करामात ए ग़ौसे आज़म

0

 करामात ए ग़ौसे आज़म

दिल की बात का इल्म

 शैख़ अबुल बका इकबिरी फ़रमाते हैं कि एक रोज़ मैं हज़रते ग़ौसे आज़म  की मजलिसे वाज़ (तकरीर) के क़रीब से गुज़र रहा था कि मेरे दिल में ख़याल आया कि इस अजमी का क़लाम सुनते चलें इससे पहले मुझे हुजूर गौसे आज़म का वाज़ सुनने का इत्तेफ़ाक़ नहीं हुआ था! 

जब आपकी मजलिस में हाज़िर हुआ तो आप वाज़ फ़रमा रहे थे! आपने अपना कलाम छोड़ कर फरमाया ऐ आँख और दिल के अंधे इस अजमी का कलाम सुन कर क्या करेगा! 

आपका यह फ़रमान सुनकर मुझसे ज़ब्त न हो सका और आपके मिम्बर के करीब जाकर अर्ज़ किया कि मुझे ख़िरक़ा पहनायें! 

 चुनांचे आपने ख़िरका पहनाया और फरमाया कि अगर अल्लाह तआला तुम्हारी आकिबत ( अन्जाम ) की मुझे इत्तेला न फ़रमाता तो तुम गुनाहों की वजह से हलाक हो जाते!(हमारे ग़ौसे आज़म सफ़ह,189)




एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.
एक टिप्पणी भेजें (0)
AD Banner
AD Banner AD Banner
To Top