काफिर को गिफ्ट देना कैसा है

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 काफिर को गिफ्ट देना कैसा है


 सवाल  क्या फरमाते हैं उलमा ए किराम की क्या स्कूल कॉलेज में पढ़ने वाले तलबा अपने किसी हिंदू दोस्त को गिफ्ट दे सकते हैं ? और क्या कोई लड़की किसी लड़के को गिफ्ट दे सकती है ? तफसीली जवाब से नवाज़ें करम नवाज़ी होगी

 साईलमुशर्रफ रज़ा

 जवाब  काफिर से क़ल्बी मोहब्बत करना और उन्हें तोहफा वगैरा देना शरअन नाजायज़ व हराम है
 इरशाद ए रब्बानी है 
 یٰۤاَیُّهَا الَّذِیْنَ اٰمَنُوْا لَا تَتَّخِذُوا الْیَهُوْدَ وَ النَّصٰرٰٓى اَوْلِیَآءَ  بَعْضُهُمْ اَوْلِیَآءُ بَعْضٍ وَ مَنْ یَّتَوَلَّهُمْ مِّنْكُمْ فَاِنَّهٗ مِنْهُمْ اِنَّ اللّٰهَ لَا یَهْدِی الْقَوْمَ الظّٰلِمِیْنَ
 ऐ ईमान वालों यहूद व नसारा को दोस्त ना बनाओ वह आपस में एक दूसरे के दोस्त हैं और तुम में जो कोई उनसे दोस्ती रखेगा तो वह उन्हीं में से है बेशक अल्लाह बे इंसाफों को राह नहीं देता

 (कंज़ुल ईमान सूरह मायदाआयत ५१)

 तफसीरे सीरातुल जिनान में है की इस आयत में यहूद व नसारा के साथ दोस्ती व मवालात यानी उनकी मदद करनाउनसे मदद चाहना और उनके साथ मोहब्बत के रवाबीत रखना ममनूअ फरमाया गयायह हुक्म आम है अगर्चे आयत का नूज़ुल किसी खास वाक़िया में हुआ हो,
चुनांचा यहां यह हुक्म बगैर किसी क़ैद के फरमाया गया की ऐ इमान वालो ! यहूदियों और ईसाइयों को दोस्त ना बनाओयह मुसलमानों के मुक़ाबले में आपस में एक दूसरे के दोस्त हैंतुम्हारे दोस्त नहीं क्योंकि काफीर कोई भी हो और उनमें बाहम कितने ही एख्तिलाफ होंमुसलमानों के मुक़ाबला में वह सब एक हैं(اَلْکُفْرُ مِلَّۃٌ وَّاحِدۃٌ) कुफ्र एक मिल्लत है (مدارک، المائدۃ، تحت الآیۃ: ۵۱  ، ص ۲۸۹)

 लिहाज़ा मुसलमानों को काफिरों की दोस्ती से बचने का हुक्म देने के साथ निहायत सख्त वईद बयान फरमाई की जो उनसे दोस्ती करे वह उन्हीं में से हैइस बयान में बहुत शिद्दत और ताकीद है कि मुसलमानों पर यहूद व नसारा और दीन ए इस्लाम के हर मुखालिफ से अलाहीदगी और जुदा रहना वाजिब है, (مدارک، المائدۃ، تحت الآیۃ: ۵۱  ، ص ۲۸۹) (خازن، المائدۃ، تحت الآیۃ: ۵۱  ، ۱ / ۵۰۳  ، ملتقطاً)

 और जो काफिरों से दोस्ती करते हैं वह अपनी जानों पर ज़ुल्म करते हैं इस से यह भी मालूम हुआ कि इस्लामी हुकूमत में कुफ्फार को कलीदी (کلیدی) आसानिया ना दी जाएंयह आयत ए मुबारका मुसलमानों की हज़ारों मआमलात में रहनुमाई करती है और इसकी हक़्क़ानियत रोज़े रौशन की तरह अयां हैपूरी दुनिया के हालात पर नज़र दौड़ाएं तो समझ आएगा कि मुसलमानों की ज़िल्लत व बर्बादी का आगाज़ तब से हुआ जब आपस में नफरत व दुश्मनी और टूट फूट का शिकार होकर गैर मुस्लिमों को अपना खैर ख्वाह और हमदर्द समझकर उन से दोस्तीयां लगाएं और उन्हें अपनों पर तरजीह दीअल्लाह तआला हमें अक़्ले सलीम अता फरमाए
 अलबत्ता क़ल्बी मोहब्बत ना हो बल्कि किसी हिकमत के तेहत काफिरों को अगर तोहफा दिया जाए जैसे कि आज कल कुफ्फार मुसलमान के साथ तशद्दूद से पेश आते हैं जहां मुसलमानों की कमी है वहां उन पर ज़ुल्म करते हैं तो उन्हें नर्म करने के लिए और उनके ज़ुल्मों सितम से बचने के लिए तोहफा दे सकते हैंया काफिर प्रधान या मंत्री या कोई और ओहदा पर फाइज़ है तो उसको भी इस नियत से देना की वक़्त आने पर मुसलमानों का साथ देंगे कोई हर्ज नहीं दे सकते हैं,
 और यह हदीस शरीफ से साबित है बल्कि इमाम बुखारी ने इस पर एक बाब बांधा है हदीस मुलाहिज़ा हो 
 عَنِ ابْنِ عُمَرَ رَضِيَ اللَّهُ عَنْهُمَا، ‌‌‌‌‌‏قَالَ:‌‌‌‏ رَأَى عُمَرُحُلَّةً عَلَى رَجُلٍ تُبَاعُ، ‌‌‌‌‌‏فَقَالَ لِلنَّبِيِّ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ:‌‌‌‏ ابْتَعْ هَذِهِ الْحُلَّةَ تَلْبَسْهَا يَوْمَ الْجُمُعَةِ، ‌‌‌‌‌‏وَإِذَا جَاءَكَ الْوَفْدُ، ‌‌‌‌‌‏فَقَالَ:‌‌‌‏ إِنَّمَا يَلْبَسُ هَذَا مَنْ لَا خَلَاقَ لَهُ فِي الْآخِرَةِ، ‌‌‌‌‌‏فَأُتِيَ رَسُولُ اللَّهِ صَلَّى اللَّهُ عَلَيْهِ وَسَلَّمَ مِنْهَا بِحُلَلٍ، ‌‌‌‌‌‏فَأَرْسَلَ إِلَى عُمَرَ مِنْهَا بِحُلَّةٍ، ‌‌‌‌‌‏فَقَالَ عُمَرُ:‌‌‌‏ كَيْفَ أَلْبَسُهَا وَقَدْ قُلْتَ فِيهَا مَا قُلْتَ ؟ قَالَ:‌‌‌‏ إِنِّي لَمْ أَكْسُكَهَا لِتَلْبَسَهَا تَبِيعُهَا أَوْ تَكْسُوهَا، ‌‌‌‌‌‏فَأَرْسَلَ بِهَا عُمَرُ إِلَى أَخٍ لَهُ مِنْ أَهْلِ مَكَّةَ قَبْلَ أَنْ يُسْلِمَ


 हज़रत अब्दुल्लाह बिन उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हुमा से रिवायत है कि उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने देखा कि एक शख्स के यहां एक रेशमी जोड़ा फरोख्त हो रहा हैतो आप रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने नबी करीम ﷺ से कहा कि आप ﷺ यह जोड़ा खरीद लीजिए ताकि जुम्मा के दिन और जब कोई वफद आए तो आप ﷺ उसे पहना करेंआप ﷺ ने फरमाया कि उसे तो वह लोग पहनते हैं जिनका आखिरत में कोई हिस्सा नहीं होताफिर नबी ﷺ करीम के पास बहुत से रेशमी जोड़े आए और आप ﷺ ने उनमें से एक जोड़ा उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू को भेजाहज़रत उमर रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू ने कहा कि मैं उसे किस तरह पहन सकता हूं जबकि आप ﷺ खुद ही उसके मुतअल्लिक़ जो कुछ इरशाद फरमाना थाफरमा चुके हैंआप ﷺ ने फरमाया कि मैंने तुम्हें पहनने के लिए नहीं दिया बल्कि इसलिए दिया कि तुम उसे भेज दो या किसी (गैर मुस्लिम) को पहना दोचुनांचा उमर ने उसे मक्का में अपने एक भाई के घर भेज दिया जो अभी इस्लाम नहीं लाया था,

 (صحیح بخاری ،مشرکوں کو ہدیہ دینا۔حدیث نمبر۲۶۱۹)

 इरशाद ए रब्बानी है 
 لَا یَنْهٰىكُمُ اللّٰهُ عَنِ الَّذِیْنَ لَمْ یُقَاتِلُوْكُمْ فِی الدِّیْنِ وَ لَمْ یُخْرِجُوْكُمْ مِّنْ دِیَارِكُمْ اَنْ تَبَرُّوْهُمْ وَ تُقْسِطُوْۤا اِلَیْهِمْؕ-اِنَّ اللّٰهَ یُحِبُّ الْمُقْسِطِیْنَ
 अल्लाह तुम्हें उन से मना नहीं करता जो तुमसे दीन में ना लड़े और तुम्हें तुम्हारे घरों से ना निकाला कि उनके साथ एहसान करो और उनके इंसाफ का बर्ताव बरतो बेशक इंसाफ वाले अल्लाह को महबूब हैं

 (کنزا لایمان سورہ ممتحنہ ۸)

 सरकार ए आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू तहरीर फरमाते हैं कि : बमस्लिहत शरई उसे (काफिर को) हदिया देना जिसमें किसी रस्म का कुफ्र का आज़ाज़ ना होउसका हदिया कुबूल करना जिस से दीन पर एतराज़ ना हो हत्ता की किताबीया से निकाह करना भी फी नफसीही हलाल हैमज़ीद मालूमात के लिए सरकार ए आला हज़रत रज़ि अल्लाहू तआला अन्हू का रिसाला
 (المحجۃ المؤتمنۃ فی اٰیۃ الممتحنۃجلد ۱۴؍ص ۴۲۰)
से मुतालआ करें

 नाबालिग़ लड़के को बालिग़ लड़की तोहफा दे सकती है कि पढ़ने में और मेहनत करे और अगर लड़का लड़की दोनों बालिग़ हैं तो एक दूसरे को नहीं दे सकते कि फितना का बाअस होगाकुतूबे फिक़्ह में है की औरत अजनबी मर्द से सलाम करे तो मर्द को आहिस्ता आवाज़ से जवाब देना चाहिए फिर यहां तोहफा देना क्यों कर जायज़ होगा वह भी इस पूर फितन दौर में कि जब तोहफा दिया जाएगा तो दोनों तरफ से उल्फत पैदा होगी कुछ बातें भी होंगी फिर मुस्तक़बिल में दोनों का गुनाहे कबीरा में मुलौविस होने का क़वी अंदेशा है लिहाज़ा बालिग़ लड़कालड़की का आपस में तोहफा लेनादेना शरअन जायज़ नहीं है

والله و رسولہ اعلم باالصواب



 अज़ क़लम

  फक़ीर ताज मोहम्मद हन्फी क़ादरी वाहिदी अतरौलवी

हिंदी ट्रांसलेट

मोहम्मद रिज़वानुल क़ादरी सेमरबारी (दुदही कुशीनगर उत्तर प्रदेश)

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