मज़ारात पर हाज़री का तरीक़ा

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 मज़ारात पर हाज़री का तरीक़ा

औरतों को मज़ारात पर जाने की इजाज़त नहीं! मर्दों के लिए इजाज़त है, मगर वह भी चंद उसूल के साथ!

पेशानी (माथा) ज़मीन पर रखने को सज़्दा कहते हैं यह अल्लाह तबारक व तआला के अलावा किसी के लिए हलाल नहीं, किसी बुज़ुर्ग को उसकी ज़िन्दगी में या विसाल के बाद सज़्दा करना हराम है। कुछ लोग मज़ारात पर नाक और पेशानी (माथा) रगड़ते हैं यह बिल्कुल हराम है!मज़ारात का तवाफ़ करना (यानी उसके गिर्द खानाए काअबा के मिस्ल चक्कर लगाना) भी नाजायज़ है! अज़ रुए अदब (अदब के लिहाज़ से) कम से कम 4 हाथ के फ़ासले पर खड़ा होकर फातेहा पढ़े, बोसा (चूमना) और छूना भी मुनासिब नहीं।(एहकामे शरीअत, सफ़ह 234)( फ़तावा रिज़विया, जिल्द 10, सफ़ह 54 - 56)




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