करामात ए ग़ौसे आज़म नज़रे मुबारक

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 करामात ए ग़ौसे आज़म नज़रे मुबारक

 सरकारे गौसे आज़म मजमे में जिस पर पर अपनी मुकद्दस आंखों से तवज्जोह फ़रमाते वह कैसा ही सख़्त तबीयत संगदिल क्यूँ न होता मुतीअ व फरमाबरदार और आपका गुलाम बन जाता!

 चुनांचे हज़रते शैख़ मकारिम का बयान है कि मैं एक दिन हज़रते शैख़ अब्दुल कादिर की ख़िदमते आली में उनके मदरसे में हाज़िर था कि उसी दौरान फ़ज़ा में तीतर परिन्दा उड़ता हुआ गुज़रा ! हज़रते शैख़ मकारिम कहते हैं कि मेरे दिल में ख़्याल आया कि क्या ही अच्छा होता कि मैं तीतर का गोश्त जौ के साथ खाता! इस ख्याल के आते ही हज़रते शैख़ अब्दुल कादिर जीलानी ने मेरी तरफ़ देखा और मुस्कुराए और फ़ज़ा की तरफ़ निगाहे मुबारक उठाई! इतने में तीतर मदरसे के सहन में आ गिरा और दौड़ कर मेरी रान पर सवार हो गया! सरकारे गौसे आज़म ने फ़रमाया ऐ मकारिम तुम्हें जिस चीज़ की ख्वाहिश है वह ले' लो! अल्लाह तआला तुमसे तीतर को जौ के साथ खाने की ख्वाहिश छीन लेगा! उस वक्त से आज के दिन तक तीतर के गोश्त से मेरी नफ़रत का यह आलम है कि अगर उसे भून पका कर मेरे सामने रखा जाए तो मैं उसकी महक भी बर्दाश्त नहीं कर सकता हालांकि इससे पहले तीतर मुझे बहुत ज्यादा पसन्द था!(हमारे ग़ौसे आज़म सफ़ह,188)




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