क्या मैयत को नहलाने के बाद खुद गुस्ल करना ज़रूरी है
सवाल क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में की बाद सलाम के अर्ज़ है कि अवाम में मशहूर है कि जिसने मैयत को गुस्ल दिया और क़ब्रिस्तान में दफनाने भी गया और क़ब्र में भी उतरा तो उस शख्स को घर पहुंच कर गुस्ल करना होगा क्या यह दुरुस्त है
साईलज़ाहिद हुसैन रिज़वी दिल्ली
जवाब यह सब क़ौम की जहालत है क्योंकि किताबों का मुतालआ ना करने की वजह से जो कुछ सुनते हैं वही बयान कर देते हैं और तसव्वुर करते हैं कि मैं मुफ्ती ए आज़म हो गयाकिसी को हक़ नहीं कि बगैर इल्म के मसअला बयान करे, हदीस शरीफ में है
من افتی بغیر علم لعنتہ ملائکۃ السمائ و الارض
जो बगैर इल्म के फतवा दे उस पर आसमान व ज़मीन के फरिश्तों की लानत हो, (कंज़ुल उम्माल बहवाला रज़विया)
मैयत को गुस्ल देने या दफन करने या क़ब्र में उतारने से गुस्ल वाजिब नहीं होता, (हबीब अल फतावा सफा ५४३)
हां अगर वक़्त हो और कोई दुशवारी ना हो तो कर लेना बेहतर है,
नोट : बीमारी एयादत मौत जनाज़ा कफन दफन इद्दत तीजा वगैरा के मुतअल्लिक़ मालूमात हासिल करने के लिए फक़ीर का रिसाला ""बिस्तरे अलालत से क़ब्र तक"" का मुतालआ करें
والله و رسولہ اعلم بالصواب
अज़ क़लम
फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)