खुदी को कर बुलंद इतना पढ़ना कैसा है
सवाल क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम इस शेर के बारे में कि इसका पढ़ना कैसा है ? " खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तक़दीर से पहलेखुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है "
साईलअब्दुल्लाह रिज़वी
जवाब इस शेर को ना पढ़ा जाए क्योंकि माफहूम हदीस के खिलाफ है जैसा कि शेर से वाज़ेह है हर तक़दीर से पहले जबकि तक़दीर ज़मीन व आसमान से पचास हज़ार क़ब्ल लिखी गई तो खुदा बंदे की तक़दीर से पहले कैसे पूछेगा
हदीस शरीफ में है
عبداللہ بن عمرو رضی اللہ عنہ قال قال رسول اللہ صلی اللہ علیہ وسلم کتب اللہ مقادیر الخلائق قبل ان یخلق السموت و الارض بخمسین الف سنۃ
हज़रत बिन उमर रज़ि अल्लाहू अन्हू ने कहा की नबी करीम ﷺ ने फरमाया कि खुदा ए तआला ने ज़मीन व आसमान की पैदाइश से पचास हज़ार क़ब्ल मखलूक़ात की तक़दीर को लिखा (लौहे महफूज़ में) सब्त फरमा दिया
(मुस्लिम शरीफ जिल्द २ सफा ३३५)
(मिशक़ात सफा १९)
हां अगर यूं पढ़ा जाए तो कोई हर्ज ना होगा
खुदी को कर बुलंद इतना कि हर तदबीर से पहले
खुदा बंदे से खुद पूछे बता तेरी रज़ा क्या है
والله و رسولہ اعلم باالصواب
अज़ क़लम
फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी
हिंदी ट्रांसलेट
मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)