जवाब : मस्जिद तामीर होने के बाद मस्जिद के सहन में मुर्दा को दफन करना हराम है
जैसा कि फतावा ए रिज़विया में सैय्यदी सरकार ए आला हज़रत इमाम ए अहले सुन्नत मुजदेदीनो मिल्लत अश्शाह इमाम अहमद रज़ा खान अलैहिर्रहमां फरमाते हैं की
अगर सूरते वाक़िया यह है कि सहने मस्जिद में बाद तामीर ए मस्जिद वारसाने बानी ए मस्जिद ख्वाह किसी ने क़ब्रे बना लें तो वह क़ब्रें महज़ ज़ुल्म है और उनका बाक़ी रखना ज़ुल्म है ना की आइंदा क़ब्रों के लिए एक हदबंदी और उसमें हुजरा मस्जिद और सहन मस्जिद से और ज़मीन में शामिल करना यह सब ज़ुल्म व हराम है और इसका दफा करना फर्ज़ है रसूलुल्लाह ﷺ फरमाते हैं
ليس لعرق ظالم حق و اوعق ههنا في ابن عابدين ايهام أزلناه فيما عليه عقلناه
ज़ुल्म की रग का कोई हक़ नहीं यहां शामी (की इबारत में) कुछ इबहाम वाक़े है जिसका एज़ाला हमने इस हाशिया में किया है (फतावा ए रिज़वीया जदीद जिल्द ९ सफा ४०८ मकतबा दावते इस्लामी मोबाइल ऐप)
والله و رسولہ اعلم باالصواب
अज़ क़लम
मोहम्मद नूर जमाल रिज़वी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)