क्या बरश मिस्वाक के क़ाएम मक़ाम है

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 क्या बरश मिस्वाक के क़ाएम मक़ाम है


 सवाल  क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस मसअला में की  क्या बरश मिस्वाक के क़ाएम मक़ाम हो सकता है या नहीं ? और अगर उसके क़ाएम मक़ाम हो सकता है तो उस से सुन्नत की अदाएगी होगी या नहीं

 साईलबंद ए खुदा

 जवाब  आपके सवाल से बात वाज़ेह नहीं है कि बरश मिस्वाक के क़ाएम मक़ाम है या सुन्नत वज़ू के लिए जो मिस्वाक किया जाता है उसके क़ाएम मक़ाम है ?
 अगर पूछने का मतलब मुतलक़न मिस्वाक के क़ाएम मक़ाम है तो इसका जवाब यह है कि बरश मिस्वाक का क़ाएम मक़ाम नहीं हो सकताऔर ना ही उससे मिस्वाक की सुन्नत अदा होगीक्योंकि हुजूर ﷺ ने मिस्वाक की है ना कि बरश
 हदीस शरीफ में मिस्वाक का ज़िक्र है जैसा कि इब्ने माजा में है 
 عَنْ أَبِی أُمَامَۃَ، أَنَّ رَسُولَ اللّٰہَ صَلَّی اللَّہُ عَلَیْہِ وَسَلَّمَ قَال،تَسَوَّکُوا فَإِنَّ السِّوَاکَ مَطْہَرَۃٌ لِلْفَمِ، مَرْضَاۃٌ لِلرَّبِّ، مَا جَائَنِی جِبْرِیلُ إِلَّا أَوْصَانِی بِالسِّوَاکِ، حَتَّی لَقَدْ خَشِیتُ أَنْ یُفْرَضَ عَلَیَّ وَعَلَی أُمَّتِی، وَلَوْلَا أَنِّی أَخَافُ أَنْ أَشُقَّ عَلَی أُمَّتِی لَفَرَضْتُہُ لَہُمْ، وَإِنِّی لَأَسْتَاکُ حَتَّی لَقَدْ خَشِیتُ أَنْ أُحْفِیَ مَقَادِمَ فَمِی
 हज़रत अबू अमामा रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू से रिवायत है कि रसूलुल्लाह ﷺ ने फरमायामिस्वाक करो इसलिए कि मिस्वाक मुंह को पाक करने का ज़रिया और अल्लाह तआला की रज़ामंदी का सबब हैजिबराईल जब भी मेरे पास आए तो उन्होंने मुझे मिस्वाक की वसीयत कीयहां तक कि मुझे डर हुआ कि कहीं मेरे और मेरी उम्मत के ऊपर इसे फर्ज़ ना कर दिया जाएऔर अगर यह बात ना होती कि मुझे डर है कि मैं अपनी उम्मत को मशक़्क़त में डाल दूंगा तो उम्मत पर मिस्वाक को फर्ज़ कर देताऔर मैं खुद इस क़द्र मिस्वाक करता हूं कि मुझे डर होने लगता है कि कहीं मैं अपने मसूड़ों को ना छील डालूं (इब्ने माजा हदीस नंबर२८९)

 और अगर  पूछने का मक़सद यह है कि बरश करने से वज़ू की सुन्नत अदा हो जाएगीयनी मिस्वाक ना होने की सूरत में बरश कर ले तो सुन्नत वज़ू अदा हो जाएगी या नहीं ?
 तो इसका जवाब यह है कि सुन्नत वज़ू अदा हो जाएगी क्योंकि मिस्वाक करने का माहसल है दांत मुंह साफ करना,
 जैसा की कुतुबे फिक़्ह में है कि 
 अगर मिस्वाक ना हो तो उंगली या कपड़ा से दांत साफ करे और ऐसी सूरत में सुन्नत वज़ू अदा हो जाएगी,
 जैसा कि सरकारे आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू तहरीर फरमाते हैं 
 मिस्वाक मौजूद हो तो उंगली से दांत माजना अदाए सुन्नत व हुसूले सवाब के लिए काफी नहींहां मिस्वाक ना हो तो उंगली या खर खरा कपड़ा अदा ए सुन्नत कर देगा,

 (رسالہ بارق النّور فی مقادیر ماء الطھور/۷۲۳۱ھ)

 ज़ाहिर सी बात है कि कपड़ा से मुतलक़न दांत साफ करना सुन्नत नहीं है कि सुन्नते रसूल ﷺ हो मगर सुन्नते वज़ू के लिए काफी है यूं ही बरश भी सुन्नते वज़ू के लिए काफी है,
 जैसा कि एक सफा पहले सरकारे आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू तहरीर फरमाते हैं 
 मिस्वाक हमारे नज़दीक नमाज़ के लिए सुन्नत नहीं बल्कि वज़ू के लिएतो जो एक वज़ू से चंद नमाज़ें पढ़े हर नमाज़ के लिए उससे मिस्वाक का मुतालबा नहीं जब तक मुंह में कोई तगैयुर ना आगया होहां अगर वज़ू बे मिस्वाक कर लिया था तो अब वक़्ते नमाज़ मिस्वाक कर ले,

 (رسالہ بارق النّور فی مقادیر ماء الطھور/۷۲۳۱ھ)

 इस इबारत से भी ज़ाहिर है कि मिस्वाक करना या उंगली या कपड़े से दांत साफ करना सिर्फ मुंह के तगैयुर को दूर करने के लिए हैइसीलिए फरमाया कि हर नमाज़ के लिए उस से मिस्वाक का मुतालबा नहींजब तक मुंह में कोई तगैयुर ना आगयामतलब अगर तगैयुर आगया हो तो मिस्वाक से मुंह साफ करे और ना होने की सूरत में उंगली या कपड़ा से साफ करे और ज़ाहिर सी बात है कि मुंह की सफाई बरश से भी हो सकती हैऔर जिस तरह बांस और अनार के दरख़्त को छोड़ कर किसी भी दरख़्त की टेहनी से मिस्वाक करने का हुक्म है की वह सब मिस्वाक में दाखिल है इसी तरह बरश भी विस्वाक में दाखिल है और इस से सुन्नते वज़ू अदा हो जाएगी जबकि मिस्वाक ना हो,
 खुलासा कलाम यह है कि बरश करना ना हुजूर अलैहिस्सलाम से साबित है ना ही यह सुन्नते रसूल ﷺ है मगर सुन्नते वजू के लिए मिस्वाक ना होने की सूरत में बरश मिस्वाक के क़ाएम मक़ाम है और इससे सुन्नते वज़ू अदा हो जाएगी,

والله و رسولہ اعلم بالصواب




 अज़ क़लम

  फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी

हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)



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