं तो ज़ैद पर क्या हुक्म होगा
साईलमौलाना सरवर (बरकाती)
जवाब फूलों की तिजारत जायज़ है इसके बेचने में कोई हर्ज नहीं है अगर कोई मूर्ति पर चढ़ावा चढ़ाता है तो यह उसका फेल है ना कि बेचने वाले काहां ऐसों के हाथ ना बेचना तक़वा है,
फतावा ए आलमगीर में है
ولو استأجر الذمي مسلمًا لیبني لہ بیعۃ أو کنیسۃً جاز، ویطیب لہ الأجر کذا في المحیط
(الفتاویٰ الہندیۃ / کتاب الإجارۃ ۴۵۰)
आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से अफयून के मुतअल्लिक़ पूछा गया तो इरशाद फरमाया अफयून नशा की हद तक खाना हराम है और उसे बैरूनी इलाज मसलन ज़माद व तलाअ (ضمادوطلاء) में इस्तेमाल करना या खुर्दनी माजूनों में इतना क़लील हिस्सा दाखिल करना कि रोज़ की तरह शरबत नशे की हद तक ना पहुंचे तो जायज़ हैऔर जब वह मअसीयत के लिए मुतअय्यन नहीं तो उसके बेचने में हर्ज नहीं मगर उसके हाथ जिसके निस्बत मालूम हो कि नशा कि गर्ज़ से खाने या पीने को लेता है,
لان المعصیۃ تقوم بعینھا فکان کبیع السلاح من اھل الفتنۃ
इसलिए कि गुनाहे ऐन शे के साथ क़ायम होता है फिर उसके मिसाल इस तरह होती जैसे पहले फितना पर हथियार फरोख्त करनाऔर जब उसकी तिजारत मुतलक़न हराम ना हुई बल्कि जायज़ सूरतों पर भी मुश्तमिल हुई तो ज़्यादा मिक़दार ताजिरों के हांथ बेचना और हल्का हो गया कि यहां तअय्यन मअसीयत असलन नहीं और इसका नशा दारों के हाथ बेचना उनका फेल है
وتخلل فعل فاعل مختار یقطع النسبۃ کما فی الھدایۃ وغیرھا
किसी फाइलमुख्तार का दरमियान में घुसना निस्बत को मुनक़तअ कर देता हैजैसा की हिदया वगैरा में हैयह सूरतें उसके जवाज़ की निकलती हैं और अहले तक़वा को इससे एहतिराज़ ज़्यादा मुनासिब (फतावा ए रिज़वीया जिल्द २३सफा ५७५दावते इस्लामी)
और एक मक़ाम पर सरकार ए आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से पूछा गया कि मुसलमान को हिंदू मर्दा जलाने के लिए लकड़िया बेचना जायज़ है या नहीं ? तो आपने जवाब में तहरीर फरमाया लकड़िया बेचने में हर्ज नहीं
لان المعصیۃ لاتقوم بعینہا
क्योंकि मअसीयत उसके ऐन के साथ क़ायम नहीं होती मगर जलाने में एआनत की नियत ना करे अपना एक माल बेचे और दाम ले (फतावा ए रिज़वीया जिल्द १७सफा १६८दावते इस्लामी)
ज़ैद काफिर कहने की वजह से खुद काफिर हो गया लिहाज़ा ज़ैद पर तजदीदे ईमान और शादी शुदा हो तो तजदीदे निकाह लाज़िम है
والله و رسولہ اعلم باالصواب
अज़ क़लम
फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)